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फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे’ में रानी ने बयां की मां की जीत की कहानी: Mrs Chatterjee Vs Norway

12:15 PM Mar 18, 2023 IST | Nisha Singh
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Mrs Chatterjee Vs Norway: किसी भी सच्‍ची कहानी को पर्दे पर दिखा उसके साथ सही से न्‍याय कर पाना थोडा मुश्किल होता है। क्‍योंकि अभिनय कहानियों के लिए हो सकता है मगर सच्‍चाई को उसी रूप में दिखाने के लिए आपको किरदार को जीना होता है। ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’ एक बंगाली कपल की सच्‍ची कहानी पर आधारित है। सागरिका चटर्जी की हानि को इस फिल्‍म में दर्शाया गया है।

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2011 नार्वे में रहने वाले एक भारतीय कपल से वहां की समाज कल्‍याण संस्‍था से उनके बच्‍चों को छीन लिया गया था। जिसके विरोध में मिसेज चटर्जी ने नार्वे सरार और वहां की कानून व्‍यवस्‍था से जंग छेड दी। अपने बच्‍चों के प्रति उनके हक और जिम्‍मेदारी को कोई भी सरकार उनसे छीन नहीं सकती। इस फिल्‍म को सिल्‍वर स्‍क्रीन पर आशिमा छिब्‍बर ने बखूबी दिखाने का प्रयास किया है। वहीं रानी मुखर्जी ने बेहद सादगी के साथ इस किरदार को पर्दे पर अभिनय के रंग से ऐसा रंगा है कि लगता है जैसे ये उनकी ही कहानी हो। मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे एक देश के कानून और एक भारतीय मां की अपने बच्‍चों के प्रति ममता और जंग की कहानी है। फिल्‍म रिलीज हो चुकी है। आइए आपका बताते हैं आखिर फिल्‍म कैसी रही।   

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Mrs Chatterjee Vs Norway: फिल्‍म की कहानी

भारत में बच्‍चों का पालन पोषण जिस तरह से किया जाता है। वो दुनिया के कई देशों के कानून के हिसाब से बिल्‍कुल गलत है। जब एक भारतीय ज्‍यादा पैसों और बेहतर जिंदगी के लालच में इन देशों में जाते हैं तो उन्‍हें बहुत सी दिक्‍कतों का सामना करना पडता है। ऐसे में अगर आप पेरेंट हैं तो आपको और भी संभल कर रहना होता है। फिल्‍म की कहानी एक सीदे सादे भारतीय कपल की है। जो नार्वे में रहने के लिए जाते हैं। उनकी जिंदगी में भूचाल तब आता है जब सीधी सादी सागरिका चैटर्जी (रानी मुखर्जी) एक भारतीय मां अपने बच्‍चों की देखभाल विदेशी धरती पर भारतीय तरीके से करती है। उसका अपने बच्‍चों को प्‍यार से खाना खिलाना, बुरी नजर से बचाने के लिए टीका लगाना और अपने बच्‍चों को साथ सुलाने जैसी छोटी बातें वहां के कानून के हिसाब से गलत हो जाती हैं। वहां की वेलफेयर सोसायटी सागरिका को मानसिक रूप से बीमार करार देती है और उसे बच्‍चों की परवरिश करने में असमर्थ करार दे देती है। परिणामस्‍वरूप उनके बच्‍चों को नार्वे की दंपत्ति गोद ले लेते हैं। यहां से सागरिा की अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने की जंग शुरू हो जाती है। वो अपने बच्‍चों को पाने के लिए ऐड़ी-चोटी की जोर लगा देती है। लगभग चार साल तक चलने वाले सरार बनाम एक मां के केस के दौरान सागरिका की जर्नी की भयावह सच्‍चाई को देखने और उसकी बच्‍चों के प्रति ममता की जिद की जीत को जानने के लिए आपको सिनेघरों तक जाना होगा।

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कैसी है फिल्‍म

रानी मुखर्जी ने एक बार फिर साबित फिर दिया है कि अभिनय के मामले में सच में वे रानी हैं। उन्‍होंने उस बंगाली मां का किरदार बड़े ही खूबसूरती से निभाया है जिसे अपने बच्‍चों से जुदा होने के बाद उनको वापस पाने की तडप है। वैसे कुछ लोगों को कहीं कहीं उनकी एक्टिंग, ओवर एक्टिंग लग सकती है लेकिन ये उस मां की कहानी है, जिसने कभी बाहर की दुनिया देखीं नहीं थी। एक महिला जिसकी दुनिया उसके पति से ज्यादा बच्चों के इर्द-गिर्द बन जाती है। रानी ने इस किरदार के हर भावना को बडी बखूबी से पेश किया है। फिर चाहे वो मां की ममता हो या उसकी तडप। अनिर्बन भट्टाचार्य ने रानी मुखर्जी के पति का रोल निभाया है। उन्‍होने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया है। वहीं नीना गुप्ता का कैमिया भी काफी प्रभावशाली रहा है। जिम सार्भ की वकील के रूप में बेहतरीन अदाकारी देखते बनती है। निर्देशक आशिमा का निर्देशन दिल को छूने वाला है।

क्‍यों देखें

हम भारतीयों की कमजोर कडी है भावनाएं। ऐसे में मां जिस शब्‍द से हर किसी का अलग ही जुडाव होता है। उसकी एक दर्द भरी कहानी को देखना तो बनता है। फिल्म का फर्स्ट आपको भावनाओं के समंदर में गोते लगवाता है, तो सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी तेज भागने लगती है। रानी मुखर्जी की दमदार एक्टिंग के साथ एक भारतीय मां की जंग की सच्‍ची कहानी और विदेशी जमीं पर बिना घुटने टेके अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने की जर्नी को देखने के लिए ये फिल्म जरूर देखी जा सकती है।

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