किसी भी प्लास्टिक की बोतल में पानी रखने से पहले जान लीजिए इन पर बने मार्क का मतलब: Plastic Bottle Effects
Plastic Bottle Effects: गर्मी का मौसम आ गया है और इसी के साथ समय आ चुका है फ्रिज में पानी की बोतले रखने का। अक्सर लोग फ्रिज में प्लास्टिक की वाटर बोतल रखते हैं। कई बार कोल्ड ड्रिंक या फिर पैकड वाटर के लिए यूज करने वाली बोतलों को भी लोग पानी स्टोर करने के काम में लेते हैं, लेकिन ऐसा करना सेहत को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। हर प्लास्टिक की बोतल पर एक खास कोड होता है, जिसके अनुसार ही उसका उपयोग तय होता है। सिंगल यूज प्लास्टिक की बोतल को अगर आप बार-बार यूज करेंगे, तो यह आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। यहां हम बात करेंगे कि आपको कैसे पता चलेगा कि आप जिस प्लास्टिक की बोतल में पानी पी रहे हैं, वह कौनसी तरह की प्लास्टिक है।
कोड और जहरीले केमिकल
आम तौर पर आप पानी, कोल्ड ड्रिंक आदि को प्लास्टिक की बोतल में पैक किया जाता है। इन बोतलों के नीचे कोड होते हैं। इन कोड के माध्यम से आप समझ सकते हैं कि बोतल को बनाने में किस तरह की प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया है। आप यदि कोड को पढ़कर नहीं समझ पा रहे, तो हम आपको बताएंगे कि किस तरह का कोड आपको क्या बता रहा है। प्लास्टिक की बोतल या फिर कंटेनर के नीचे की ओर 1, 2, 3, 4 आदि तरह के कोड लिखे रहते हैं। आप इन कोड के माध्यम से जान जाते हैं कि इस तरह की प्लास्टिक आपको इस्तेमाल करनी चाहिए कि नहीं। बोतल को बनाने में कई जहरीले केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। अलग अलग तरह की प्लास्टिक से जब सामान बनाया जाता है, तो अलग अलग मात्रा में केमिकल्स उत्सर्जित रहते हैं। जहरीले केमिकल के उत्सर्जन की मात्रा प्लास्टिक की क्वालिटी और बनने वाले सामान पर निर्भर करता है।
कोड से समझें बोतल की गुणवत्ता
प्लास्टिक बाल्टी, मग सहित अन्य किसी भी तरह की प्लास्टिक की चीजों पर 1 से 7 तक की संख्या लिखी होती है। यही कोड आपको बताते हैं कि प्लास्टिक किस तरह की है। यदि किसी प्लास्टिक की वस्तु पर 2,4,5 नंबर लिखा हुआ है, तो समझ जाइए कि ये एक जनरल श्रेणी की प्लास्टिक है।,जो अन्य प्लास्टिक के मुकाबले कम हानिकारक होगी। जिसे आप घरों में काम ले सकते हैं। यह एक सुरक्षित विकल्प है। इसके अलावा 1,3,6 नंबर लिखा हो तो ये कोड स्पेसिफिक ‘प्लास्टिक पॉलीमर’ की पुष्टि करता है। इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञों ने कहा है कि प्लास्टिक बोतल को दिन में कम से कम एक बार साबुन के पानी से धोना चाहिए। यदि आप बोतल को मुंह लगा कर पीते हैं तो बोतल का धोना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। सीधे मुंह लगाकर पीने से बैक्टीरिया और भी ज्यादा तेजी से पनपते हैं।
आइए आपको बताते हैं कि क्या कहते हैं कोड
कोड – 1 – पॉलीथीन टैरीपिथालेट (PET/PETE)
ओवन-ट्रे, जार, कोल्ड ड्रिंक की बोतल, जार, डिटर्जेंट और क्लीनर कंटेनर, गिटार-पियानो जैसे वाद्य यंत्र, लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले आदि के लिए ‘प्लास्टिक पॉलिमर’ का उपयोग होता है। PET का मतलब है कि संबंधित प्लास्टिक का लंबे समय तक इस्तेमाल करना हानिकारक हो सकता है। प्लास्टिक के संबंधित कंटेनर्स को गर्म या बंद जगह में रखा जाता है। ये ‘सिंगल यूज़’ या ‘यूज़ एंड थ्रो’ प्लास्टिक होते हैं। इनका बार-बार इस्तेमाल घातक हो सकता है।
कोड 2: हाइ डेन्सिटी पॉलीथीन (HDPE)
यह सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला‘प्लास्टिक पॉलीमर’ है। इसे बनाना भी थोड़ा आसान होता है और कम कीमत में बन जाता है। जैसे प्लास्टिक कैरी बैग, दूध की थैली, पानी और जूस के कंटेनर इत्यादि। ये प्लास्टिक रीसायकल किया जा सकता है। कई अध्ययन बताते हैं कि यह प्लास्टिक हार्मोनल समस्या पैदा करने वाला पदार्थ जैसे नोनिल फेनॉल स्रावित कर सकता है। हालांकि ये अन्य प्लास्टिक से सेफ है। लेकिन इसका उपयोग कम ही करना चाहिए।
कोड 3: पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC)
इस तरह के प्लास्टिक को बनाने के लिए पॉलीविनाइल क्लोराइड का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्लास्टिक से पाइप्स बनाए जाते हैं, जो प्लंबिंग एवं अन्य जगह काम में लिए जाते हैं। पीवीसी काफी ठोस और इस्तेमाल करने में रफ-टफ होती है। हालांकि ऐसी प्लास्टिक को खाने का समान को पकाने के लिए और उन्हें स्टोर करने के लिए काफी खतरनाक माना जाता है। हमारे देश में इस प्लास्टिक का इस्तेमाल बच्चों के खिलौने बनाने, शैंपू या तेल की बोतलें बनाने, डिटर्जेंट या क्लीनर की बोतलों के लिए होता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह के प्लास्टिक के निर्माण में फाथेलेट्स हार्मोनल सहित अन्य गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
कोड 4: कम घनत्व पोलीथाईलीन (LDPE)
ऐसे प्लास्टिक का इस्तेमाल कम घनत्व वाले उत्पाद के लिए किया जाता है। जैसे खाद्य पदार्थों, दवा आदि पर फिल्म चढ़ी होती है। उत्पादों की पैकेजिंग के लिए भी इस प्लास्टिक को उपयोग में लिया जाता है। इस प्लास्टिक की रासायनिक संरचना काफी पतली और मुलायम होती है। किराने के सामान, जैसे ब्रेड आदि की पैकिंग में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह के प्लास्टिक को खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिए सुरक्षित माना गया है। लेकिन प्रकृति के लिए खतरा हैं ऐसी पॉलीथिन, क्योंकि इन्हें रीसायकल नहीं किया जाता है।
कोड 5: पालीप्रोपलीन (PP)
ऐसी प्लास्टिक से कप बनाए जाते हैं और पानी की बोतलें, कैचअप, दवा आदि को स्टोर किया जाता है। ये गर्मी प्रतिरोधी हैं और इनमें रखी वस्तु उबल भी जाए, तो उसके गुण नहीं बदलते। इसमें रखे खाद्य पदार्थों को माइक्रोवेव ओवन में गर्म कर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पॉलीप्रोपाइलीन को रीसायकल किया जा सकता है। लेकिन यदि ये फैटी खाद्य पदार्थ या मादक पेय पदार्थों के संपर्क में आए, तो उसकी गुणवत्ता गिर जाएगी और खतरनाक फॉर्मल्डेहाइड को उत्सर्जित करना शुरू कर देगी। ये बीमारियों का कारण भी हो सकता है।
कोड 6: पालिस्टाइरीन या स्टाइरफोम (PS)
ऐसी प्लास्टिक बाइक हेलमेट, यूज एंड थ्रो या डिस्पोजेबल प्लास्टिक कप और प्लेट्स, अंडे रखने के कार्टन, पैकिंग आदि में इस्तेमाल किया जाता है। मांसाहार की बात करें, तो मांस और मछली के उत्पादों को भी इस प्लास्टिक से पैक किया जाता है. हाल ही में जिस प्लास्टिक पर नंबर 6 कोड हो, उसे खतरनाक माना गया है। खासकर गर्म करने में इससे जहरीले रसायन निकलते हैं। इस प्लास्टिक से बने कंटेनर को कभी गर्म नहीं करना चाहिए। ये गर्म होते ही अपना आकार भी बदलता है और हानिकारक पदार्थों को छोड़ता है। इस प्लास्टिक को रीसायकल करने में काफी दिक्कत आती है। ये प्लास्टिक कैंसर का कारण बन सकता है।
पहले ये भी जान लें
अमेरिका की वॉटर प्यूरीफायर और ट्रीटमेंट पर काम करने वाली कंपनी वाटर फिल गुरू ने हाल ही एक रिसर्च की है। रिसर्च में दोबारा इस्तेमाल की जाने वाली पानी की बोतलों को शामिल किया गया। इन बोतलों के सभी पार्ट्स का तीन बार टेस्ट किया। रिसर्च से पता चला कि ऐसी प्लास्टिक में ग्राम निगेटिव रॉड और बैसिलस जैसे बैक्टीरिया हैं। ये आपको गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं से पीड़ित बना सकते हैं। ये बैक्टीरिया घाव, निमोनिया और सर्जिकल साइट इन्फेक्शन का प्रमुख कारण भी बन सकते हैं। खास यह भी है कि इनसे होने वाली बीमारियों पर एंटीबायोटिक का प्रभाव भी नहीं पड़ता।