मुक्ति-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Mukti: नीरू काफी दिनों से गुमसुम और परेशान थी। सोचते सोचते खोई रहती थी। एक दिन वो यूँ ही खयालों में बैठी थी,आंखों में आंसू लिए, उसके भैया विशाल ने आकर पूछा, "क्या हुआ नीरू, काफी दिनों से देख रहा हूं तू कुछ परेशान सी लग रही है,ऑफिस में कुछ हुआ क्या ? मुझे नहीं तो अपनी भाभी से बता दे,क्या बात है!"
कहते हुए उसके भैया विशाल ने सर पर हाथ फेरा।
बस क्या था नीरू फफक कर रो पड़ी।
रोते-रोते कहने लगी, "भैया मुझे माफ कर दो,मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई,पर मैं आज आपको सब बताऊंगी, उसके बाद आप जो सजा दोगे मुझे मंजूर होगी, आप भाभी को भी यहां बुला लीजिए!"
उसके मैया ने कहा, "अच्छा बता क्या बात है, मैं हूं ना, तेरे साथ घबरा मत!"
नीरू ने कहा, "भैया मैं नवीन नाम के एक लड़के से प्यार करती थी,मुझे वो वफादार लगा, उसने मुझे भरोसा भी इस तरह से दिलाया था कि,वो कभी मेरे साथ दगा नहीं करेगा। उसने हमेशा साथ निभाने का वादा किया था, मैंने उससे एक दिन कहा कि, भैया से हमारी शादी की बात कर लो तो,उसने कहा कर लूंगा इतनी जल्दी क्या है, हमारा संबंध काफी दिनों से है,और मैं उसके साथ सारे संबंध बना चुकी हूं,उसने नज़र झुकाते हुए कहा…पर भैया एक सप्ताह से वो मुझसे मिलने नहीं आया….और फोन भी रिसीव नहीं कर रहा है,मैं मैसेज करती हूं वो भी नहीं पढ़ता है भैया,कहते कहते उसका जी मिचलाने लगा और वो बाथरूम की ओर भागी।
उसके भैया भाभी सकपका कर एक दूसरे को देखने लगे और समझते देर नहीं लगी।
विशाल ने कहा इतनी बात हो गई और चुपचाप वो सर पर हाथ रख कर बैठ गया।
उसकी भाभी ने फिर उसे कहा, "नीरू इस जहरीले रिश्ते से आज तू मुक्ति पा ले, चल डॉक्टर को दिखाकर अबॉर्शन करवा ले,डर मत हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे, उस
दगेबाज़ की निशानी को भी क्यों रखना,आखिर हम तुम्हारे अपने हैं और अपने इसी दिन के लिए होते हैं कि,अपनों का साथ दें," उसने नीरू के सर पर हाथ फेरा।
नीरू को अपने भाभी और भैया के दिलासे से राहत मिली और उसे लगा बहुत बड़े आत्मग्लानी से आज उसे मुक्ति मिली है, अपनी भाभी के गले से लिपट कर रो पड़ी, बोली, "भाभी मैं उसे सच्चे दिल से चाहती थी,उसके मन में क्या था मुझे इसका जरा भी भान नहीं था,पर मैं अब जीवन भर शादी नहीं करूंगी, पर अबॉर्शन भी नहीं कर पाऊंगी, इसमें इसका कोई कसूर नहीं है, मैं इसे अपना नाम दूंगी, और इसे संसार में लाऊंगी, अगर आप लोगों को पसंद है तो ठीक है, नहीं तो जैसी आप लोगों की मर्जी,पर यह मेरा अंतिम फैसला है!"
विशाल ने कहा, "जैसी तेरी मर्जी,तेरा फैसला है तू समझदार है, पर हम तुझे अकेला नहीं छोड़ेंगे, हम तुम्हारे साथ हैं, आखिर तो मेरी बहन है!"
नीरू ने अपने भैया भाभी से कहा, "आज आप लोगों का साथ पाकर,मैं एक बहुत बड़े भार से मुक्ति पा गई हूं,अब मुझे कोई डर और घबराहट नहीं!"