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मामा, तुम रो क्यों रहे हो? -पंचतंत्र की कहानी

10:00 AM Aug 31, 2023 IST | Reena Yadav
मामा  तुम रो क्यों रहे हो   पंचतंत्र की कहानी
panchtantra ki kahani
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किसी वन में एक विशाल सरोवर था । उसमें अनेक पानी के जीव रहते थे । पर ज्यादातर थीं मछलियाँ । पास ही पेड़ पर एक बगुला भी रहता था । बगुला मछलियों का शिकार किया करता था । पर अब वह बूढ़ा हो गया था, इसलिए पहले की तरह मछलियों का शिकार नहीं कर पाता था ।

एक दिन बगुला सरोवर के निकट आकर रोने लगा । उसे जोर-जोर से रोते और आँसू बहाते देख, मछलियाँ और केकड़े हैरान थे । अचानक एक केकड़े ने पास आकर कहा, “अरे मामा, तुम रो क्यों रहे हो? क्या आज मछलियों का शिकार नहीं करोगे?” इस पर बगुला ने कहा, “नहीं भई, अब मुझे सद्बुद्धि आ गई है । मैंने मछलियों का शिकार करना बंद कर दिया है । मैं तो अब पत्ते और फल खाकर गुजारा कर रहा हूं । भला बिना बात मछलियों को मारकर पाप का भागी क्यों बनूँ, ” “लेकिन मामा, फिर तुम यों रो क्यों रहे हो, आंसू क्यों बहा रहे हो?” केकड़े ने जानना चाहा ।

“असल में बात यह है कि अभी-अभी मुझे पता चला है, इस साल वर्षा बहुत कम होने वाली है । इस सरोवर में तो वैसे ही पानी कम है । वर्षा न होने से तो यह एकदम सूख जाएगा । फिर इस सरोवर में रहने वाले जीवों का क्या होगा? सोचकर मेरा कलेजा फटा जा रहा है ।” बगुले ने दुखी होकर कहा । केकड़े ने यह बात सुनी, तो एक दिन बातों-बातों में उसने मछलियों को भी सब कुछ बता दिया । सुनकर मछलियाँ घबरा गई । सारी मछलियाँ और केकड़े मिलकर बगुले के पास गए और पूछा, “अब आप ही बताइए इस समस्या का समाधान क्या है?”

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बगुला बोला, “यहाँ पास ही एक बहुत बड़ी झील है । तुम लोग चाहो तो मैं एक-एक करके तुम्हें वहाँ पहुँचा सकता हूँ ।”

इस पर भला मछलियों का क्या आपत्ति हो सकती थी?

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केकड़े ने मछलियों को समझाया, “देखो, बगुले का स्वभाव तो ऐसा नहीं है । यह कुछ ज्यादा ही हमारा हितैषी बन रहा है । इसलिए मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आता है । “लेकिन मछलियों ने उसकी बात नहीं सुनी । बगुला रोज एक मछली को चोंच में दबाकर ले जाता और दूर एक चट्टान पर पटककर मार डालता और खा जाता ।

ऐसे ही एक-एक करके कई दिन बीत गए ।

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एक दिन केकड़े ने कहा, “मामा, तुम एक-एक कर इतनी मछलियों को वहाँ ले गए पर मुझे तो ले नहीं गए । भला मुझे कब ले जाओगे? आखिर बात तो सबसे पहले तुम्हारी मुझसे ही हुई थी न!”

बगुले ने सोचा, ‘अभी तक तो रोज मछलियों को खाता हूं । आज स्वाद बदलने के लिए केकड़े को खा लूँगा, तो क्या बुरा है ।’

उसने केकड़े से कहा, “ठीक है, चलो मेरे,साथ चलो ।”

बगुले ने केकड़े को गरदन पर बैठाया और चल पड़ा । जब वह उड़ता हुआ जंगल की ओर गया, तो केकड़े को दूर एक चट्टान दिखाई पड़ी । उस पर मछलियों के डैने बिखरे हुए थे । वह सब समझ गया । फिर भी उसने बगुले से कहा, “मामा, वह झील तो नजर नहीं आ रही । अभी वह कितनी दूर है? हम कब तक वहाँ पहुँचेंगे?”

बगुले ने कुटिलता से हँसते हुए कहा, “सुनो भई केकड़े, वह झील कहीं नहीं है । मैं सब मछलियों को एक-एक करके इस चट्टान पर लाकर खा जाता हूँ । आज तुम्हें खाऊँगा । तुम सचमुच मूर्ख हो, जो तुमने मेरी बात पर विश्वास कर लिया ।"

केकड़ा बोला, “हाँ मामा, मैंने मूर्खता की जो तुम्हारी बात पर यकीन कर लिया । लेकिन मूर्ख तुम भी हो कि अपनी योजना पहले से बता दी, अब भुगतो ।” उसी समय केकड़े ने अपने दाँत बगुले की गरदन पर गड़ा दिए । कष्ट से छटपटाता हुआ बगुला जमीन पर आ गिरा और मर गया । पर केकड़ा तो उसकी गरदन पर था, उसका कुछ नहीं बिगड़ा ।

उसी समय केकड़े ने दौड़कर उस सरोवर में रहने वाली मछलियों को पूरा किस्सा सुनाया । सबने केकड़े की बहादुरी की तारीफ की । आखिर अपनी समझदारी और बहादुरी से उसने दुष्ट बगुले को छका दिया ।

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