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और कुएँ से निकल आया गंगदत्त -पंचतंत्र की कहानी

10:00 AM Sep 08, 2023 IST | Reena Yadav
और कुएँ से निकल आया गंगदत्त  पंचतंत्र की कहानी
Panchtantra ki kahani और कुएँ से निकल आया गंगदत्त
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एक मेढक था गंगदत्त । वह बड़ा ज्ञानी और सीधा-सादा था । हमेशा अच्छी और समझदारी की बात करता था । उसे झूठ और लाग-लपेट कतई पसंद नहीं था । इधर की बात उधर करना और ज्यादा छल-कपट भी उसे नहीं आता था । इसलिए मेढकों के दल में वह अलग-थलग पड़ गया था । कोई उससे बात नहीं करता था । बल्कि मौका देखते ही सभी उसकी खूब किरकिरी करते ।

इससे गगंदत्त दुखी हो गया । उसका मन भीतर ही भीतर रो रहा था । सोच रहा था, ‘मैंने तो अपना समझकर इन लोगों का हमेशा भला किया । इन्हें हर तरह के दुख और परेशानियों से बचाया । हर वक्त इनकी मदद की । पर अब ये मुझे ही आँख दिखाने लगे हैं । हाय, मेरा जीवन भी क्या है?’

गंगदत्त ने अपने मन की पीड़ा पत्नी से कही तो उसे भी बड़ा दुख हुआ । बोली, “आप ठीक कहते हैं । अपने तो इसलिए होते हैं कि कभी दुख-परेशानी में काम आएँ । इसीलिए लोग अपनों के बीच रहना पसंद करते हैं । पर जब अपने ही बेगानों से बढ़कर हो जाएँ तो भला अपनों के बीच रहने से क्या फायदा? इससे तो कहीं ज्यादा अच्छा है कि इस कुएँ से बाहर निकलो और कहीं इधर-उधर जाकर देखो । दुनिया में अच्छे लोग भी होते हैं । हो सकता है, कोई भला शख्स मिल जाए जिससे मिलकर हमें खुशी प्राप्त हो ।”

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“पर मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा ।” गंगदत्त बोला, “इसलिए कि मुझे तो इस कुएँ की बाहर की दुनिया का कुछ पता ही नहीं । तो भला बाहर निकलकर भी मैं क्या करूँगा?”

पर पत्नी ने समझाया तो गंगदत्त कुएँ से बाहर जाकर किस्मत आजमाने के लिए तैयार हो गया ।

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कुछ समय बाद किसान ने रहट चलाया, तो उसके डोल में बैठकर वह बाहर आ गया । फिर चकित नजरों से इधर-उधर देखता, तेजी से फुदकता हुआ आगे बढ़ने लगा ।

अचानक गंगदत्त की नजर एक विशाल साँप पर पड़ी । उसका नाम था प्रियदर्शन । गंगदत्त ने सोचा, ‘सांप तो मेढकों का दुश्मन है । अगर इसे अपने साथ कुएँ में ले चलूँ तो यह वहीं बिल बनाकर रहने लगेगा । फिर जिन लोगों ने मेरा अपमान किया है और मुझे बुरी तरह पीड़ा पहुँचाई है, उन शत्रुओं को एक-एक कर खाएगा । तब मेरा कलेजा ठंडा होगा ।’

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यह सोचकर गंगदत्त साँप के बिल के बाहर खड़े होकर आवाज देने लगा । बोला, “हे सर्पराज, मैं आपको एक खुशी से भरी अच्छी खबर देना चाहता हूँ ।”

सुनकर प्रियदर्शन बाहर आया । वह बूढ़ा हो गया था और अब भोजन तलाशने में उसे बड़ी मुश्किल होती थी । गंगदत्त का आना उसके लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था ।

वह तुरंत तैयार हो गया और गंगदत्त उसे साथ लेकर कुएँ में पहुँच गया । वहाँ जाकर उसने पत्नी को सारी बात सुनाई । सुनकर पत्नी दुखी होकर बोली, “अरे, यह आपने क्या किया? अपने ही कुल के लोगों को मारने के लिए एक इतना बड़ा बैरी ले आए! अब इसे कौन काबू में करेगा? अपने कुल के सगे-संबंधी बुरे सही, पर वे अच्छे-बुरे जैसे भी हैं, आखिर इतने खतरनाक तो नहीं हैं । पर आप तो साक्षात काल को सामने ले आए । यह तो अच्छा नहीं हुआ । मुझे समझ में नहीं आता, इतने बुद्धिमान और ज्ञानी होकर आपने यह क्या किया?”

इस पर गंगदत्त बोला, “जो पीड़ा और अपमान मैंने झेला है, उसे मैं ही जानता हूँ । बस, यह समझो कि मेरी छाती धधक रही है । अब एक शक्तिशाली जीव से मेरी मित्रता हो गई है तो सब मुझसे डरेंगे और यह एक-एक करके सबका काम तमाम कर देगा । बस, इससे ज्यादा मैं कुछ और नहीं सोच पाता हूँ ।”

सुनकर गंगदत्त की पत्नी चुप हो गई पर उसकी आँखों में गहरा दुख और अविश्वास था । हांलाकि बेचारी अब इस हालत में क्या करती?

प्रियदर्शन साँप अब उसी कुएँ में बिल बनाकर रहने लगा । गंगदत्त के कहने पर वह एक-एक करके सारे मेढकों को खाने लगा । होते होते हालत यह हुई कि गंगदत्त के परिवार के सिवा कुएँ में कोई और मेढक न रहा । इस पर गंगदत्त ने कहा, “बस सर्पराज, तुम्हारे यहाँ आने का प्रयोजन पूरा हो गया । अब तुम अपने घर की राह लो ।”

इस पर प्रियदर्शन जोर से हँसा । बोला, “कैसा घर? जहाँ कोई शख्स रहने लगे और जहाँ उसे जीवन जीने की सारी सुख-सुविधाएँ मिलने लग जाएँ, बढ़िया भोजन का इंतजाम हो जाए, बस वही तो उसका घर है । मैं अब इस कुएँ को छोड़कर नहीं जाऊँगा । हाँ, मुझे भूख लगी है । मैं किसी न किसी को तो खाऊँगा ही ।”

कहकर उसने गंगदत्त के एक बेटे को खा लिया ।

गंगदत्त और उसकी पत्नी अत्यंत व्याकुल हो उठे । पर प्रियदर्शन शक्तिशाली था । गंगादत्त ने खुद ही तो उस कराल काल को अपने घर बसाया था । अब भला उसे कहता क्या? प्रियदर्शन ने एक-एक कर गंगदत्त के सारे बेटों को खा लिया और पत्नी को भी खा लिया । अब बच गया खाली गंगदत्त ।

प्रियदर्शन उसे भी खाना चाहता था । पर तभी गंगदत्त को एक बात सूझी । उसने कहा, “देखो सर्पराज, पास ही एक सरोवर है, वहाँ बहुत सारे मेढक रहते हैं । तुम मुझे इजाजत दो तो मैं उन मेढकों को यहाँ ले आऊँ । फिर तुम उन्हें मजे से खाना ।”

सुनकर प्रियदर्शन ने खुशी-खुशी हाँ कह दी । गंगदत्त उसी सरोवर में पहुँचा और पिछला दुख भरा जीवन भूलकर अब नए सिरे से जीवन जीने लगा । फिर से उसका परिवार बस गया था और धीरे-धीरे वह पिछले दुख का घाव भूलने लगा था ।

इतने में एक दिन एक गोह आई । बोली, “सुनो गंगदत्त, तुम्हारा मित्र प्रियदर्शन बड़ी आतुरता से तुम्हें याद कर रहा है । तुम्हारी याद में उसने अनशन कर दिया है और कुछ भी नहीं खा रहा है । उसने कहा है कि अगर और मेढक न मिले हों, तो खुद गंगदत्त ही यहाँ आ जाए । उसने सौगंध खाई है कि वह तुम्हारा किसी भी तरह का नुकसान नहीं करेगा । इसलिए तुम एक बार जल्दी से जाकर उससे मिल लो ।”

इस पर गंगदत्त बोला, “मैं एक बार बहुत बड़ा धोखा खा चुका हूँ वही बहुत है और पूरे जीवन भर मुझे कष्ट पहुँचाता रहेगा । अब मैं फिर से वही धोखा नहीं खाना चाहता । हाँ ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि मुझे सही समय पर अक्ल आ गई और मैं उस कुएँ से बाहर आ गया । वरना आज मैं तुमसे बात करने के लिए जीवित ही न होता ।”

सुनकर गोह लज्जित होकर वापस लौट आई ।

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