फिर से मूर्ख बना लंबकर्ण -पंचतंत्र की कहानी
किसी वन में एक सिंह रहता था । उसका नाम था करालकेसर । किसी समय वह बड़ा बलशाली था । उसकी दहाड़ से पूरा जंगल थर्रा उठता था । पर फिर एक बार हाथी से उसका भीषण युद्ध हुआ । इस युद्ध में शेर करालकेसर बुरी तरह घायल हो गया । अब तो वह इतना अशक्त और लाचार हो गया था कि खुद अपना भोजन जुटा पाना भी उसके लिए मुश्किल था ।
उस बूढ़े और अशक्त शेर का एक स्वामिभक्त सेवक था सियार धूसरक । वह उसकी बड़ी चिंता करता था और आड़े वक्त में उसकी मदद करता था । एक बार की बात, करालकेसर को बड़े जोर की भूख लगी । उसने धूसरक से कहा कि वह जाकर उसके लिए भोजन का प्रबंध करे ।
धूसरक जंगल से निकल पास के एक गाँव की ओर चल दिया । वहाँ उसे एक गधा दिखाई दिया जो बड़ा दुखी और चिंताकुल था । धूसरक ने उसके पास जाकर कहा, “क्या बात है मामा! तुम बड़े परेशान लगते हो ।”
गधा सचमुच उस दिन बड़ा दुखी था । बोला, “देखो भई मैं सारा दिन बुरी तरह काम करता हूँ फिर भी धोबी बुरी तरह से मुझे मारता है । तुम ही बताओ, ऐसे जीवन से क्या फायदा?”
इस पर धूसरक ने झूठी सहानुभूति दिखाते हुए कहा, “मामा, तुम जंगल में चलकर क्यों नहीं रहते? वहाँ इतनी अच्छी कोमल-कोमल घास है और ऐसी शीतल सुहानी हवा बहती है कि तुम्हारा दिल खुश हो जाएगा । फिर वहाँ तुमसे विवाह के लिए आतुर तीन गर्दभिणियाँ भी हैं । अगर चाहो तो झटपट मेरे साथ चलो, फिर ऐसा सुख तुम्हें कभी नसीब नहीं होगा ।”
सुनकर गधे को अच्छा लगा । पर कुछ सोचकर बोला, “लेकिन मित्र, जंगल में हम घास-पास वाले जीवों का कैसे गुजारा होगा? हम जैसे लोग किसी न किसी का शिकार बन ही जाएँगे ।”
“अरे कैसी बात करते हो मामा?” सियार धूसरक बोला, “मैं हूँ न! मेरे होते हुए कोई तुम्हारा बाल बाँका नहीं कर सकता । फिर तीन-तीन इतनी सुंदर गधियाँ वहाँ हैं कि तुम्हें लगेगा कि तुम्हारा जीवन धन्य हो गया । और खाने को तो एक से एक ऐसी बढ़िया वनस्पतियाँ हैं, जैसी शायद खाली स्वर्ग में ही होती हों ।”
अब तो गधा झटपट तैयार हो गया । बोला, “चलो, मैं अभी तुम्हारे साथ चलता हूँ ।”
धूसरक सियार मीठी-मीठी बातों में फंसाकर आखिर गधे की उस कसलकेसर शेर के पास ले आया ।
शेर गधे को देखते ही उसे मारने के लिए झपटा । पर इतनी देर में गधा भी चौकन्ना हो गया था । उसने तेजी से दुलत्ती मारी और भाग निकला । शेर बेचारा ‘हाय’ कहकर बिलबिलाता रह गया ।
गधे के जाने के बाद धूसरक सियार ने शेर से कहा, “अरे, आपकी यह कैसी हालत है? आप तो सामने आए निरीह पशु का भी शिकार नहीं कर सकते तो फिर आपके जीने का फायदा?”
करालकेसर लज्जित हो गया । बोला, जब तक मैं उस पर झपटने की तैयारी करता, तब तक उसने जोर की दुलत्ती मार दी । तो भला मैं क्या करता? अब झटपट जाओ और किसी पशु को लेकर आओ । क्योंकि यह गधा तो अब दोबारा आने से रहा ।”
“नहीं-नहीं, मैं जाता हूँ । फिर से उसी गधे को लेकर आपके पास लेकर आता हूँ । धूसरक सियार ने कहा ।
इस पर शेर को यकीन नहीं आया । बोला, “क्या बात करते हो? वह गधा क्या फिर से यहाँ आ जाएगा? जब एक बार सब कुछ वह जान गया और खुद अपनी आंखों से उसने देख भी लिया, तो फिर वह यहां क्यों आएगा?”
इस पर धूसरक सियार बोला, “हाँ वह आएगा और जरूर आएगा । अगर थोड़ी चतुराई और बुद्धिमत्ता से काम लिया जाए तो भला क्या नहीं हो सकता?”
थोड़ी देर में धूसरक सियार फिर से गधे के पास पहुँचा । उस लंबकर्ण गधे ने नाराज होकर कहा, “बड़ी अच्छी जगह ले गए थे तुम मुझे । मेरी तो जान के लाले ही पड़ गए ।”
इस पर धूसरक सियार ने हंसते हुए कहा, “तुम भी मामा, यों ही रहे । वह गधी तो तुम्हें प्यार करने के लिए आगे बड़ी और तुम भाग निकले ।”
“क्या कहा? वह गधी थी? देखने में तो नहीं लगती थी ।” लंबकर्ण गधे ने अविश्वास से कहा ।
घूमकर सियार बोला, “अरे मामा, मैंने कहा था न कि वहाँ जंगल में एक से एक बढ़िया वनस्पतियाँ हैं । इसी से तो वह गधी इतनी हृष्ट-पुष्ट हो गई और उसकी पीठ पर ऐसे सुंदर लहराते हुए बाल निकल आए कि तुम पहचानने में ही भूल कर गए । अरे, मैं तो कहता हूँ तुम खुद कुछ दिन उस जंगल की आबो-हवा में रहोगे तो इस कदर बदल जाओगे कि खुद अपने आपको पहचान नहीं पाओगे ।”
अब तो गधा फिर से झटपट जंगल में जाने के लिए तैयार हो गया । धूसरक सियार मीठी-मीठी बातों के जाल में फँसाकर दोबारा उसे शेर के पास ले आया । इस बार उस बूढ़े और अशक्त शेर करालकेसर ने कोई भूल नहीं की और एक ही झपाटे में उसका काम तमाम कर दिया । फिर सियार को उसकी रक्षा करने के लिए कहकर स्नान करने चला गया ।
उसके जाने के बाद धूसरक सियार अपने लालच को रोक नहीं पाया । उसने झटपट उस गधे के कान और दिल खा लिया ।
शेर लौटकर आया तो लंबकर्ण गधे के कान और दिल को न पाकर, क्रोध से भर गया । बोला, “दुष्ट तूने मेरे शिकार को जूठा कर दिया । अब मैं इसे कैसे खाऊँगा ।”
इस पर सियार चतुराई से बात बनाते हुए बोला, “महाराज, इसके कान और दिल तो था ही नहीं । वरना आप ही सोचिए एक बार धोखा खाने के बात यह एक बार फिर आपके पास कैसे आ जाता?”
सुनकर करालकेसर संतुष्ट हो गया । उसने सियार को उसका हिस्सा दिया और फिर लंबकर्ण को खाने में जुट गया ।
जो शख्स अपनी अक्ल का इस्तेमाल नहीं करता, वह एक बार धोखा खाकर भी नहीं सीखता । फिर-फिर उसी गड्ढे में जा गिरता है । ऐसा ही तो वह मूर्ख लंबकर्ण गधा था, जिसने मूर्खता के कारण बिना बात अपनी जान गँवाई ।