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प्रेगनेंसी और लाइफ स्टाइल्स इफेक्ट्स: Pregnancy Effects

08:30 AM May 23, 2024 IST | Reena Yadav
प्रेगनेंसी और लाइफ स्टाइल्स इफेक्ट्स  pregnancy effects
Pregnancy and lifestyle effects
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Pregnancy Effects: विक रूप से किसी भी महिला की प्रजनन क्षमता 20 से 30 वर्ष की उम्र में सबसे अच्छी होती है और परिवार बढ़ाने के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है। इस दौरान गर्भपात या बच्चे में किसी तरह की मानसिक बीमारी होने का जोखिम सबसे कम होता है। इसके बाद जब महिला 30 की उम्र पार करती है तो उसकी प्रजनन क्षमता भी घटती जाती है। 35 वर्ष तथा इसके बाद इसमें तेजी से गिरावट आती है, यानी हम कह सकते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ महिला के अंडाणुओं की संख्या और गुणवत्ता कम होती जाती है।

यह एक सामान्य मिथक है कि पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर उम्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हकीकत में पुरुष की प्रजनन क्षमता भी कम होती जाती है, लेकिन उनमें इस समस्या के होने की गति काफी धीमी होती है और ऐसा होने का अनुपात भी कम होता है, जबकि ऐसी ही स्थिति महिला के साथ होने पर उसके साथ-साथ भावी शिशु का भी स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यहां तक कि गर्भपात होने या बच्चे के मानसिक विकास के प्रभावित होने का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है।

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बच्चा किसी जन्मजात बीमारी के साथ भी पैदा हो सकता है। इस विषय में विशेषज्ञों का कहना है कि जब हम आज के समय में महिलाओं की प्रजनन क्षमता की बात करते हैं तो आधुनिक जीवनशैली, अनियमित खानपान, तनाव, बहुत कम शारीरिक गतिविधि आदि स्थितियों के कारण 40 की उम्र पार करते-करते ही महिला के मां बनने की संभावना घट कर लगभग पांच प्रतिशत ही रह जाती है। हालांकि रजोनिवृत्ति से पहले आईवीएफ जैसी तकनीकों की मदद से ज्यादातर महिलाएं अपने ही अंडाणुओं की सहायता से मां बन सकती हैं, लेकिन आईवीएफ की सफलता पर भी उम्र का गहरा प्रभाव पड़ता है। जहां एक तरफ इस वास्तविकता को जानना जरूरी होता है, वहीं यह समझना भी बहुत ज्यादा जरूरी हो जाता है कि वर्तमान जीवनशैली से जुड़े और ऐसे कौन से कारण हैं, जो सामान्य रूप से गर्भ धारण करने को तो प्रभावित करते ही हैं, उसके साथ-साथ आधुनिक तकनीकों तक के प्रभाव और लाभ पर बुरा असर डालते हैं।

धूम्रपान से महिला और पुरुष दोनों की प्रजनन क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे जहां पुरुषों में शुक्राणुओं का उत्पादन, गति और आकृति विज्ञान प्रभावित होता है। वहीं महिलाओं में यह फॉलिक्यूलर माइक्रो एनवायरमेंट तथा महिला के अंडाणु निकलने के बाद मासिक धर्म से पहले के समय (ल्यूटल फेज) में हार्मोन्स के स्तर तक को प्रभावित करता है। इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि प्रभावित होने वाली महिला स्वयं धूम्रपान करती हो, बल्कि किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा किए जा रहे धूम्रपान के धुएं के संपर्क में ज्यादा देर तक रहने पर भी उसके दुष्परिणाम उतने ही होते हैं।

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अगर आप धूम्रपान नहीं छोड़ पा रहे हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें। हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें, तनाव से दूर रहें। विटामिन सी का नियमित सेवन करें।

हाइपरटेंशन या हाई ब्लडप्रेशर में धमनियों में रक्तरदाब बढ़ जाता है, जिससे हृदय की रक्त नलिकाओं को ब्लडसर्कुलेशन के लिए सामान्य से अधिक परिश्रम करना पड़ता है। हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, किडनी और हृदय रोगों का खतरा भी बढ़ता है और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है। ब्लड प्रेशर में थोड़ी सी भी बढ़ोतरी जीवनकाल को कम कर देती है।

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ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाना बहुत जरूरी है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, नियमित रूप से एक्सरसाइज करें। अपना वजन नियंत्रण में रखें। संतुलित और पौष्टिïक भोजन का सेवन करें।

डायबिटीज भी महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती हैै। डायबिटीज तब होती है, जब अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता है या जब शरीर प्रभावकारी तरीके से अपने द्वारा स्रायवित उस इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाता। इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त की शर्करा को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शर्करा का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लातइसेमिया कहते हैं। डायबिटीज मुख्यत: तीन प्रकार की होती है। टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज और गेस्टैकशनल डायबिटीज। वैसे इसके एक और प्रकार टाइप 1.5 के मामले भी सामने आ रहे हैं, इसलिए इस बात को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है कि डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है।

खानपान को नियंत्रित कर, नियमित रूप से एक्सरसाइज और उचित दवाइयों का सेवन करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है। रोजाना नियत समय पर खाना खाएं। दिन में तीन बार मेगा मील लेने की बजाय छह बार स्मॉल मिनी मील लें। इससे रक्त में शुगर के स्तर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव नहीं होगा।

Weight
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वजन बहुत ज्यादा या बहुत कम होना भी महिला की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। यह हर्मोंस का असंतुलन पैदा कर सकता है और अंडाणु बनने की प्रक्रिया से जुड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है। इसके अलावा मोटापे के कारण कार्डियोवस्कुलर रोग, मधुमेह तथा कुछ तरह के कैंसर भी हो सकते हैं। इसके अलावा यह पॉली साइटिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) का भी बड़ा कारण है, जो महिलाओं में बांझपन का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। वजन ज्यादा होने से गर्भावस्था के दौरान समस्याएं आती हैं।

रोज हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें, खानपान पर नियंत्रण रखें, तली-भुनी चीजों का सेवन ना करें, फास्ट फू ड से दूर रहें।

खानपान प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मुख्य भूमिका अदा करता है और अंडाणु बनने की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है। संतुलित और पौष्टिक भोजन सामान्य स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और समस्त शारीरिक गतिविधियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता हैं।

हमें अनाज, फाइबर युक्त भोजन, फल, सब्जियां, प्रोटीन जैसी फलियां, तोफू, सूखे मेवे आदि खाने चाहिए। जंक फूड और ट्रांस फैट, अधिक वसा वाली वस्तुओं से दूर रहना चाहिए।

नियमित व्यायाम से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अधिक वजन वाली महिलाएं व्यायाम करें तो उनके मां बनने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि व्यायाम से उनका वजन कम होता है। हालांकि व्यायाम भी बहुत ज्यादा नहीं करना चाहिए। अधिक व्यायाम से महिला में हार्मोन अंसतुलित हो सकते हैं और अंडाणु बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। इससे महिला का सामान्य मासिक चक्र भी गड़बड़ा सकता है।

वास्तव में गर्भावस्था के दौरान भी व्यायाम किया जाए तो मां और बच्चे, दोनों के ही मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। देखा जाए तो व्यायाम न बहुत ज्यादा अच्छा है और न बहुत कम। इसमें संतुलन बनाया जाना जरूरी है।

तनाव भी महिला की प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। तनाव के कारण इसे बढ़ाने वाले हार्मोन जैसे एड्रीनिलीन, कॉर्टीसोल आदि का स्तर बढ़ जाता है, जो महिलाएं पहले गर्भपात की शिकार हो चुकी हैं, उनमें पनपी बेचैनी और अवसाद की स्थिति प्रजनन की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। ठ्ठ

जो दम्पति किसी भी तरह के तनाव या मनोवैज्ञानिक दबाव से जूझ रहे है, उन्हें सही परामर्श लेना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे कार्य करें, जिससे उनका मूड फ्रेश रहे।

alcohol consumption
alcohol consumption

शराब का बहुत ज्यादा सेवन किया जाए तो यह प्रजनन क्षमता घटा सकता है। यह एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ाता है और एफएसएच का स्राव कम करता है। इससे अजन्मे बच्चे के लिए जोखिम पैदा हो सकती है। शराब से पुरुषों में भी शुक्राणुओं की संख्या प्रभावित होती है।
क्या करें ऐसे में यदि कोई दम्पति परिवार बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें शराब का सेवन कम कर देना चाहिए।

(डॉ. अरविंद वैद, आईवीएफ विशेषज्ञ,
इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित।)

पर्यावरण या अपने काम के कारण यदि किसी भी तरह के कीटनाशकों या प्रदूषकों के सम्पर्क में ज्यादा देर तक रहा जाए तो यह भी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। जीवनशैली में कुछ बदलाव और स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों का चुनाव कर महिलाएं अपनी प्रजनन क्षमता को बढ़ा सकती हैं।

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