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एक अनमोल श्लोक ने बदल दिया जीवन -पंचतंत्र की कहानी

12:00 PM Sep 04, 2023 IST | Reena Yadav
एक अनमोल श्लोक ने बदल दिया जीवन  पंचतंत्र की कहानी
Panchtantra Ki Kahani एक अनमोल श्लोक ने बदल दिया जीवन
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सागरदत्त थे नगर के एक बड़े धनी और प्रसिद्ध व्यापारी । उनका बेटा समझदार और बुद्धिमान युवक था जो हर वक्त कुछ न कुछ सोचता रहता था । उसने कई ग्रंथों का अध्ययन किया था और उनकी अच्छी बातों को भी अपने जीवन में उतार लिया था । इसीलिए वह चाहता था कि अपना जीवन अपने ढंग से जिए ।

लेकिन सागरदत्त को यह बात पसंद नहीं थी । वे चाहते थे कि बेटा भी उन्हीं की तरह व्यापार में मन लगाए । उनका कहना था कि जीवन में धन है तो सब कुछ है, धन के बिना कुछ नहीं है । इसीलिए वे बार-बार बेटे को व्यापार में ध्यान लगाने के लिए कहते थे । पर बेटे पर उनकी बातों का कोई असर ही नहीं होता था ।

एक बार की बात, वह कहीं जा रहा था । रास्ते में उसे एक विद्वान व्यक्ति मिला जो सौ मुद्राओं में एक श्लोक बेच रहा था । सागरदत के बेटे ने पूछा, तो उसने कहा, कि यह श्लोक बहुत महत्त्वपूर्ण है और जीवन में पग-पग पर काम आने वाला है । इसीलिए इसका इतना अधिक मूल्य है ।

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सुनकर व्यापारी के बेटे को बड़ा कौतुक हुआ । उसने झट जेब से सौ मुद्राएँ निकाली और विद्वान व्यक्ति का वह श्लोक खरीद लिया । फिर उसने बड़े ध्यान से उस श्लोक को पढ़ा । उस कागज पर लिखे हुए श्लोक का अर्थ था कि ‘किसी प्राणी को जीवन में जो मिलना है, वह तो हर हाल में मिलता ही है । और जो नहीं मिलना होता, वह कितनी ही कोशिश करने पर भी आखिर नहीं मिलता ।’

सागरदत्त के नवयुवक बेटे को यह बात अच्छी लगी । उसने उसे गाँठ में बाँध लिया ।

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वह घर आया तो पिता के पूछने पर उसने बताया कि उसने सौ मुद्राओं में एक बड़ा अच्छा श्लोक खरीद लिया है ……..

सुनकर पिता ने सिर पीट लिया । बोले, “मुझे हैरानी है कि मेरे बेटे होकर भी तुम इतने मूर्ख और नालायक कैसे हो गए?”

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इस पर व्यापारी के बेटे को बड़ा दुख हुआ । वह उसी समय अपना घर छोड़कर निकल पड़ा । चलते-चलते वह एक अनजान शहर में जा पहुंचा । वहां वह यहां से वहां, वहां से यहाँ घूमने लगा । रहने का कोई ठीया-ठिकाना तो था नहीं । लिहाजा जहां भी उसका मन होता, वहां ठहर जाता । किसी न किसी तरह भोजन का प्रबंध भी हो जाता । रास्ते में जो भी मिलता या उससे बात करता उससे वह सिर्फ एक ही बात कहता था कि “जो प्राप्त होने वाला है, वह तो हर हाल में मिलता ही है और जो प्राप्त नहीं होने वाला, वह कितनी ही कोशिश कर ले, हाथ में नहीं आता ।”

उसकी बातें सुनकर लोगों ने उसे सिद्धपुरुष समझ लिया और उसका विचित्र सा नाम रख दिया-प्राप्तव्य अर्थ । जो कुछ वह कहा करता था, उसका सार भी यही था । लिहाजा लोगों को उसका यही नाम जंचा ।

उस अनजान शहर में व्यापारी का बेटा प्राप्तव्य अर्थ कई दिनों तक भटकता रहा । वहाँ उसे एक से एक अनोखे अनुभव हुए । यहाँ तक कि राजकुमारी और मंत्री की बेटी भी उस पर रीझ गई । बिना माँगे हर ओर से उस पर सौभाग्य बरसने लगा । वह देखकर हैरान होता और इससे उस श्लोक पर उसका विश्वास और अधिक बढ़ गया । लोग उसे देखकर और उसकी बातें सुन-सुनकर चकित होते । उसकी प्रशंसा करने वाले बहुत से लोग थे जो चाहते थे कि वह उन्हीं के साथ रहे । पर व्यापारी का वह विचारशील बेटा तो बस, यहाँ से वहाँ घूमता ही रहता, जैसे उसके पैर में चक्कर हों! वह सबसे एक ही बात कहता था कि जो मिलने वाला है वह तो हर हाल में मिलता ही है और जो मिलने वाला नहीं है, वह कितनी ही कोशिश कर लें, कभी हासिल नहीं होता । लोग उसकी बात सुनकर हैरान होते । और मन ही मन उसकी बातों का अर्थ सोचते रहते ।

एक दिन की बात, प्राप्तव्य अर्थ कहीं जा रहा था । सामने से एक बारात आ रही थी । वह वरकीर्ति की बारात थी जिसका विवाह एक बड़े सेठ की बेटी से हुआ था । प्राप्तव्य अर्थ भी उस बारात में शामिल हो गया और बारात के साथ-साथ विवाह-मंडप में पहुँच गया ।

वह उस नगर के बहुत बड़े सेठ का भव्य महल था । विवाह-मंडप खूब सजाया गया था और वह दूर से दीपमालाओं के कारण झिलमिल-झिलमिल कर रहा था । प्राप्तव्य अर्थ को यह नजारा अच्छा लगा । अब कौतुक से भरकर वह वहीं खड़ा हो गया ।

तभी अचानक एक अजीब सी घटना घटी । उस बारात में आया एक हाथी अचानक बिगड़ गया । वह मदोन्मत हाथी सामने जो भी चीज नजर आए? उसे कुचलता हुआ दौड़ रहा था । दौड़ते-दौड़ते वह दुल्हन के सामने आ गया । लग रहा था वह उस दुल्हन को भी गुस्से में अपने पैरों तले कुचल देगा । या फिर सूँड में उठाकर दूर फेंक देगा ।

दुल्हन ने कातर होकर दूल्हे की ओर देखा । मगर उसका कायर दूल्हा तो उसे बचाने की बजाय खुद ही डरकर भाग निकला ।

प्राप्तव्य अर्थ ने दूर से यह घटना देखी तो समझ गया कि दुल्हन के प्राण संकट में हैं । उसने अपना कर्त्तव्य निश्चित कर लिया । दौड़कर वहाँ पहुँचा और आगे बढ़कर बड़ी हिम्मत के साथ मदमस्त हो रहे उस हाथी को काबू में लिया । प्राप्तव्य अर्थ की वीरता के साथ-साथ उसकी बुद्धिमता और समझदारी ने भी दुल्हन को प्रभावित किया । उसे पता था कि प्राप्तव्य अर्थ के कारण ही मेरे प्राण बच सके । लिहाजा उसने उसी समय घोषणा की कि “विवाह-मंडप से कायर की तरह भाग जाने वाले दूल्हे से मैं विवाह नहीं करूंगी । मैं इसी वीर और बुद्धिमान युवक प्राप्तव्य अर्थ से विवाह करूंगी जिसने मदोन्मत्त हाथी से मुझे बचा लिया और मुझे नया जीवन दिया ।”

सुनकर लोग हक्के-बक्के रह गए । कुछ देर में वर-पक्ष के लोग और दूल्हा वहाँ आया, तो दुल्हन का निर्णय सुनकर वे तीव्रता से विरोध करने लगे । खासा झगड़ा शुरू हो गया ।

इतने में किसी ने राजा को भी सूचना दे दी । राजा वहाँ आया । सारी बात सुनकर उसने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, “जो पति इस कदर कायर था कि दुल्हन को अशक्त छोड़कर विवाह-मंडप से भाग निकले, उसे भला दुल्हन का पति होने का क्या हक है? जिसने वीरता से उसकी रक्षा की है वही उसके पति होने योग्य है । वैसे भी अगर दुल्हन उस मदमस्त हाथी की शिकार ही जाती और जान से हाथ धो बैठी तो भला दूल्हा विवाह किससे करता? लिहाजा निश्चित रूप से विवाह करने का हक विवाह-मंडप छोड़कर भाग जानेवाले कायर पति का नहीं, प्राप्तव्य अर्थ का है । दुल्हन का निर्णय एकदम सही है ।”

फिर तो सब ओर राजा और व्यापारी सागरदत्त के बुद्धिमान बेटे की तारीफ होने लगी ।

कुछ दिनों बाद प्राप्तव्य अर्थ अपने नगर लौटा, तो उसके पिता सागरदत्त सारी बात सुनकर बहुत खुश हुए ।

अब उन्हें अपनी गलती पता चल गई थी और समझ में आ गया था कि उसी बेशकीमती श्लोक ने आखिर उसके बेटे को पूरा जीवन बदल दिया, जिसे उसने सौ मुद्राओं में खरीदा था ।

सच ही कहा गया है कि ज्ञान का कोई मोल नहीं है । वह दुनिया का सबसे अनमोल खजाना है । व्यापारी के बुद्धिमान बेटे ने उसी की कद्र की और एक दिन अपने सौभाग्य से सभी को मुग्ध और चकित कर दिया ।

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