For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

किस्सा धर्मबुद्धि और पापबुद्धि का-पंचतंत्र की कहानी

12:00 PM Sep 02, 2023 IST | Reena Yadav
किस्सा धर्मबुद्धि और पापबुद्धि का पंचतंत्र की कहानी
panchtantra ki kahani किस्सा धर्मबुद्धि और पापबुद्धि का
Advertisement

किसी नगर में दो मित्र रहते थे । एक का नाम था धर्मबुद्धि और दूसरे का पापबुद्धि । दोनों का स्वभाव और रंग-ढंग अलग-अलग था, फिर भी मित्रता पक्की थी । लिहाजा विदेश में दोनों साथ-साथ रहे और खूब धन कमाकर लौटे । जब वे अपने शहर में प्रवेश करने लगे, तो पापबुद्धि ने कहा, ‘’ देखो भई, हम इतनी मेहनत से धन कमाकर लाए हैं, लेकिन बहुत से धूर्त लोग चाहेंगे कि वे इसमें से हिस्सा ले लें । तो क्यों न हम इसे जमीन में गाड़ दें? जब जरूरत होगी तो थोड़ा-थोड़ा निकालते रहेंगे ।”

धर्मबुद्धि को यह बात जँच गई ।

दोनों ने उस धन को गड्ढा खोदकर जमीन में गाड़ा और फिर घर चले आए ।

Advertisement

लेकिन पापबुद्धि के मन में था मैल । रात में आकर उसने गड्ढा खोदकर वह धन निकाल लिया और फिर उसे चुपचाप उसी तरह भर दिया ।

कुछ समय बाद धर्मबुद्धि को धन की जरूरत पड़ी तो उसने पापबुद्धि से कहा, “चलो भई थोड़ा धन निकाल लाएं ।”

Advertisement

दोनों मिलकर गए लेकिन जब गड्ढा खोदा तो धन गायब था ।

पापबुद्धि ने झट धर्मबुद्धि पर आरोप लगा दिया । बोला, “मुझे तो लगता है, यह धन तुम्हीं ने चुराया है, वरना और कौन ले जाएगा? मेरे और तुम्हारे सिवाय तो किसी को इसका पता ही नहीं है ।”

Advertisement

धर्मबुद्धि को गुस्सा आ गया । बोला, “क्या तुम मुझे बेईमान समझते हो? मैं भला धन क्यों चुराऊँगा?"

आखिर दोनों राजा के पास गए । राजा ने न्यायाधीश से दोनों का निर्णय करने के लिए कहा । न्यायाधीश ने कुछ सोचते हुए कहा, “भला कौन गवाह है जिससे पता चले कि सच्ची बात क्या है?

इस पर धर्मबुद्धि ने कहा, “हमने एक पेड़ के नीचे धन गाड़ा था । उस पर एक वन देवता का निवास है । मुझे विश्वास है वह वन देवता जरूर सच्ची गवाही देंगे ।”

उसी दिन घर जाकर पापबुद्धि के मन में एक विचार आया । उसने अपने पिता से कहा, “आपको मेरी मदद करनी होगी ।”

अगले दिन न्यायाधीश निर्णय करने के लिए उसी स्थान पर पहुँचे, जहाँ धन गाड़ा गया था । न्यायाधीश ने जोर से आवाज देकर कहा, ‘’ इस पेड़ पर रहने वाले हे वन देवता, कृपया आप ही बताइए धन किसने चुराया?”

“धन धर्मबुद्धि ने चुराया था ।” उसी समय पेड़ से आवाज आई ।

सुनकर न्यायाधीश ही नहीं, वहाँ इकट्ठे हुए लोग भी चौंक पड़े । क्योंकि किसी ने पहली बार पेड़ को बोलकर गवाही देते हुए सुना था ।

लेकिन न्यायाधीश को दाल में कुछ काला लगा । उसने पेड़ के चारों ओर आग सुलगाने के लिए कहा । और जैसे ही आगा की लपटें ऊपर की ओर उठीं, पेड़ पर से कूदकर एक बूढ़ा आदमी भागा । सैनिकों ने दौड़कर उसे पकड़-लिया । पूछने पर पता चला कि वह पापबुद्धि का पिता है । पापबुद्धि ने ही उसे वन देवता बनकर झूठी गवाही देने के लिए उकसाया था ।

लेकिन अब तो हकीकत सबके सामने आ गई थी । न्यायाधीश ने कड़ाई से पूछताछ की तो पापबुद्धि ने मान लिया कि धन उसी ने चुराया था । पापबुद्धि को दंड मिला और उसने धन धर्मबुद्धि को सौंप दिया ।

धर्मबुद्धि खुश था । इस बढ़िया न्याय के लिए धर्मबुद्धि ही नहीं, सभी लोग न्यायाधीश की जी भरकर तारीफ कर रहे थे ।

Advertisement
Tags :
Advertisement