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प्रतिज्ञा-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Apr 20, 2024 IST | Sapna Jha
प्रतिज्ञा गृहलक्ष्मी की कहानियां
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Hindi Story: सविता और पंडित दीनदयाल दोनों गाँव में रहते थे खेतीबाड़ी करके अपना खर्चा पालते और खुशहाली से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, सविता खुद पढ़ी लिखी नही थी क्योकिं पांच बहने होने थे उसके पिता जी जल्दी- जल्दी सभी लड़कियों की शादी कर जिम्मेदारी से मुक्ति पायी,,

सविता जब ससुराल आई तो बहुत पढ़ने की इच्छा थी लेकिन तब नये घर की जिम्मेदारी और भी साल के अंदर ही एक बेटी तो उसकी देख भाल में ही जीवन कटने लगा | परंतु सविता के मन में हमेशा था की अपनी बेटी प्रीति को खूब पढायेगी पंडित दीनदयाल से उसने पहले ही कह दिया था   "देखो जी मेरी प्रीति को शहर भेज कर खूब पढ़ाऊँगी' कोई कमी नही होने दीजियेगा हाँ पहले से बताये दे रही हूँ??

पंडित दीनदयाल भी अपनी कमाई जोड़ जोड़ के बिटिया को शहर भेज ही दिये, सविता की खुशी की ठिकाना ही नही रहा उसका सपना अब उसकी बेटी जो पूरा करने जा रही थी..

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आज बेटी को गए हुए पूरा आठ महिना हो गया है आज उसका जन्म दिन है दोनों ने विचार किया और पहुँच गए अपनी बेटी के शहर उसके होस्टल

दरवाजे की घंटी की आवाज सुनकर बिटिया प्रीति जो कि शहर में अपनी सहेलियों के साथ कन्या छात्रावास में रहती थी, बिटिया ने दरवाजा खोला और अपनी मां को यूं दरवाजे में देखकर चौक गई। लेकिन प्रीति खुशी के बजाय उसकी आंखों  से क्रोध की चिंगारियां बरसने लगी।

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प्रीति "क्या मां? बिना बताए कोई आता है क्या ??दरवाजे से अंदर भी आने को नहीं कहा प्रीति ने, और पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई ।

चूंकि कन्या छात्रावास था ,तो पिता तो रूम में आने की इजाजत नही थी, पर मन मार  कर सविता अंदर कमरे में आ ही गई। अपने साथ लाए हुए अपने बैग में से बिटिया के जन्मदिन का सामान निकालने का सोचने लगी कि निकालूं या नहीं? इससे पहले ही आसपास की लड़कियां उसे घूरने लगी तभी किसी ने पूछा   " प्रेप कौन आया है??

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मेरी मॉम है!! प्रीति ने कहा ""प्रेप ??

सविता ने पूछा तो बिटिया ने दांत किटकिटाते हुए कहा ,"मां यहां मुझे कोई प्रीति नहीं कहता। यहाँ शहर है प्रीति गांव का नाम है यहां सब मुझे प्रेप ही कहते हैं ।आप भी मुझे इसी नाम से पुकारो यहाँ।"

और इस बैग में क्या लाई हो ?"कल तुम्हारा जन्मदिन है ना !! मेरी रानी बिटिया इस लिए तेरे लिए कुछ लड्डू ,मिठाईयां नमकीन अपने हाँथ से  बना कर लाई हूं।एक डिब्बे में खीर भी है इसे बाहर निकाल दो।" कहती हुई सविता ने बैग में से डिब्बे मिठाइयों के बैग निकालने के लिए जैसे ही आगे बढ़ने को हुई प्रीति ने लपक कर अपनी मां  का हाथ पकड़ लिया।

गुस्से में बोली,' मां क्या तमाशा कर रही हो ?? यह सब देहाती पना यहाँ मत करो !

यह शहर है यहां बर्थडे पार्टी मनाई जाती है। केक काटा जाता है मोमबत्तियां बुझाई जाती है " "यह सब मैं कब और कहां खाऊंगी ??" "मेरा बर्थडे मेरे फ्रेंड्स मना रहे हैं!"

आपने यहाँ आकर मेरी पूरी शाम खराब कर दी।" बिना बताए क्यों चली आई आप ??.

अब मैं अपनी सहेलियों को क्या मुंह दिखाऊंगी ? प्रीति लगभग हांफ रही थी

मेरी सहेलियां सब बड़े घर की हाई प्रोफाइल लड़कियां है। उनके मम्मी पापा इंग्लिश में बात करते हैं ??"और आप तो ठीक से हिंदी भी नही बोल पाती ??".

आपको और पिताजी को मैं होटल में ले जा कर अपने फ्रेंड्स से कैसे परिचय करवाउंगी??'

आप लोग मेरेे साथ  अनफिट हो मां !""

मैं आप लोंगो के साथ अपना बर्थडे नही मना सकती ।" "कृपया करके माँ आप पापा घर चले  जाओ जो सामान लाए हो ना !

वो तो मैं बाद में अकेले में खा लूंगी। नही खा पायी जो बच जाएगा तो मैं किसी को दे दूंगी।पर मैं पार्टी में आप लोगों को अपने साथ नहीं ले जा सकती।"

समझो माँ....

 बेटी प्रीति न जाने और क्या- क्या कहते चली जा रही थी, और सविता अपने देखे हुए सपने को अपने आँखों के आँसू जी रूप में बहते हुए देख रही थी.

चुपचाप अपनी बेटी को ही देखे जा रही थी।

बेटी के हॉस्टल में आकर  उसके साथ जन्मदिन मनाने का उसके पापा का सपना एक साल पहले से था। पंडित दीनदयाल  किसान थे, पर बेटी को उन्होंने शहर में पढ़ने के लिए इसलिए भेजा था ताकि बेटी पढ़ लिख कर समाज के सामने एक काबिल और संस्कारवान  होकर समाज के साथ कदम मिलाकर चल सके ।उन्हीं की इच्छा से आज दोनों पति-पत्नी अपनी बेटी के जन्मदिन मनाने के लिए शहर आए थे । शहर आने के लिए कई दिनों से सविता बड़ी खुश थी।

पर यहाँ आकर तो सब ,"!डबडबाई आंखों से सविता वापस अपनी बेटी के हॉस्टल से सीढ़ियां उतरते हुए सोच रही थी ,अब बाहर जाकर अपने पति को क्या बताएगी?? गेट के बाहर खड़े हुए टहलते हुए पंडित दीनदयाल ने पूछा "कहां रह गई थी तुम?? और रानी बिटिया कहां है??

 "कौन प्रीति  या प्रेप ??

सविता ने ने व्यंग्य से कहा प्रीति नही जी  "प्रेप  बोलिये वो अपना जन्मदिन  इस वर्ष नहीं मना रही है ।

पंडित दीनदयाल ने पूछा "क्यों ? तो सविता ने बहाने बनाते हुए कहा, हमारी बेटी जन्मदिन नहीं बर्थडे मना रही है। वो अब प्रेप है। खीर पूरी नहीं खाती ,पिज़्ज़ा बर्गर खाती है। हमारी मिठाईयां उसे अब नहीं भाती ।शहर के शक्कर हमारी गुड़ पर भारी पड़ गए हैं जी "! "चलिए  चलते हैं । "तुमने अपना आशिर्वाद तो दे दिया  न??" प्रीति के पिता ने कहा सविता ने गहरी सांस लेकर कहा, नहीं उसका भी यहां रिवाज नही।" और सविता अपनी ममता को दबाकर पति को लेकर आगे बढ़ गई!

और सोचते हुए मन ही मन प्रतिज्ञा करती भी जा रही थी कि अपनी आँखों से देखे गए सपने किसी से पूरा होने की उम्मीद अब नही लगायेगी चाहे वह अपनी औलाद ही क्यों न हो

आज सविता बहुत रोई जितना अपनी आँखों से उसने सपना देखा था रो रो कर आज उसको पूरा बहा रही थी..

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