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बड़े गवैया गर्दभलाल! -पंचतंत्र की कहानी

11:00 AM Sep 11, 2023 IST | Reena Yadav
बड़े गवैया गर्दभलाल   पंचतंत्र की कहानी
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एक था गधा । दिन भर धोबी उससे खूब मेहनत का काम लेता और रात को चरने के लिए खुला छोड़ देता था । लिहाजा रात को वह निरुद्देश्य इधर से उधर घूमता रहता था ।

अचानक एक दिन इसी तरह घूमते-घूमते उसे एक सियार मिला और दोनों में खूब अच्छी दोस्ती हो गई । दोनों ने एक-दूसरे को अपने सुख-दुख का हाल बताया । गधा तो अपनी बेबसी की कहानी सुनाते-सुनाते रो ही पड़ा । इसलिए कि धोबी उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करता था । पर सियार ने कहा, “तुम चिंता न करो, हम मिलकर रहेंगे तो खूब मौज करेंगे । फिर तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएँगे ।”

और सचमुच सियार की दोस्ती में गधा अपने सारे दुख भूल गया ।

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एक बार की बात, दोनों दोस्त एक खेत में पहुँचे । उसमें खूब ककड़ियों उगी हुई थीं । पास ही एक चारपाई पर उस खेत का रखवाला किसान भी सो रहा था । सियार ने कहा, “मैं बाहर किसान की चारपाई के पास बैठ, उस पर नजर रखता हूँ । जैसे ही किसान को नींद आएगी, मैं तुम्हें इशारा कर दूँगा । बस, तुम बाड़ा तोड़कर अंदर चले जाना । फिर मैं भी आ जाऊंगा । दोनों जी भर ककड़ियां खाएंगे ।”

यही हुआ । जैसे ही किसान सोया, सियार ने गधे को इशारा कर दिया । पहले गधा बाड़ तोड़कर अंदर घुसा, फिर पीछे पीछे सियार भी आ गया । दोनों ने खूब ककडियाँ खाईं और जमकर मौज ली । सुबह होने से पहले ही वे खेत से भाग निकले ।

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सुबह किसान उठा तो उसे समझ में नहीं आया कि इतनी चौकसी के बावजूद रात में ये ककड़ियाँ कौन खा गया?

अब तो गधे और सियार का यह रोज का ही क्रम बन गया । यों ही एक-एक कर कई दिन निकल गए । दोनों दोस्तों के दिन खूब मस्ती से बीत रहे थे । उधर किसान हैरान था । वह बार-बार यही सोचता था कि मैं तो रात भर रखवाली करता हूं पता नहीं कब बाड़े का दरवाजा तोड़कर कोई पशु अंदर घुस जाता है? वह ताक में रहने लगा कि अब कोई पशु पकड़ में आए तो वह उसे हरगिज नहीं छोड़ेगा ।

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एक दिन की बात, उस दिन खूब खिला-खिला मौसम था । बढ़िया चाँदनी रात थी और ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी । सियार ने उसी तरह बाहर बैठकर किसान की निगरानी की । जब वह सोया तो उसने गधे को इशारा कर दिया । गधा झट बाढ़ तोड़कर अंदर आ गया पीछे-पीछे सियार भी । दोनों ने खूब छककर ककड़ियाँ खाई ।

तभी अचानक गधे के मन में एक विचार आया, ‘अहा कैसी सुंदर चांदनी चारों तरफ बिखरी हुई है । धरती पर जैसे किसी ने उजली-उजली चादर बिछा दी हो । मंद-मंद हवा चल रही है । चारों ओर कितनी शांति, कितनी शीतलता है ।’

वह सियार से बोला, “मित्र ऐसे बढ़िया मौसम में मेरा तो गाना गाने का मन कर रहा है ।”

सियार ने कहा, “न भई न, ऐसा मत करना । अगर तुम्हारा गाना सुनकर किसान उठ गया तो हम दोनों की हड्डी-पसली एक कर देगा । वैसे भी तुम कोई गायक तो हो नहीं । क्यों खामखा यह मुसीबत मोल लेते हो?”

“क्या कहा, मैं गायक नहीं हूँ?” सियार की बात सुनकर गधे को बहुत गुस्सा आया । बोला, “शायद तुम जानते नहीं कि मैं गर्दभ हूँ, लिहाजा गंधर्व जाति का हूँ । हमारी तो विशेषता ही संगीत और गाना-बजाना है । मुझसे बढ़कर गायक भला दूसरा कौन हो सकता है? तुम भी लगता है, मेरी महान प्रतिभा और गायन-कला से परिचित नहीं हो । अब तो मैं जरूर गाऊंगा ।”

सियार घबराकर बोला, “अच्छा मामा, तुम गायक हो, बहुत बड़े गायक हो । मैं मान गया । पर जरा मौका तो देखो । बाहर से किसान लाठी लेकर दौड़ा तो…!”

“नहीं-नहीं, अब तो तुमने मुझे चुनौती दे दी है । मैं गाऊंगा और गाकर दिखा दूंगा कि मैं कैसा अपूर्व गायक हूँ । आज तुम देखोगे मेरी गायन-कला का अद्भुत कमाल! वैसे भी गाने वाले तो अपनी भावना की उमंग में गाते हैं । जब मन हो तो गाते हैं । उन्हें इस बात की क्या परवाह कि किसान जाग रहा है या सो रहा है?”

सियार बोला, “अच्छा बाबा, अच्छा! मैं बाहर चला जाऊँ, फिर गाना । मैं किसान के पास बैठकर निगरानी करूंगा । वह जागा तो मैं तुम्हें इशारा कर दूंगा, ‘तुझ झटपट भाग लेना ।”

थोड़ी देर में ही गधे के रेंकने की आवाज हवा में चारों ओर गूँजने लगी । किसान जो बगल में ही सो रहा था, हड़बड़ाकर उठा और लाठी लेकर दौड़ पड़ा । वह धीरे से बड़बड़ा रहा था, “आज नहीं छोडूँगा बच्चू अब मैं समझ गया, रोज रोज मेरी ककड़ियाँ कौन खाता है ?”

इतने में सियार ने भी गधे को सावधान कर दिया । बोला, “अरे ओ गायक मामा जी, सुनो! तुम्हारे बेसुरे गाने से संगीत के देवता भगवान नटराज कुद्ध हो गए हैं । लिहाजा जान बचाना चाहते हो, तो झटपट भागो, वरना…!

पर गधा भाग पाता, इससे पहले ही किसान लाठी लेकर पहुंच गया और उसने गधे की खूब अच्छी मरम्मत कर डाली ।

थोड़ी देर में गधा किसी तरह जान बचाकर भागा और सियार के पास आ गया । सियार ने मुसकराते हुए कहा, “मामा, गाने का इनाम मिला?”

गधा बोला, “मिला! उस दुष्ट ने मेरी हड्डी-पसली एक कर दी । ये लोग क्या जानें गायन और संगीत की महान कला! इन अरसिक लोगों के आगे तो गाना ऐसे ही है, जैसे भैंस के आगे बीन बजाना । चलो, फिर भी मैंने बढ़िया रियाज तो कर ही लिया ।”

सियार बोला, “हाँ मामा, सो तो है!” और दोनों हँसते-हंसते वहां से चल पड़े ।

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