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किस्सा झूठे तिलों का -पंचतंत्र की कहानी

11:00 AM Sep 04, 2023 IST | Reena Yadav
किस्सा झूठे तिलों का  पंचतंत्र की कहानी
Panchtantra ki kahani किस्सा झूठे तिलों का
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एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था । वह बहुत गरीब था । बड़ी मुश्किल से उसके भोजन का प्रबंध हो पाता था ।

कुछ समय बाद मकर संक्रांति आई तो ब्राह्मण दान लेने के लिए घर से निकला । तभी उसके मन में आया, ‘आज का दिन बड़ा शुभ दिन है । आज किसी ब्राह्मण को जरूर भोजन कराना चाहिए ।’

पर घर में तो खाने-पीने का कुछ सामान तो था ही नहीं । बस, थोड़े से तिल पड़े हुए थे । ब्राह्मणी ने सोचा, ‘मकर संक्रांति में तिलों का बड़ा महत्व है । तो मैं तिल से ही कोई चीज बना लूंगी । और जो ब्राह्मण भोजन करने आएगा, उसे यह सादा सा भोजन भी बड़े प्रेम से खिलाऊंगी ।’

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आखिर ब्राह्मणी ने उन तिलों को कूटकर धूप में फैला दिया और अपनी गृहस्थी के कामकाज में लग गई । इतने में कहीं से एक कुत्ता आया और उसने उन तिलों में मुँह लगा दिया ।

ब्राह्मणी ने यह देखा तो बेचारी बहुत दुखी हुई । सोचने लगी, ‘अरे, कुत्ते ने इन तिलों को जूठा कर दिया । यह तो बहुत बुरा हुआ । मगर अब मैं ब्राह्मणों को भोजन कैसे कराऊँगी अगर इन जूठे तिलों को कुछ बनाकर खिलाके, तो यह तो पाप होगा ।’

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‘तो फिर अब क्या हो सकता है?’ ब्राह्मणी बैठी-बैठी सोचने लगी । आखिर उसे एक तरीका समझ में आया । उसने उन कुटे हुए तिलों को एक घड़े में भरा और उस घड़े को सिर पर रखकर आवाज लगाती हुई घूमने लगी । बगल के गाँव में जाकर आवाज लगाती हुई बोली, “मेरे पास कुटे हुए तिल हैं । इन्हें बिना कुटे हुए तिल के बराबर ले लो ।”

जब वह आवाज लगाकर घूम रही थी तो एक स्त्री झट से दौड़ती हुई आई । अपने बेटे से बोली, “अरे, यह तो बड़ा अच्छा हुआ । कुटे हुए तिल बिना कुटे हुए तिलों के बराबर मिल रहे हैं । तो मेरी इतनी मेहनत बच जाएगी । मैं झटपट जाकर उन्हें ले आती हूँ ।”

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लेकिन उस स्त्री का बेटा बड़ा समझदार था । जब वह उन कुटे हुए तिलों को लेने के लिए घर से जाने लगी, बेटे ने टोका । कहा, “नहीं माँ इसमें जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है, वरना कोई क्यों कुटे हुए तिलों को बिना कुटे हुए तिलों के बराबर देगा? मुझे तो लगता है, ये तिल ठीक नहीं हैं ।”

उस स्त्री ने भी सोचा तो उसे लगा कि बेटा ठीक ही कह रहा है । भला कोई बेकार की मेहनत क्यों करेगा? कुटे हुए तिलों को बिना कुटे हुए तिलों के बराबर क्यों देगा?

इस पर ब्राह्मणी वापस चली गई । उसे समझ में आ गया कि इस तरह की चाल चलने से आखिर कोई फायदा नहीं है ।

इसीलिए कहा गया है कि झूठ की कलई खुलती जरूर है, आज नहीं तो कल । सच बोलने वाला ही दुनिया में सम्मान हासिल करता है और उसका सिर कभी झुकता नहीं है ।

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