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घोड़े की तरह हिनहिनाओ -पंचतंत्र की कहानी

11:00 AM Sep 09, 2023 IST | Reena Yadav
घोड़े की तरह हिनहिनाओ  पंचतंत्र की कहानी
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किसी राज्य में नंद नाम का एक राजा था । वह बड़ा वीर और पराक्रमी था । दूर-दूर तक उसका नाम और प्रसिद्धि थी । उसकी वीरता के कारण शत्रु बेहद आतंकित रहते थे । अपने इन्हीं गुणों के कारण उसने दूर-दूर तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था ।

नंद का मंत्री था वररुचि । वह शास्त्रों का बहुत बड़ा पंडित और विद्वान था । उसकी बुद्धिमत्ता की सब कद्र करते थे । राजा नंद भी उसका बड़ा आदर करता था और उसकी सलाह मानता था । साथ ही वररुचि त्रिकालदर्शी भी था । कहीं भी कुछ भी हो रहा हो, वह झट जान जाता था ।

एक बार की बात, राजा नंद की रानी उससे रूठ गई । नंद ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की, पर उस पर कोई असर नहीं हुआ । तब नंद ने उससे पूछा, “अच्छा बताओ, तुम्हें मनाने के लिए मैं क्या करूँ? कैसे तुम मुझसे प्रसन्न होओगी?

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इस पर रानी ने गर्वपूर्वक इठलाकर कहा, “तुम घोड़ा बनकर मुझे अपने ऊपर बैठाओ और फिर घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए ही इस कक्ष की परिक्रमा करो । तब मैं तुमसे खुश होऊंगी ।”

हारकर नंद को यही करना पड़ा । रानी को पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए उसने उस कक्ष के कई चक्कर लगाए । तब रानी की हँसी छूट गई और उसकी नाराजगी दूर हुई ।

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उसी रात की बात है, वररुचि की पत्नी भी उससे नाराज हो गई । वररुचि ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह किसी तरह मान ही नहीं रही थी । तब वररुचि ने हारकर कहा, “अच्छा, अब तुम्हीं बताओ कि कैसे तुम्हारा गुस्सा दूर होगा? मैं क्या करूँ, जिससे तुम मान जाओ ।”

इस पर वररुचि की पत्नी ने बड़ी अजीब शर्त रखी । कहा, “तुम अपना सिर मुँडवाकर मेरे पैरों पर गिरकर माफी माँगो तब मैं मानूँगी ।”

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वररुचि भारी विद्वान और नीति-निपुण थे । पर पत्नी की जिद के आगे उनकी नीति-निपुणता और विद्वत्ता धरी रह गई । उन्होंने उसी वक्त सिर मुँडवाया और पत्नी के पैरों पर गिरकर हाथ जोड़कर माफी माँगी ।

तब उनकी पत्नी ने कहा, “ठीक है, अब मेरी नाराजगी दूर हो गई ।”

अगले दिन वररुचि राजदरबार-में गए तो नंद ने उनके मुंडवाए हुए सिर को देखकर थोड़े परिहासपूर्ण शब्दों में पूछा, “अरे, ऐसा कौन सा पर्व था आचार्य, जिस पर आपने अपना सिर मुंडवा लिया?”

इस पर वररुचि ने अपने अंतर्ज्ञान से पता उन्हें रात में राजानंद के महल की विचित्र लीला भी दिखाई दे गई ।

उन्होंने ने मुसकराते हुए कहा, “हाँ महाराज, कल तो बड़ा ही विशेष पर्व था । मैंने उसी विशेष पर्व पर अपने बाल मुंडवाए, जिस पर राजाओं का राजा, अत्यंत वीर और बली राजा नंद घोड़े की तरह हिनहिनाता हुआ अपनी पत्नी को पीठ पर बैठाकर कमरे का चक्कर लगा रहा था ।"

सुनकर राजा नंद को रात की झट घटना याद आ गई और वह झेंप गया । राजा नंद समझ गया था कि पत्नियों की जिद के आगे किसी बड़े से बड़े वीर की वीरता और बड़े से बड़े पंडित का ज्ञान भी काम नहीं करता । इसलिए इसे लेकर किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए ।

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