For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

जब माँगा वरदान मंथरक जुलाहे ने! -पंचतंत्र की कहानी

12:00 PM Sep 11, 2023 IST | Reena Yadav
जब माँगा वरदान मंथरक जुलाहे ने   पंचतंत्र की कहानी
Advertisement

एक था जुलाहा । उसका नाम था मंथरक । वह कपड़े बुनकर गुजारा करता था । एक बार उसके लकड़ी के औजारों में से एक औजार टूट गया । तब लकड़ी लेने के लिए वह जंगल में गया । वहाँ एक बड़ा विशाल वृक्ष था । मंथरक को लगा, ‘औजार बनाने के लिए इस पेड़ की लकड़ी ठीक रहेगी । कुछ ज्यादा लकड़ी ले चलूँ तो और भी बहुत से काम निकल जाएँगे ।’

यह सोचकर जैसे ही उसने उस पेड़ पर कुल्हाड़ी चलानी चाही, उसी समय एक दिव्य पुरुष उसके सामने आ खड़ा हुआ ।

उसने अनुरोध करते हुए कहा, “मैं यक्ष हूँ । इसी पेड़ पर मेरा घर है । अगर तुम इसे न काटो तो जो वरदान चाहो मैं दे सकता हूँ ।”

Advertisement

सुनकर मंथरक जुलाहे ने खुश होकर कहा, “ठीक है, पर मुझे थोड़ा सोचने का समय दे दीजिए । कल आकर मैं वरदान माँग लूँगा ।”

जुलाहा जंगल से लौट रहा था, तभी रास्ते में उसे एक नाई मिला । उसका नाम था नकुल । वह मंथरक का दोस्त था ।

Advertisement

नकुल बोला, “क्यों भई आज बड़े खुश लग रहे हो? क्या बात है?” इस पर मंथरक जुलाहे ने पूरी घटना बता दी । फिर कहा, “अब कौन सा वर मांगू मैं यही सोच रहा हूँ ।”

नकुल ने कहा, “इसमें सोचने की क्या बता है? अपने लिए राज्य माँग लो । राज्य के साथ ही सारी खुशियाँ खुद-ब-खुद मिल जाती हैं । तुम्हें राजपाट मिले तो मुझे मंत्री बना लेना । फिर हम खूब ठाट से रहेंगे । इस जन्म का आनंद तो लेंगे ही, उस जन्म में भी खूब सुख पाएँगे ।”

Advertisement

जुलाहा बोला, “बात तो तुम्हारी ठीक है, पर मैं जरा घर जाकर पत्नी से चर्चा करना चाहता हूँ ।”

नकुल ने कहा, “देखो भई, मुझे तो इसमें खतरा लग रहा है । कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी पत्नी कोई एकदम अटपटी राय दे दे और तुम मुसीबत में पड़ जाओ । कई बार लोग पत्नी के कहने में आकर बड़े ऊटपटाँग काम भी कर जाते हैं और उनसे उनकी बड़ी जग हँसाई होती है । इससे तो अच्छा है, जो तुम्हें ठीक लगता है, वह करो ।”

इस पर मंथरक जुलाहे ने कहा, “कुछ भी हो, मैं एक बार पत्नी से सलाह जरूर करूँगा । वह बड़ी भली है । मेरा अच्छा-बुरा समझती है और हमेशा अच्छी सलाह ही देती है । लिहाजा जो वह कहेगी, वैसा ही करूँगा ।”

घर आकर मंथरक जुलाहे ने पत्नी को सारी बात बताई । फिर कहा, "मैं जंगल से लौट रहा था, तो रास्ते में नकुल नाई मिल गया । उसका कहना था कि मैं यक्ष से अपने लिए राज्य माँग लूँ । अब तुम जैसा ठीक समझो, मैं वैसा ही करूँगा ।”

सुनकर पत्नी ने कहा, “अरे, राज्य लेकर भला कौन सुखी हुआ है? राज्य के कारण ही बिना बात शत्रुओं के षड्यंत्र और हर बार मार-काट चलती रहती है । इसी राज्य के कारण तो रामचंद्र जी को वनवास मिला । पांडवों को भी क्या-क्या तकलीफें नहीं झेलनी पड़ी । इस राजसत्ता के पीछे कितने ही लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ गया । राज्य होने पर भाई भाई का और मित्र मित्र का शत्रु हो जाता है और वे एक-दूसरे की जान लेने में भी नहीं हिचकते । इसलिए राज्य की बात तो छोड़ ही दो । मैं तो चाहती है कि तुम अपने लिए एक और सिर मांग लो, जो पीछे की तरफ हो । साथ ही दो और हाथ भी माँग लो । तब तुम खूब मजे से चार हाथों से काम कर सकोगे । दो हाथों से जो काम करोगे, उससे हमारा गुजारा होता रहेगा, बाकी दो हाथों की मेहनत से जो धन उसे इकट्ठा करके रखते जाएँगे । और फिर खूब धन हो जाएगा तो बड़े आराम से गुजर-बसर करेंगे ।”

मंथरक जुलाहे को पत्नी की यह बात जँच गई । अगले दिन यक्ष के पास जाकर उसने अपने लिए पीछे की ओर एक सिर तथा दो और हाथ माँग लिए । सुनकर यक्ष को कुछ अजीब तो लगा, पर उसने यह वर दे दिया । फौरन मंथरक जुलाहे का पीछे की ओर भी एक सिर निकल आया, दो हाथ भी और हो गए ।

वह खुशी-खुशी घर आ रहा था । लेकिन रास्ते में जैसे ही गाँव वालों ने दो सिर और चार हाथों वाले इस विचित्र आदमी को देखा, उन्होंने उसे राक्षस समझा और पत्थर फेंक-फेंककर मार डाला ।

बेचारा मंथरक जुलाहा! माँगा तो उसने वरदान था, पर वह अटपटा वरदान उस बेचारे के लिए ऐसा अभिशाप साबित हुआ कि उसे अपनी जान से ही हाथ धो लेना पड़ा ।

Advertisement
Tags :
Advertisement