आखिर कौन हैं ये नागा साधु?: Naga Sadhu
Naga Sadhu: महाकुम्भ के मेले में देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहने वाले नागा साधुओं के बारे में हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर कौन हैं ये? क्या है इनकी अनोखी वेष-भूषा का रहस्य? तो आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से।
भभूत के आवरण से ढका वस्त्रविहीन शरीर, कमर में फूलों की माला, आंखों में काजल, माथे पर रोली का लेप, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, जटाएं, बाजुओं और गले में रुद्राक्ष की माला। ये वर्णन है नागा साधुओं का, जिन्हें देख कर सभी के मन में उनके बारे में जिज्ञासा का जन्म अवश्य होता है। अपने शृंगार से महिलाओं को भी मात देते ये नागा साधु जब महाकुम्भ के समय लाखों की संख्या में नजर आते हैं तो इनके बारे में अधिक से अधिक जानने का ख्याल हम सभी के मन में एक न एक बार जरूर आता है।
Naga Sadhu: उत्पत्ति का इतिहास
कुछ लोगों का मानना है कि शैव पंथ से बहुत सारे संन्यासी पंथों और परंपराओं की शुरुआत हुई है, नागा साधु भी उनमें से एक हैं।
सिकंदर जब भारत आया था तो उसके साथ आए अन्य यूनानियों ने भी यहां अनेक दिगंबर साधुओं को देखा था, अर्थात्ï ये बहुत पुराने समय से ही भारत में हैं एवं कुछ इतिहासकारों का मत है कि जैन धर्म के दिगंबर साधु और हिंदुओं में जो नागा संन्यासी हैं वे दोनों एक ही परंपरा से निकले हुए हैं तथा उनका ये भी मानना है कि बुद्ध और महावीर भी इन्हीं साधुओं के दो प्रधान संघों के अधिनायक थे। वहीं कुछ लोग इसे शिव से जोड़कर देखते हैं।
शाब्दिक अर्थ
कुछ विद्वानों की मान्यता है कि नागा शब्द संस्कृत का है जिसका तात्पर्य ‘पहाड़’ से है और इसपर रहने वाले लोग ‘पहाड़ी’ या ‘नागा’ कहलाते हैं।
‘नागा’ का अर्थ नंगे रहने वाले व्यक्तियों से भी है। इसके अलावा कच्छारी भाषा में नागा से तात्पर्य एक युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति से लिया जाता है।
प्राचीनता
नागा संन्यासियों के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत भी भिन्न-भिन्न हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में नागा संप्रदाय की परंपरा प्रगैतिहासिक काल में शुरू हुई थी तथा भगवान शिव इनके अराध्य हैं। मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाई गई मुद्रा पर भी इसके प्रमाण मिले हैं। इसके साथ ही कुछ विद्वानों का कहना है कि भारत में आदिगुरु शंकराचार्य बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा किए जा रहे लूट-पाट और मंदिरों तथा मठों को पहुंचाई जा रही क्षति की वजह से धर्म तथा समाज की रक्षा को लेकर चिंतित थे फिर उन्होंने यह सोचा कि केवल आध्यात्मिक शक्ति से इन चुनौतियों का सामना करना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने युवाओं को हथियार चलाने तथा व्यायाम द्वारा अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए प्रेरित करने का बीड़ा उठाया तथा इसके लिए मठों की स्थापना की जो आगे जाकर इन मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि जब अहमद शाह अब्दाली ने गोकुल पर आक्रमण किया था तो 40 हजार से अधिक नागा योद्धाओं ने बहादुरी से उसका मुकाबला कर के गोकुल की रक्षा की थी।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रारंभ में नागा संन्यासियों का जीवन अध्यात्म तथा पराक्रम का अद्ïभुत संगम था अगर हम वर्तमान समय की बात करें तो स्वतंत्रता के बाद इन्होंने अपना सैन्य स्वरूप त्याग दिया तथा अब इनके अखाड़े सनातनी मूल्यों के अध्ययन, रक्षा और उनके पालन के लिए कार्यरत रहते हैं।
कैसे बनते हैं नागा संन्यासी?
नागा साधुओं की निर्माण प्रक्रिया को जानने के लिए शिव को जानना बहुत आवश्यक है, क्योंकि नागा साधु से केवल नग्न अवस्था में घूमने या रहने वाले संन्यासी से नहीं है बल्कि यह बहुत आध्यात्मिक एवं कठिन प्रक्रिया है।
शिव केवल एक देव नहीं है वो ‘देवों के देव हैं’ फिर भी ऐश्वर्य की कोई झलक उनके जीवन में नजर नहीं आती। सिर पर जटा गले में सर्प की माला रूपी अलंकार से सुशोभित त्याग तथा अध्यात्म की प्रतिमूर्ति शिव को महादेव यूं ही नहीं कहा जाता।
ऐसा कहते हैं कि अध्यात्म का उदय ही शिव से हुआ है और शिव सा ही ऐश्वर्यविहीन जीवन नागा संन्यासियों का भी होता है व सामान्य जीवन का त्याग करके नागा का रूप धारण करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं से भी गुजरना पड़ता है-
- कठिन जांच प्रक्रिया
किसी भी व्यक्ति को सरलता से नागा साधु बनाने की अनुमति नहीं मिलती। जब भी कोई व्यक्ति नागा साधु बनने की इच्छा लेकर अखाड़े में जाता है तो अखाड़ा अपने स्तर पर पूरी तरह उसकी जांच करता है। जब अखाड़े की जांच में वो व्यक्ति खरा उतरता है तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। - ब्रह्मïचर्य का पालन
अखाड़े में प्रवेश के उपरांत व्यक्ति के ब्रह्मïचर्य की परीक्षा ली जाती है जिसमें 6 महीने से लेकर 12 वर्षों तक का समय भी लग सकता है। - पंच देव
जब उसके गुरु को लगता है कि व्यक्ति दीक्षा लेने के योग्य हो चुका है तो उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं जो पंच देव भी कहलाते हैं। ये पांच देव हैं- शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य तथा गणेश। इसके उपरांत इन्हें भस्म, भगवा, रुद्राक्ष आदि प्रदान किए जाते हैं। - स्वयं का पिंडदान
अवधूत के रूप में दीक्षा लेने के लिए उन्हें स्वयं का पिंड दान करना होता है जिसका उद्ïदेश्य ये होता है कि वो संसार और अपने परिवार के लिए मृत हो चुके हैं वे अब उनके जीवन का बस एक ही उद्ïदेश्य है सनातन तथा वैदिक धर्म की रक्षा के उद्ïदेश्य से एक नई पहचान के साथ अपना जीवन व्यतीत करना। - लिंग को निष्क्रिय करना
इस प्रक्रिया से पूर्व व्यक्ति को नागा रूप में कंधे पर एक दंड और मिट्ïटी का बर्तन लेकर अखाड़े के ध्वज के नीचे 24 घंटे तक बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है। यह सब अखाड़े के पहरेदारों की निगरानी में होता है। इसके पश्चात् अखाड़े के साधु वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर उनके लिंग को निष्क्रिय कर देते हैं। इसके पश्चात् वह नागा साधु बन जाता है।
नागा संन्यासी बनने के बाद साधुओं को निम्नलिखित नियमों का पालन करना होता है- - सेवा– दीक्षा के बाद एक नागा साधु को आजीवन ब्रह्मïचर्य का पालन तथा इच्छाओं का नियंत्रण तो करना ही होता है इसके साथ ही कई बार दीक्षा लेने वाले साधु को अपने गुरु तथा वरिष्ठï साधुओं की सेवा भी करनी पड़ती है।
- कपड़ों का परित्याग– नागा साधु प्राय: वस्त्र धारण नहीं करते परंतु कुछ साधु ऐसे भी हैं जो छाल अथवा गेरुए वस्त्र पहनते हैं। परंतु उन्हें एक से अधिक गेरुआ वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं होती।
- शृंगार– नागा साधुओं का शृंगार बिलकुल अनोखा होता है। ये विभूति तथा रुद्राक्ष तो धारण करते ही हैं साथ ही ये शृंगार करने में महिलाओं से भी एक कदम आगे हैं, क्योंकि जहां एक तरफ 16 शृंगार को महिलाओं का आदर्श शृंगार मानते हैं वहीं ये 17 प्रकार के शृंगारों से स्वयं को सुशोभित करते हैं जिनमें, भभूत, माथे पर रोली का लेप तथा पैरों में चांदी या लोहे का कड़ा आदि सम्मिलित रहते हैं।
- जटा– नागा संन्यासी सिर पर शिखा नहीं रख सकते या तो उन्हें सारे केशों का त्याग करना होता है या फिर जटा धारण करने का विधान होता है।
- भिक्षा– नागा संन्यासी भिक्षा द्वारा ही अपना जीवन-यापन करते हैं तथा नागा साधु अधिक से अधिक सात घरों में ही भिक्षा मांग सकते हैं और अगर उन्हें सात घरों में भिक्षा न मिले तो भूखे ही रहना पड़ता है।
- एक वक्त भोजन– नागा साधुओं को अपनी पसंद-नापसंद को छोड़कर भिक्षा से जो भी प्राप्त होता है उसे प्रेम से खाना होता है और एक दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
- भूमि पर सोना– नागा संन्यासी खाट, पलंग अथवा किसी अन्य प्रकार के साधन का प्रयोग नहीं कर सकते हैं यहां तक कि उन्हें गद्दे पर सोने की अनुमति नहीं होती है।
- अन्य नियम– दीक्षा के वक्त नागा साधुओं को एक गुरुमंत्र दिया जाता है तथा नागा साधुओं को उस मंत्र में पूरी आस्था रखनी ही होती है, क्योंकि उनकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरुमंत्र पर आधारित होती है, इसलिए ये मंत्र नागाओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त नागा संन्यासी किसी सामान्य व्यक्ति को ‘प्रणाम’ नहीं कर सकते वो ‘प्रणाम’ करके केवल संन्यासी का अभिवादन ही कर सकते हैं।
महिला नागा संन्यासी
ये बात सुनने में भले नई लगे लेकिन ये सच है कि कई अखाड़े ऐसे हैं जहां पर महिलाओं को भी नागा संन्यास की दीक्षा प्रदान की जाती है तथा यहां हमारे देश की महिलाओं के साथ-साथ ऐसी विदेशी महिलाओं की तादात भी काफी ज्यादा है।