For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

बच्चे को आ जाए अचानक बुखार, तो ऐसे करें देखभाल: Child Care in Fever

12:30 PM Sep 07, 2023 IST | Rajni Arora
बच्चे को आ जाए अचानक बुखार  तो ऐसे करें देखभाल  child care in fever
Advertisement

Child Care in Fever: आमतौर पर छोटे बच्चों को सबसे ज्यादा संक्रमण होता है। इस स्थिति में माता-पिता थोड़ा चिंतित हो जाते हैं कि कहीं बच्चे की तबियत ज्यादा न बिगड़ जाए इसलिए वे तुरंत बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाते हैं जबकि सामान्य वायरल फीवर 2 से 3 दिनों में अपने आप उतर जाता है।

छोटे बच्चों को बुखार मुख्य तौर पर 2 कारणों से होता है- बदलते मौसम में वायरल इंफेक्शन से मौसमी बुखार होते हैं जैसे- एन्फ्लूएंजा, एडीनोवायरस जैसे बुखार करते हैं। बच्चे को बिना किसी कारण के एकदम से तेज बुखार आना, कमजोरी ज्यादा महसूस करना, चक्कर आना, सिर दर्द होना, चिड़चिड़ापन होना, हल्की खांसी-जुकाम, सांस लेने में तकलीफ होना जैसे लक्षण वायरल फीवर के हो सकते हैं। इसी तरह कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से बच्चे को बुखार आता है जैसे- निमोनिया, टाइफाइड, टॉन्सिलाइटिस।

बुखार कैसे मापें

यदि बच्चे के रैक्टम एरिया या मुंह के अंदर से बुखार नापने पर तापमान 100.4 डिग्री फारेनहाइट या ज्यादा हो तो इसे बुखार माना जाता है। आमतौर पर बच्चों कूल्हों और कांख में थर्मामीटर रखकर भी बुखार नापा है। अगर यह 99.5 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा होने लगता है तो माना जाता है कि बुखार है।

Advertisement

जीभ में थर्मामीटर रखकर बुखार नापने और बच्चे की कांख या कूल्हे में थर्मामीटर रखकर बुखार के तापमान में काफी अंतर होता है। भीतर से नापा गया बुखार बाहर से नापे गए बुखार से 0.821 डिग्री फारेनहाइट से अधिक होता है। अगर कांख का तापमान 99.5 डिग्री आता है, तो अंदरूनी तापमान तकरीबन 100.4 डिग्री फारेनहाइट होगा। मेडिकल साइंस के हिसाब से अंदरूनी बुखार 100.4 डिग्री से ज्यादा हो, तब उस टैम्परेचर को सामान्य नहीं, बुखार माना जाता है। आमतौर पर 99 डिग्री फारेनहाइट के टैम्परेचर यानी तापमान को बुखार नहीं माना जाता। अंदरूनी बुखार 100.4 से नीचे हो, तो उसे बुखार नहीं माना जाएगा।

अगर बच्चा बहुत छोटा है, कई बार उसका थर्मामीटर से टैम्परेचर लेना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में उसके बुखार का अंदाज इस तरह लगा सकते हैं- अगर उसका सिर या पेट गर्म महसूस हो रहा है और उसके हाथ ठंडे हो रहे हैं, तो उसका मतलब है कि बुखार बहुत तेज है।

Advertisement

क्या करें

  • जब आपको अनुमान लग जाता है कि बच्चे को बुखार है तो बुखार को रिकार्ड जरूर करें। इससे बुखार के पैटर्न पता लगता है कि बुखार कब ज्यादा होता है, कब कम। दिन में कितनी बार आ रहा है।
  • जब बुखार बहुत तेज हो, तो बुखार की दवा देने से पहले बच्चे के माथे पर पानी की पट्टी रखें। बच्चे के सिर पर बुखार न चढ़ने दें, इसके लिए सामान्य पानी की पट्टी बच्चे के सिर पर करते रहें। पानी की पट्टी रखने से बच्चे को कोई नुकसान नहीं होता है, निमोनिया होने का कोई खतरा नहीं होता है। ध्यान रखें कि बर्फ वाला, फ्रिज का या गर्म पानी न लें।
  • अत्याधिक बुखार की स्थिति में एक साल से बड़े बच्चे के पूरे शरीर को स्पंज बाथ दे सकते हैं। इसके लिए रूम टैम्परेचर वाले पानी या नल के पानी में कपड़ा भिगोकर स्पंजिंग करनी चाहिए। स्पंज करते समय ध्यान रखना चाहिए कि हवा लगने से बचाने के लिए कमरे में पंखा या एसी न चलाएं। इससे शरीर का टैम्परेचर काफी कम हो सकता है।

दवाइयां कौन-सी देनी चाहिए

Care in Fever
Child Care in Fever-Medicine
  • बुखार तेज होने पर डॉक्टर से पूछकर बच्चे को घर पर ओवर द काउंटर पैरासिटामोल दवाई दी जा सकती है। लेकिन इसकी सही डोज देनी जरूरी है क्योंकि ज्यादा मात्रा में देने पर यह नुकसान करती है, वहीं डोज कम होने पर ठीक तरह असर नहीं करती।
  • सामान्यत: पैरासिटामोल 3 रूप में मिलती है- ड्रॉप्स, सिरप, टेबलेट। बच्चे को 6 घंटे के अंतराल पर ही पैरासिटामोल देनी चाहिए।
  • आमतौर पर  डॉक्टर पैरासिटामोल की डोज बच्चे की उम्र और वजन के हिसाब से बताते हैं। यह 15 मिग्रा प्रति किलो निर्धारित की गई है। इसके हिसाब से अगर कोई 10 किलो का बच्चा है तो उसे 150 मिग्रा की डोज देनी चाहिए। पैरासिटामोल की ड्रॉप में 50 मिग्रा प्रति एमएल (मिली लीटर) होता है।
  • जहां तक कम्पोजिशन का सवाल है 250 मिग्रा प्रति 5 एमएल (एक छोटा चम्मच) के कम्पोजिशन में होता है। बच्चे को अगर 500 मिग्रा देना है, तो उसे 10 एमएल (दो छोटे चम्मच) सिरप देना होगा। अगर बच्चे का वजन 40 किलो से ज्यादा है, तो उसे बड़ों की तरह 600 मिग्रा की टेबलेट दी जा सकती है। अगर बच्चा टेबलेट न ले पाए तो सिरप देना चाहिए।

ये लक्षण दिखने पर डॉक्टर को तुरंत दिखाएं

अगर बच्चा ज्यादा परेशान न हो तो घर में उपचार करना बेहतर है। अक्सर बच्चे को वायरल बुखार होता है, जो तीन दिन के बाद अपने आप ही कम होने लगता है। अगर बुखार तीन दिन के बाद भी बना हुआ है तो शिशु विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें। चूंकि, कई बार बच्चे को बुखार के साथ दूसरी परेशानियां भी होने लगती है।

  • बच्चे ने काफी समय यानी 6-8 घंटे से पेशाब न किया हो। पेशाब रुक-रुक कर आ रही हो!
  • बुखार 2-3 घंटे में दुबारा आ रहा है।
  • बच्चा अनकॉन्शियस या सेमि-कॉन्शियस है।
  • बच्चे की पल्स रेट ज्यादा हो गई है।
  • बार-बार उल्टी हो रही है।
  • खाना ठीक तरह खा नहीं पा रहा है।
  • चिड़चिड़ा ज्यादा होना।
  • सुस्त होना।
  • इन बातों का भी रखें ध्यान।

लिक्विड डाइट दें ज्यादा

बुखार होने पर बच्चे का हर आधे घंटे के अंतराल पर लिक्विड इंटेक अच्छा रखना चाहिए ताकि उनमें डिहाइड्रेशन या इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस न बिगड़े। बुखार होने या शरीर का तापमान बढ़ने पर पसीना आता है जिससे शरीर का पानी काफी मात्रा में निकल जाता है। साथ ही सांस लेते वक्त या बार-बार बात करने पर ड्रॉपलेट्स के जरिये पानी बाहर निकल जाता है। इससे बच्चे के शरीर का टैम्परेचर बढ़ने और डिहाइड्रेशन का खतरा रहता है। इसलिए उसे हर आधे घंटे में नमक-चीनी का घोल या इलेक्ट्रॉल ओआरएस घोल, छाछ, दूध, लस्सी, नारियल पानी जरूर पिलाना चाहिए। 6 माह से कम या जरूरत हो 1 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को स्तनपान करवाते रहना चाहिए।

Advertisement

कमरे का तापमान

अगर बच्चे को ठंड लग रही है, तो पंखा, एसी बंद कर देना चाहिए। लेकिन दवा देने पर बुखार कम होना शुरू होता है, उस समय पंखा धीमी गति पर चला देना चाहिए। कमरे के खिड़कियां खोल देनी चाहिए ताकि ताजी हवा आ सके। यानी रूम टैम्परेचर ठंडा होना चाहिए यानी जिसमें बैठने पर आपको गर्मी महसूस न हो क्योंकि बुखार की वजह से पसीना काफी आता है, रूम टैम्परेचर मेंटेन होने पर बच्चे को परेशानी नहीं होगी।

बच्चे को अधिक कपड़े न पहनाएं

Care in Fever
Care in Fever

बच्चे को कपड़े उतने ही पहनाने चाहिए जिससे बुखार नियंत्रण में आ जाए। केवल उतने कपड़े ही पहनाएं जिसमें वह सहज रह सके। ज्यादा कपड़े पहनाने से बच्चे पसीने से तर-ब-तर होते रहते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। इसी तरह बुखार ठंड की वजह से आया है, यह मानकर कंबल न ओढाएं। इसके बजाय सूती या मोटी चादर ओढ़ानी चाहिए।

खान-पान का रखें ध्यान

बुखार होने पर अगर बच्चा कम मात्रा में भी खाना खा रहा है, तो घबराना नहीं चाहिए। हर डेढ से दो घंटे में थोड़ा-थोड़ा खाने के लिए देते रहें ताकि बच्चे के शरीर में एनर्जी मिलती रहती है और वह एक्टिव रहता है। घर का बना पौष्टिक भोजन बच्चे को खिलाएं। खाने में किसी तरह का परहेज नहीं होता। अगर बच्चा हल्का खाना पसंद कर रहा है तो खिचड़ी, दलिया, दही दे सकते हैं। सामान्य तापमान में रखा दही, लस्सी, नारियल पानी दिया जा सकता है। उसके पसंदीदा फल भी दे सकते हैं। सूप भी दे सकते हैं जिससे उसके शरीर को आराम मिलता है।

(डॉ. संजीव दत्ता, एचओडी एवं सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल, फरीदाबाद से बातचीत पर आधारित)

Advertisement
Tags :
Advertisement