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नीतिवान बंदर की कथा -पंचतंत्र की कहानी

10:00 AM Sep 12, 2023 IST | Reena Yadav
नीतिवान बंदर की कथा  पंचतंत्र की कहानी
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एक राजा था जिसका नाम था चंद्र । उसके बेटों को बंदरों से खेलना बड़ा अच्छा लगता था । लिहाजा राजा चंद्र ने वन से बंदरों की टोली को महल में आमंत्रित किया उन्हें अच्छा खाने-पीने को दिया गया । खूब सत्कार हुआ । फिर तो बंदर खुशी-खुशी महल में रहने लग गए ।

उन बंदरों का मुखिया था उशनस् । वह इतना विद्वान था कि लोग उसकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति और असुरों के गुरु शुक्राचार्य से करते थे । उसकी समझदारी की बातें सुनकर खुद राजा भी हैरान होता था । उसने उशनस् को राजकुमारों को सीख देने के लिए भी कहा । अब उशनस् मनोयोग से राजकुमारों को भी नीति-ज्ञान की शिक्षा देने लगा । लोग देखकर चकित होते थे कि एक बंदर भी कितना नीतिवान और ज्ञानी हो सकता है? खुद बंदर अपने मुखिया का कहना मानते थे और इसीलिए उनका व्यवहार बड़ा मर्यादित था । इससे राजा चंद्र भी खुश रहता था ।

कुछ समय बाद राजा ने राजकुमारों की सवारी और मनोरंजन के लिए मेढ़े मँगवाए । राजकुमार उन मेढ़ी पर सवारी कर महल के अंदर ही दौड़ लगाते रहते थे । पर उन मेढ़ों में एक थोड़ा लालची था । वह बार-बार रसोई में घुस जाता था । इस पर रसोइए अकसर हाथ में जलती हुई लकड़ी लेकर उसे भगाते थे ।

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बंदरों के मुखिया उशनस् ने भी यह देखा । देखकर वह चिंता में पड़ गया । उसने सभी बंदरों को बुलाकर कहा, “भई मुझे तो बहुत बड़ा संकट दिखाई पड़ रहा है ।”

बंदरों ने हैरान होकर पूछा, “कैसा संकट?”

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इस पर मुखिया ने बताया, “देखो, यहाँ महल में राजकुमार मेंढ़ों पर सवारी करते हैं और मेढ़े बार-बार भागकर रसोई की ओर चले जाते हैं । इस पर रसोइए हाथ में जो भी चीज आए उसे लेकर मेढ़ों को भगाते हैं । कई बार तो वे हाथ में जलती हुई लकड़ी लेकर भेड़ों को मारते और भगाते हैं । मुझे लग रहा है, एक दिन इससे मेढ़ों के शरीर में आग लग जाएगी । फिर वे परेशान होकर घुड़साल की ओर भागेंगे, क्योंकि इसका निवास भी घुड़साल की ओर ही है । जलते हुए मेढ़ों के वहाँ आने से अश्वशाला में आग लग जाएगी और तमाम घोड़े जलने लगेंगे । अब जलते हुए घोड़ों के इलाज का बस एक ही तरीका है, बंदर की चर्बी । लिहाजा राजा घोड़ों के इलाज के लिए सब बंदरों को मारने का आदेश देगा और हम सब मारे जाएंगे ।” बंदरों के मुखिया उशनस् की बात सुनकर सारे नौजवान बंदर हँसने लगे । बोले, “अरे, आपने तो बहुत दूर की बात सोच ली । लेकिन इतनी दूर की बात सोचने लगें तो हम जी नहीं सकते । वैसे भी खुद राजा ने हमें यहाँ महल में रहने के लिए आमंत्रित किया है । हम उसके आश्रित हैं । तो हमें शरण देने के बाद वह अब हमारे प्राण कैसे लेगा? आप क्या चाहते हैं कि महलों के ये बढ़िया पकवान और सुस्वादु भोजन छोड़कर अब हम जंगलों में भटकें? नहीं नहीं, अब यह हमारे बस की बात नहीं है ।”

इस पर मुखिया उशनस् बोला, “ठीक है, समय आने पर तुम खुद महसूस करोगे । और जहाँ तक यह बात है कि राजा और राजकुमार तुमसे प्रेम करते हैं तो तुम लोग भूल रहे हो कि प्रेम वहीं टिकता है, जहाँ उसके पीछे कोई न कोई उपयोगिता होती है । बेशक राजा को बंदर प्रिय हैं, लेकिन घोड़े उसके राजकाज के लिए कहीं ज्यादा जरूरी हैं । इसलिए घोड़ों को बचाने की बात आएगी तो वह उसके लिए बंदरों को मरवाने में जरा भी नहीं हिचकेगा । “

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उशनस् की बात सुनकर सभी बंदर उसका मजाक उड़ाने लगे । बोले, “लगता है, अब बुढ़ापे में आकर आपका दिमाग चल गया है, इसलिए आप अपना ज्ञान बस अपने तक ही रखिए ।”

यहाँ तक कि उशनस् की पत्नी ने भी उसका साथ देने से इनकार कर दिया । तब उशनस् अकेला वहाँ से चल पड़ा और एक वन में जाकर रहने लगा ।

पर उशनस् के जाने के अगले दिन ही ठीक वही हुआ, जो उसने कहा था । एक लालची मेढ़ा हमेशा की तरह रसोई में घुसा, तो गुस्से में आकर रसोइए ने उस पर चूल्हे से निकालकर जलती हुई लकड़ी दे मारी । इससे मेढ़े के बालों में आग लग गई । होते-होते सभी मेढ़े जल उठे । और जब वे जान बचाने के लिए अपने निवास की ओर भागे तो घुड़शाला में आग लग गई । बहुत से घोड़े आग की लपटों में जलकर मर गए । बहुत से बुरी तरह जले और घायल हो गए । राजा ने राजवैद्य को उन घोड़ों के इलाज के लिए बुलाया तो राजवैद्य ने तुरंत कहा, “बस महाराज, बंदरों की चर्बी ही इसका इलाज है । उससे इन घोड़ों की सारी जलन शांत हो जाएगी ।”

राजा ने न चाहते हुए भी उसी समय महल में जितने भी बंदर थे, उन्हें मारने का आदेश दे दिया, ताकि घोड़ों का इलाज हो सके । और सचमुच महल में अब कोई बंदर नहीं बचा था । जंगल में रह रहे बंदरों के मुखिया उशनस् को जब अपने कुल के सर्वनाश की खबर मिली, तो वह दुखी और मर्माहत हो उठा । हांलाकि कुछ समय पहले उसके कुल के लोगों ने ही उसे बुरी तरह अपमानित किया था । लेकिन फिर भी उसके मन में उनके लिए गहरा प्रेम और स्नेह तो था ही । अपने संपूर्ण वंश के नाश होने पर वह दुखी और व्याकुल हो गया । जंगल में यहाँ-वहाँ घूमने और भटकने लगा ।

एक बार उशनस् किसी तरह जंगल में भटक रहा था । तभी उसे बड़े जोर की प्यास लगी । कुछ दूर उसे एक विशाल सरोवर नजर आया । वह पानी पीने के लिए उस सरोवर के निकट गया । बंदरों का मुखिया झुककर उस सरोवर का पानी पीना चाहता था, पर तभी अचानक चौंक गया । उसने देखा कि बहुत से मनुष्यों और जीव-जंतुओं के पैरों के निशान वहां थे । वे पानी पीने सरोवर में गए थे, पर वहाँ से लौटे नहीं थे । इस बात से उशनस् चौंक उठा । उसने सोचा, हो न हो, इस तालाब में कोई रहस्य है ।

उसी समय, उशनस् ने पास में एक कमल की नाल देखी, तो उसे तोड़कर उसने उसे पानी में डुबोया । फिर उस कमल की नाल के सहारे तालाब का पानी पीने लगा ।

जैसे ही बंदर ने तालाब का पानी पिया, उसी समय उसे एक विशाल राक्षस दिखाई पड़ा । वह उसी तालाब से निकला था । उसके गले में जगमग-जगमग मोतियों की माला थी, जिसका प्रकाश दूर-दूर तक फैल रहा था । उस राक्षस ने उशनस् से कहा, “आप बहुत बुद्धिमान हैं । मैं आपके ज्ञान और समझदारी से बहुत प्रभावित हूँ, इसलिए यहाँ आया हूँ । इस तालाब का पानी पीने इतने लोग और पशु-पक्षी आए जिन्हें मैंने खा लिया, पर अकेले आप ही हैं, जिसने अपने ज्ञान और चतुराई से अपने को बचा लिया । इसलिए मेरे मन में आपके लिए बड़ी प्रशंसा का भाव है । आप मुझसे जो भी वरदान माँगना चाहें, माँग लें ।”

उशनस् ने मुस्कराकर कहा, “अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो आपके गले में यह जो अद्भुत मोतियों की माला है, वह कुछ समय के लिए मुझे दे दें ।”

उन अनोखे मोतियों की माला पहनकर उशनस् राजा चंद्र के पास गया, तो राजा मोतियों की चमक देखकर हैरान रह गया । बोला, “अरे, ये तो अद्भुत मोती हैं । मैंने ऐसी मोतियों की माला कभी देखी नहीं । लगता है कि इसने पूरे राजमहल को ही प्रकाशित कर दिया है । तुम्हें यह मोतियों की माला कहाँ से मिली?”

बंदरों के मुखिया ने कहा, “महाराज, यह माला मुझे यात्रा में मिली है । मेरे कुल का नाश होने पर मैं इस कदर दुखी हो गया कि मन को चैन ही नहीं था । व्याकुल होकर मैं इधर-उधर घूमता रहा । कभी किसी जंगल में तो कभी नदी के किनारे,..!”

राजा चंद्र बोला, “मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूँ, लेकिन हालत ही ऐसी हो गई थी कि न चाहते हुए भी मुझे बंदरों के वध का आदेश देना पड़ा । इसके बिना घोड़े ठीक और स्वस्थ नहीं हो सकते थे । और यह तो तुम जानते ही हो कि राजकाज बिना घोड़ों के चल नहीं सकता । इसलिए मुझे यह अप्रिय निर्णय लेना पड़ा ।”

“कोई बात नहीं ।” बंदरों के मुखिया उशनस् ने कहा, “सेवक का कर्त्तव्य ही है कि वह राजा के काम आए । अच्छा है कि मेरे कुल के लोगों ने आपकी जरूरत पूरी करने के लिए अपने प्राण त्याग दिए ।”

तभी राजा का ध्यान फिर से उशनस् के गले में पड़ अपूर्व मोतियों की माला की ओर गया । उसने कहा, “ये तो सचमुच विलक्षण मोती हैं, मैंने पहले ऐसे मोती कभी नहीं देखे । यह दुर्लभ माला भला तुम्हें कहां से मिली?”

“महाराज, मैं एक सरोवर में स्नान करने के लिए गया था । वह चमत्कारी सरोवर है जिसमें स्नान करने पर मुझे यह माला मिली ।” उशनस् ने कहा, “जो भी उस सरोवर में स्नान करता है, उसे ऐसी ही माला मिलती है । अगर आप चाहें तो अपने कुटुंब के साथ उस सरोवर पर स्नान के लिए चलें ।”

राजा ने कहा, “ठीक है, पर तुम्हें आगे-आगे चलकर रास्ता दिखाना होगा ।"

अगले दिन राजा चंद्र अपने सभी कुटुंबी जनों के साथ उस चमत्कारी सरोवर में स्नान करने के लिए चल पड़ा । आगे-आगे बंदरों का मुखिया उशनस् राह दिखाता जा रहा था । के किनारे पहुँचने पर राजा अपने सगे-संबंधियों के साथ ही सरोवर में स्नान करने के लिए प्रवेश करना चाहता था, पर उशनस् ने उसे रोक दिया । कहा, हम लोग एक विशेष स्थान पर स्नान करेंगे । तब हमें इससे भी अनमोल और विशेष मालाएँ मिलेंगी ।”

तब राजा भी उशनस् के साथ उस सरोवर के किनारे पर खड़ा हो गया । उसके सभी कुटुंबी जन पानी में स्नान करने के लिए चले गए ।

काफी देर हो गई, पर उनमें से कोई वापस नहीं आया । इस पर राजा ने चिंतित होकर कहा, “बड़ी देर हो गई है, अभी तक इनमें से कोई वापस नहीं आया । पता नहीं, ऐसा क्यों है?”

उशनस् बोला, “महाराज, वे अब कभी वापस नहीं आएंगे । इस सरोवर में रहने वाले राक्षस ने उन्हें खा लिया ।”

“क्या?” राजा चीख पड़ा, “यह तुमने क्या किया? मेरा सारा कुल नष्ट हो गया । तुमने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा विश्वासघात…!”

“यह तो इतना बड़ा विश्वासघात नहीं है राजन, जितना आपने किया । आपने तो मेरे कुल के बंदरों को वन से बुलाया, आश्रय दिया और फिर अचानक सब के प्राण ले लिए । उसकी तुलना में तो यह विश्वासघात कुछ नहीं है ।”

“ओह, मैं कैसे अब धैर्य रखूँ मैं कैसे यह शोक सहन करूं?” राजा ने विलाप करते हुए कहा ।

“जैसे मैं सहन कर रहा हूँ ।” उशनस् ने कहा, “इसीलिए तो मैंने आपको सरोवर में प्रवेश करने नहीं दिया, ताकि आप जीवित रहें और अपनी आँखों के सामने अपने कुल का विनाश देखें । कुछ ऐसे दुख होते हैं, जो मृत्यु से अधिक संताप देने वाले होते हैं । अब आप जीवन भर विलाप करते रहिए । अगर आप सरोवर में प्रवेश करके मृत्यु को प्राप्त होते तो आपको इतना कष्ट न होता । मैंने इसीलिए आपको अकेला जीवित बचे रहने दिया, ताकि आप याद रखें कि आपने मेरे संपूर्ण कुल का नाश किया था और इससे मुझ पर क्या बीत रही होगी?”

राजा ने क्रोध में आकर कहा, “हे उशनस् तुमने मेरे साथ जो किया है, उसके लिए ईश्वर तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगा ।”

इस पर उशनस् ने व्यंग्यपूर्वक कहा, “जो ईश्वर तुम जैसे क्रूर आदमी को क्षमा करेगा, वह मुझे भी जरूर क्षमा कर देगा । मेरा अपराध तो तुम्हारी तुलना में कुछ भी नहीं है ।”

अब राजा चंद्र भला क्या कहता? वह सिर झुकाकर वहाँ से चला गया, लेकिन इसके बाद उसने एक दिन भी कभी सुख की नींद नहीं ली । अब वह इस बात के लिए पछता रहा था कि जंगल से बंदरों को बुलवाकर और आश्रय देकर उसने कितनी निर्दयता से उन्हें मरवा दिया था ।

धीरे-धीरे बंदरों को भी पता चला कि बंदरों के अत्यंत चतुर और बुद्धिमान मुखिया उशनस् ने किस तरह शक्तिशाली राजा चंद्र से अकेले ही बदला ले लिया । सुनकर बंदरों ने उसका जगह-जगह जयगान करते हुए कहा, “अगर कोई बुद्धिमान व्यक्ति चाहे तो अकेला ही बड़े से बड़े शक्तिशाली शत्रु से टक्कर ले सकता है । नीतिवान उशनस् ने अपनी बुद्धिमता से यह साबित कर दिखाया है ।”

आज भी सारी दुनिया में लोग बंदरों के इस महान नीतिवान मुखिया की बुद्धिमता की यह कहानी बड़े आदर और विस्मय से सुनी है और उसकी कूटनीति, विद्वत्ता और समझदारी की प्रशंसा किए बगैर नहीं रह पाते।

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