For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

बूढ़ी हूँ…पर मरी नहीं…!!-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM May 24, 2023 IST | Sapna Jha
बूढ़ी हूँ…पर मरी नहीं…   गृहलक्ष्मी की कहानियां
Advertisement

Old Age Story: "…हाँ…ठीक है.. बेटा….!,जैसा ठीक समझो..!"
रंजना जी ने ठंडी साँस लिया और फोन रख दिया।
उनकी बेबसी आँखों से बह निकली थी।

उनका हर दिन सोते हुए बीतता था और रात जागते हुए।
उम्मीद रहती थी कि दोनों बेटे फोन करेंगे और उसका हालचाल लेंगे !
इसी उम्मीद में रंजना जी पूरी रात आंखों आंखों में ही काट दिया करती थीं।

ऐसा नहीं था कि उसके दोनों बेटे उसे पूछते नहीं थे लेकिन परदेसी बाबुओं का कहना भी क्या?

Advertisement

कोई दूर से कितना भी बात कर सकता है,यह भी एक कड़वा सच था।

हर कोई अपनी जिंदगी में व्यस्त रहता है, अपने ही मुसीबतों और दिनचर्या से जूझते हुए।

Advertisement

होली बीत चुकी थी ,अब दशहरा भी…और दीवाली में कुछ ही दिन शेष थे।

रंजनाजी ने बारी-बारी से अपने दोनों बेटों को आने के लिए कहा था..लेकिन बहाना तैयार था!

Advertisement

दोनों बच्चों अब नए साल में आने की बात कर रहे थे।

रंजना जी ने ठंडी सांस भरी और कहा
" चलो कोई बात नहीं…!, अब दिवाली भी बिना परिवार की ही निकाल लूंगी मैं!,पर नए साल में तुम दोनों जरूर आना… ना जाने बूढ़ी आंखें कब पथरा जाए!"

"हाँ मां, हम कोशिश करेंगे ..और इसबार आपको भी साथ लेकर आएंगे!"

उनके दोनों बेटों दीपक और ज्योति ने उम्मीद दिला कर फोन रख दिया था।

रंजना जी की अब देह थकने लगी थी।निरंजन जी के जाने के बाद तो वह बिल्कुल ही अकेली और निसहाय महसूस करने लगीं हैं।

आज दोंनो बेटों से बात कर वह बहुत ही आहत हो गईं।

पानी का बॉटल उनके बेड पर ही रखा हुआ था।
उनकी कामवाली दोनों समय आकर पूरे काम करके उनके बिस्तर पर गरम और ठंडे पानी की बोतलें रख जाती थी।

लेकिन रंजना जी ने अपना मन बदलने के लिए अपने कमरे में ही वॉक करने लगीं।

थके हारे कदमों से पहले वाशरूम गईं ,फिर फ्रिज से पानी निकाल कर वापस सोफे पर बैठ गईं।

" इस तरह अपनी मौत का इंतजार कोई कैसे कर सकता है भला…!"पानी का घूंट भरते हुए वह बुदबुदाईं।

अपने सिर पर हाथ रखे वह पुरानी यादों के भंवरजाल बहने लगीं..!

उनका एक खुशहाल परिवार था।

उनके पति निरंजन चौधरी ऊंचे पद पर मुख्य अभियंता थे।
उनके दो बच्चे थे।दोनों ही दोनों ही पढ़ाई में उतने ही तेज।

पैसोंकी कोई कमी नहीं थी।बच्चे अच्छे स्कूल कॉलेजों में पढ़ रहे थे।

जब एक एक कर दोनों बच्चे विदेश चले गए तब रिश्तेदारों और पास पड़ोसियों से मिली सराहनाओं से वह फूले नहीं समाया करतीं थी।

फिर धीरे धीरे बच्चों की शादियां हुईं और सब अपनी जिंदगी में रमते चले गए।

बच्चे अपनी जिंदगी में खुश थे और रंजना अपनी जिंदगी में।

सब कुछ ठीक चल रहा था ।अचानक ही निरंजन जी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई और रंजना जी एकाएक ही अकेली हो गईं।

दोनों बच्चों ने उन्हें साथ चलने के लिए कहा था उनका आत्मसम्मान आड़े आ गया।

बेटे बहू के साथ रहना…., वह भी विदेश में.. हमेशा के लिए !!
यह वह नहीं चाहती थी और बहुत हद तक दोनों बच्चे भी नहीं चाहते थे।

बच्चों के इरादे उन्होंने भांप भी लिया था ..!वह इस घर से…,अपने पति की यादों से निकलना नहीं चाहती थी… लेकिन अब ये रातें लंबी हो रही थी और दिन अंतहीन..!

अकेली जिंदगी कठिन लगने लगी थी! रंजना जी सोच रही थी।
उन्होंने ड्रावर में रखा निरंजन जी का मोबाइल निकाल लिया और उसे देखने लगी।

जब उनका मन भटकता और उदास होता तो वह निरंजन जी के मोबाइल खोल कर देखती रहतीं।

उनकी फोटोज, फाइल और व्हाट्सएप आदि को देख कर वह फिर से रिफ्रेश हो जातीं थीं।

वह व्हाट्सएप पर सरसरी निगाह डाल ही रहीं थीं कि उनकी नजर एक डाक्यूमेंट्स पर पड़ी!

उन्हें याद आया निरंजन जी ने ग्रामीण महिला उत्थान के लिए कुछ रुपयों से सहयोग किया था।

ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के शिक्षा और रोजगार के लिए एनजीओ और सरकार की टीम ने एक मिशन चलाया था, जिसमें महिलाओं को साक्षर करने के साथ-साथ रोजगार की भी व्यवस्था थी।

निरंजन जी को भी एनजीओ की टीम में कुछ सहयोग करने के लिए कहा था।

निरंजन जी को यह पसंद आया था ।

उनका सकारात्मक सोच देख कर सरकार ने उनसे कहा था
" यदि आप भी कुछ योजना शुरू करना चाहते हैं तो कर सकते हैं !हम आपकी मदद करने को तैयार हैं!"

अचानक रंजनाजी को याद आया।
निरंजन जी ने कहा था

" रंजना, तुम बुनाई बहुत अच्छी करती हो!
तुम गांव की महिलाओं को बुलाकर उन्हें बुनाई की प्रशिक्षण दो और छोटे-छोटे क्राफ्ट्स आदि बनाकर दो।

उन्हें हम मेला और ऐसी जगहों पर प्रमोट करेंगे। सरकार हमारी मदद करने के लिए तैयार है तो हम इस बात को आगे ले जा सकते हैं ।

इससे तुम्हारा भी मन लगा रहेगा और रिटायरमेंट के बाद हम एक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं !हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और गांव वालों का भी भला हो जाएगा।"

"बिल्कुल सही बात!"रंजना जी यह सुनकर बहुत ही खुश हो गई थी।

उन्होंने इस चीज पर काम भी करना शुरू कर दिया था लेकिन फिर अचानक ही एक सड़क दुर्घटना में निरंजन जी चल बसे और उसके बाद सब कुछ कागज में ही सिमट कर रह गया!!

अचानक इस बात को याद कर रंजना जी खुशी से ललक उठीं।

उन्होंने बहुत कुछ सोचा और फिर जाकर सो गईं एक नई सुबह के लिए।

दूसरे दिन जब कमला कामपर आई तो उसने रंजना जी को काफी खुश देखा।

वह हैरान हो गई।
" मां जी,क्या बात है..?आप बहुत खुश हैं?"

" कमला आ गई। लो चाय पियो!"

"यह क्या मांजी!,चाय मैं बना देती!"

"अरे तो क्या हुआ? रोज तो तुम ही बनाती हो।
आज मैंने बना दिया तो क्या हो गया…!
पियो चाय!"

"बड़ी अच्छी चाय है मांजी!"

रंजना जी ने चाय पीते हुए कहा
"कमला, मेरी बात सुनो ,तुम्हारे गांव देहात में जितनी भी महिलाएं यहां आकर मेरे से बुनाई सीखना चाहती है उसे बुला लिया करो।
मैं कल से सभी को बुनाई सिखाया करूंगी!"

" ठीक है मांजी, पर…!"
अभी उसकी बात खत्म नहीं हुई थी कि रंजना जी ने कहा
"बस सोच रही हूं कि तेरे अंकलजी की आखिरी इच्छा पूरी कर दूं…अगर ये हो गया तो उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और मैं भी शांति से मर सकूंगी!"

रंजना जी ने अपनी देखरेख में गांव की महिलाओं को बुनाई का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।

देखते देखते रंजना जी के पास गांव की महिलाओं, लड़कियों का हुजूम आने लगा।

रंजना जी अब दोहरे शेड्यूल में बुनाई सिखाया करती थीं।

देखते-देखते महीने गुजर गए।
रंजना जी सभी प्रशिक्षित महिलाओं को ऊन,धागे, बुनाई के क्रोशिए और सलाइयां देती थीं।
सभी की जिम्मेदारी बंटी हुई थी।

सभी अपने घर से बंदनवार ,टेबल क्लॉथ, शॉल, लड्डू गोपाल के स्वेटर बना कर लाकर दिया करती थी।

रंजना जी उन्हें शहर वाले मार्केट में भेजतीं थी।
स्थानीय प्रशासन की मदद से उन्होंने कई तरह के मेले और हुनर हाटों में इनका प्रदर्शन भी किया।

अब उनका यह काम चल निकला था।कई नामी ब्रांड और सरकारी संस्थानों ने उनके प्रोडक्ट्स हाथों हाथ खरीदना शुरू कर दिया था।

अब रंजना जी के पास न सिर्फ अपना आत्मसम्मान लौट आया था बल्कि वह कई लोगों के लिए मिसाल भी बन चुकीं थीं।

Advertisement
Tags :
Advertisement