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पहले मैं, पहले मैं! -पंचतंत्र की कहानी

11:00 AM Sep 07, 2023 IST | Reena Yadav
पहले मैं  पहले मैं   पंचतंत्र की कहानी
panchtantra ki kahani पहले मैं, पहले मैं!
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एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था । उसका नाम था द्रोण । वह भिक्षा माँगकर गुजारा करता था । इसलिए जीवन में कभी कोई सुख उसे नहीं मिला । उसका शरीर भी बहुत कमजोर और दुबला-पतला था ।

द्रोण के पास संपत्ति के नाम पर कुछ विशेष नहीं था । बस, दो स्वस्थ बछड़े थे जो किसी ने उसे दान में दिए थे । ब्राह्मण लोगों से माँगकर उनके चारे आदि का प्रबंध कर लेता । इससे वे बछड़े खासे स्वस्थ और तंदुरुस्त हो गए थे । वह उन बछड़ों से बहुत प्रेम करता था ।

पर एक चोर की उन दो बछड़ों पर बहुत समय से निगाह थी वह सोचता था, “कभी अवसर मिलते ही इन दोनों बछड़ों को चुराकर ले जाऊँगा ।”

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एक रात की बात, वह चोर बछड़े चुराने के लिए उस ब्राह्मण के घर की ओर चल दिया । रास्ते में उसे एक भयानक शक्ल वाला प्राणी दिखाई दिया जिसके दाँत बड़े-बड़े थे तथा आंखें अँगारों की तरह जल रही थीं ।

चोर के पूछने पर उस भयानक व्यक्ति ने कहा, “मैं ब्रह्मराक्षस हूँ । मैं ब्राह्मण को खाने के लिए जा रहा हूँ ।”

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“फिर तो मैं भी उधर ही जा रहा हूँ । चलो, अच्छा साथ रहेगा ।” चोर ने कहा, “मेरा नाम क्रूरकर्मा है और मैं ब्राह्मण के घर बछड़े चुराने जा रहा हूँ ।”

आखिर दोनों साथ-साथ चल दिए और उस ब्राह्मण के घर जाकर छिपकर बैठ गए । वे उसके सोने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि अपना काम शुरू कर सकें ।

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राक्षस बहुत दिनों से भूखा था इसलिए उस ब्राह्मण को खाने के लिए उतावला हो रहा था । यह देखकर चोर ने कहा, “भाई, तुम इतना उतावलापन मत दिखाओ । पहले मुझे अपना काम कर लेने देना । उसके बाद जो तुम्हें करना है, करते रहो ।”

इस पर राक्षस ने कहा, “नहीं-नहीं, तुम मुझे अपना काम पहले कर लेने देना । क्योंकि तुम बछड़े चुराकर जाने लगोगे तो क्या पता, खटपट की आवाज सुनकर इस ब्राह्मण की नींद खुल जाए । फिर तो मैं थी अपना काम नहीं कर पाऊंगा ।”

पर चोर बोला, “ना भई ना । पहले मैं अपना काम करूंगा । क्या पता जब तुम ब्राह्मण को अपना भोजन बनाने की चेष्टा करो, तो इसकी नींद खुल जाए । तब तो मैं भी अपना काम नहीं कर पाऊंगा । लिहाजा पहले मैं बछड़े चुराकर चला जाऊं, तब तुम अपना काम कर लेना ।”

राक्षस को गुस्सा आ गया । गरजकर बोला, “तुमने सुना नहीं, मैं क्या कह रहा हूँ? पहले मैं अपना काम करूँगा । अब तुमने कुछ भी चीं-चपड़ की तो अच्छा नहीं होगा ।”

चोर बोला, “तुम कुछ भी कहो । मैं तुम्हारे रोब में आने वाला नहीं हूँ । मैं ही पहले अपना काम करूँगा । राक्षस हो तो क्या हो गया? मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा ।”

इस पर राक्षस और चोर दोनों जोर-जोर से लड़ने लगे । इसका नतीजा यह हुआ कि उस सोए हुए ब्राह्मण की नींद खुल गई ।

चोर ने तुरंत पैंतरा बदला और ब्राह्मण से कहा, “देखो भाई द्रोण, यह राक्षस तुम्हें खाना चाहता है ।”

अब राक्षस ने भी चोर की असलियत बता देना जरूरी समझा । बोला, “सुनो ब्राह्मण, यह चोर तुम्हारे दोनों बछड़े को चुराकर ले जाना चाहता है ।”

अब तो ब्राह्मण सारा माजरा समझ गया । पहले उसने मंत्र पढ़ा तो राक्षस उसी समय डरकर खिड़की की राह से दूर भाग गया । उसके बाद उसने पास रखी हुई लाठी उठाई और उसे खूब जोर से चोर की ओर फेंका । वह भी घबराकर झटपट भाग खड़ा हुआ ।

राक्षस और चोर दोनों अपने- अपने झगड़े और स्वार्थ के चलते आखिर अपने उद्देश्य में असफल हुए । ब्राह्मण ने इसका लाभ उठाया और दोनों से एक साथ मुक्ति पाकर खुशी और आनंद से भर उठा ।

इसीलिए कहा जाता है, अगर किसी शख्स के दुश्मन आपस में झगड़ रहे हों, तो इससे उस व्यक्ति के भाग्य की गठरी खुल जाती है!

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