गर्भावस्था में इन वायरस से बचाव है महत्वपूर्ण: Virus Protection During Pregnancy
Virus Protection During Pregnancy: दुनिया भर में कई ऐसे गंभीर वायरस व बैक्टीरिया हैं, जो सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के लिए खास नुकसानदायक नहीं होते, पर गर्भवती महिलाओं में इनका असर मां और अजन्मे बच्चे दोनों के लिए गंभीर हो सकते हैं।
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जीका वायरस
गर्भवती महिला में इस वायरस के संपर्क में आने पर हल्का बुखार, त्वचा पर निशान, आंखों में गुलाबीपन और जोड़ों में दर्द के लक्षण देखने को मिलते हैं। जीका वायरस से प्रभावित बच्चों का सिर जन्म के समय छोटा होता है या दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता। पर कुछ स्थितिजन्य तथ्य इस ओर इशारा करते हैं। जीका वायरस की पहचान केवल जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए होती है। कई बार ये लक्षण विकास प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से सामने नहीं आते। जीका वायरस खून में एक सप्ताह तक ही रहता है, इसी अवधि के बीच जांच में यह सामने आ पाता है। हालांकि एक बार वायरस खत्म होने के बाद महिलाओं को किसी तरह का खतरा नहीं है, पर वहां रहने वालों में इसके संपर्क में दोबारा आने की आशंका हो सकती है।
रुबेला
जर्मन मीजल्स यानी रुबेला खांसी व छींक के जरिए तेजी से फैलता है। स्वस्थ लोगों में इसके लक्षण हल्के बुखार, सिरदर्द, जोड़ों का दर्द, खराश के तौर पर दिखते हैं, पर गर्भवती महिलाओं में यह गर्भपात व नवजात शिशु में जन्मजात कमियों का कारण बन सकता है। एमएमआर (मीजल्स, मम्प्स, रुबेला) टीके से इस संक्रमण से बचाव होता है। हालांकि ये टीका भारतीय सामान्य टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है, पर कई राज्य शासित कार्यक्रमों में इसे शामिल किया गया है। भारत में 20 से अधिक उम्र की कई महिलाओं को ये टीका नहीं लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भधारण करने से कम से कम एक माह पहले ये टीका लगवाना बेहतर रहता है। इस वायरस में एक लिवर वायरस होता है, जिससे बच्चे को रुबेला इंफेक्शन हो सकता है, ऐसे में गर्भवती महिलाओं को यह टीका नहीं लगवाना चाहिए।
ग्रुप बी स्ट्रेप
ग्रुप बी स्ट्रेप बैक्टीरिया आमतौर पर किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन गर्भवती महिला व नवजात शिशु को ये नुकसान पहुंचा सकता है। मां से यह संक्रमण नवजात शिशु को बीमार कर सकता है। 35 से 37 सप्ताह की प्रेग्नेंसी में मां को यह टेस्ट करा लेना चाहिए। एंटीबायोटिक के साथ इसका उपचार बच्चे को संक्रमित होने से बचा सकता है।
साइटोमेगालो वायरस
आमतौर पर स्वस्थ व्यक्तियों में इससे नुकसान नहीं होता। यह शरीर में आजीवन असक्रिय पड़ा रह सकता है। पर नवजात शिशुओं और गर्भ में पल रहे शिशु की सुनने की क्षमता पर इसका असर हो सकता है। ये खतरा तब अधिक होता है जब गर्भावस्था के दौरान यह संक्रमण सक्रिय हो जाता है। संक्रमित बच्चा जन्म के समय देखने में स्वस्थ ही लगता है, पर कुछ में बड़े होने के साथ सुनने की क्षमता पर असर देखने को मिलता है। ये थूक, पेशाब, खून व वीर्य आदि फ्लुइड से फैलता है। गर्भवती महिलाओं में यह संक्रमण यौन संबंधों के दौरान या बच्चों के खून व पेशाब से फैल सकता है।
लिस्टिरियोसिस
गर्भवती महिलाओं में इस बैक्टीरिया से प्रभावित होने की आशंका 10 प्रतिशत अधिक होती है। इससे उनमें हल्की थकावट व दर्द के लक्षण दिखायी देते हैं। गर्भपात, बच्चे का विकास न होना या समय से पहले जन्म होना या जन्म के समय बच्चे के कई तरह के संक्रमण से प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है। यह संक्रमण दूषित भोजन, गैर पाश्चुराइज्ड दूध, पनीर, कच्चे मांस व मछली से होता है। गर्भवती महिलाओं को गैर पाश्चुराइज्ड दूध, बिना पके डेयरी उत्पादों व सीफूड से बचना चाहिए। संक्रमित बच्चे के उपचार के लिए एंटीबायोटिक का सहारा लिया जाता है।
क्यो हैं खतरनाक
गर्भावस्था में होने वाले संक्रमण की वजह से कई और दूसरी सेहत संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। अगर उपचार नहीं कराया जाए, तो मूत्र मार्ग का इन्फेक्शन (यूटीआई) बढ़कर किडनी की समस्या पैदा कर सकता है। इससे समय से पहले प्रसव या जन्म के समय शिशु का वजन कम हो सकता है। बैक्टीरिया-जनित वेजाइनोसिस इंफेक्शन की वजह से भी प्रीमैच्योर डिलीवरी या फेटल मेम्ब्रेन्स फटने की आशंका हो सकती है। संक्रमण का प्रभाव मां के साथ-साथ बच्चे पर भी पड़ सकता है। अगर संक्रमण का पता नहीं लगाया जाए या इसका उपचार नहीं कराया जाए, तो कोरिओऐम्निओटाईटिस जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती हैं, जो शिशु में होने वाला संक्रमण है। इसके कारण प्रसव के पहले या उस दौरान शिशु की मृत्यु हो सकती है। समय रहते इस पर ध्यान देकर प्रेग्नेंसी के दौरान और नवजात शिशु में जटिलताओं से बचा जा सकता है।
कैसे कर सकते हैं रोकथाम
गर्भावस्था के दौरान इन्फेक्शन को जल्द से जल्द रोकना बहुत जरूरी है। इन उपायों से गर्भावस्था के दौरान होने वाले संक्रमण और रोगों को कम करने या उन्हें रोकने में मदद मिलती है।
हेल्थ को रखें मेंटेन- गर्भवती स्त्रियों को साबुन और पानी से बार-बार, खासकर शौचालय के बाद, भोजन करने से पहले और पालतू जानवरों को छूने या डायपर बदलने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए क्योंकि इससे सबसे ज्यादा और सबसे तेजी से इन्फेक्शन फैलता है।
बीमार लोगों से दूर रहें- गर्भवती स्त्रियों को संक्रमित खासकर फ्लू, चिकनपॉक्स और हेपेटाइटिस जैसे वायरस-जनित इन्फेक्शन से जूझ रहे लोगों के साथ संपर्क से बचना चाहिए। उन्हें दूसरे लोगों के कप, बर्तन और तौलिए का प्रयोग करने से भी परहेज करना चाहिए।
टीकाकरण कराएं-गर्भवती स्त्रियों को खुद को और अपने बच्चों को फ्लू, रूबेला और हेपेटाइटिस जैसे संक्रमणों से बचाने के लिए टीके लगवाने चाहिए। फ्लू शॉट जैसे टीके गर्भवती स्त्रियों के लिए सुरक्षित हैं और इनसे मां और बच्चे, दोनों को ही बीमारियों से बचे रहने में मदद मिल सकती है।
हेल्दी डाइट लें-गर्भावस्था के दौरान हेल्दी डाइट लेना बहुत जरूरी होता है। गर्भवती स्त्रियों को जरूरी विटामिन्स और खनिज प्रदान करने वाले फलों और सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार लेना चाहिए।
नियमित रूप से जांच कराएं- गर्भावस्था के दौरान डिलीवरी से पहले अपना रूटीन चेकअप करवाते रहें। इनसे इन्फेक्शन और अन्य बीमारियों का पता लग जाता है जिससे मां और बच्चे को होने वाली समस्याओं से बचाए रखने में मदद मिल सकती है। साथ ही, हर्पीस जैसे कुछ खतरनाक संक्रमणों के मामले में जरूरत पड़ने पर डिलीवरी के प्रोसेस में भी बदलाव किया जा सकता है।
- (डाॅ अंशु जिंदल, स्त्री रोग विशेषज्ञ, यूपी)