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प्रेम का रंग-गृहलक्ष्मी की कविता

11:06 AM Sep 16, 2022 IST | Sapna Jha
प्रेम का रंग गृहलक्ष्मी की कविता
Prem ka Rang
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Hindi Kavita: जो वादे किए थे तुमने कभी मुझसे
उन वादों का ज़िक्र करु या न करूं
वो हरबार आदतन तुम्हे सोचा करना
दुआओं में हरपल तुम्हारी फिक्र करना
मैं आज वो सब कुछ, करूँ या न करूं

हमेशा की तरह
तू कुछ बताता क्यों नही
आकर बस एकबार
यह जताता क्यों नही
क्यों नही कह देता कि
मनु , कोई रिश्ता नही अब तुमसे
क्यों नही कह देता कि,
तू बढ़ जा आगे,
वापस नही आ सकता मैं।

आज भी खड़ी हूँ
उसी दोराहे पर
जब तुमने कहा था,
मैं तो बस
एक कॉल की दूरी पर ही हूँ
नम्बर मिलाना एकबार
और मैं हाज़िर
कर रही हूं इन्जार,
देती हूं दिल को झूठी तसल्ली
कि मजबूरी रही होगी कोई तुम्हारी
वरना यूँ मुझे छोड़ नही जाते
मुझसे किये वादे
तुम यूँ पलभर में तोड़ नही जाते।

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ये दिल जो है ना,
वो हार मानता ही नही
जानता है सबकुछ
पर, मानने को तैयार होता ही नही।

याद आती है मुझे आज भी
वो तुम्हारा सफेद गुलाब मुझे देना
जब पूछा था मैंने ये 'सफेद' क्यों
तो, बड़ी अदा से तुमने कहा था,
सफेद प्रतीक होता है 'पवित्रता' का
हमारा प्रेम भी तो पवित्र है न
सुनकर इसे निहाल हो गयी थी मैं
बड़े सम्भाल कर
रख दिया था उसे मैंने
सबकी नजरों से बचा कर
अपनी अलमारी में
पर पता है, अब तो
बदल दिया उसने भी अपना रंग
सफेद से बिल्कुल
'काला स्याह' हो चुका है वो भी
उसके बदलते रंग को देख
क्या समझूँ मैं
क्या बदल गया है
हमारे प्रेम का भी रंग?

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वो मीलों तुम्हारा हाथ थामे, राहों में चलना
वो घंटों तुम्हारे, आंखों में डूबे रहना
तुम्हारी बातों को, अनवरत सुनते रहना
तुम्हारी एक आवाज़ पर, भागी चली आना
तुम्हारे सारे ग़मों को, अपने सर लेना
तुम्हारा उदास चेहरा देख, दुखी हो जाना
तुम्हारे लबों की मुस्कान वापस लाने को,
सारे मुमकिन प्रयास कर जाना।

दिमाग कहता है,
तुम नही हो अब
न मेरे पास, न ही मेरी ज़िंदगी में
पर मेरा दिल जो है न
वो यही कहता है कि तुम हो
मेरे पास न सही,
मेरे साथ हो
मेरी सोच, मेरी मुस्कान में हो
मेरे गीत, मेरी मेरी आवाज़ में हो
मेरे शब्द, मेरी कविता में हो
मेरे खवाब, मेरे ख़यालों में हो
अलग कहाँ हैं हम-तुम
हमदोनो तो एकाकार हैं न

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मेरे दिल और दिमाग के बीच
चलता रहता है
हर रोज़ एक द्वंद
और इस द्वंद में हारकर
चुप हो जाता है मेरा दिमाग
और एक बार फिर से,
जीत जाता है मेरा दिल।

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