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रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय

02:00 PM Nov 25, 2023 IST | Reena Yadav
रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
Rabindranath Tagore biography
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‘रवींद्रनाथ टैगोर’ भारतीय साहित्य व संगीत के लोकप्रिय व प्रतिष्ठित नामों में से एक हैं। वह गुरुदेव के नाम से जाने गए। वह एक जाने-माने कवि, संगीतज्ञ, लेखक, शिक्षाविद्, चित्रकार व समाज-सुधारक थे।

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म, कोलकाता (पहले कलकत्ता) के एक समृद्ध बंगाली ब्राह्मण परिवार में 7 मई 1861 को हुआ। वह अपने माता-पिता देवेंद्रनाथ टैगोर व शारदा देवी की तेरह संतानों में से, सबसे छोटे थे।

रवींद्र को बचपन से ही साहित्य व संगीत से लगाव था। उन्हें पुस्तकालय में समय बिताना अच्छा लगता था। उन्होंने अल्प आयु में ही कालिदास व दूसरे प्रसिद्ध भारतीय कवियों को पढ़ लिया था।

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आठ वर्ष की आयु में उन्होंने पहली कविता लिखीं। माता-पिता उनकी असाधारण प्रतिभा देख दंग रह गए।

बारह वर्ष की आयु में रवींद्र को पिता के साथ, भारत के कई भागों में भ्रमण करने का अवसर मिला। वह पिता के साथ भोलापुर के शांतिनिकेतन एस्टेट में गए। फिर पंजाब, हिमाचल प्रदेश व हिमालय की यात्र की। इस यात्र ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। वे भारत की प्राकृतिक सुंदरता व समृद्ध संस्कृति से मोहित हो उठे।

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Rabindranath Tagore biography
Rabindranath Tagore
biography

वह भारतीय संस्कृति, प्रकृति व इससे जुड़ी अन्य बातें जानने की इच्छा रखते थे। स्कूली पढ़ाई में अधिक रुची न थी, किंतु पिता चाहते थे कि वे विदेश में उच्च शिक्षा पाकर, वकील बनें।

रवींद्र के पिता ने डलहौजी में एक घर खरीदा, जो प्रकृति के समीप था। रवींद्र तो इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता को देखके अभिभूत हो उठे। एक दिन उन्होंने पिता के सामने अपना प्रकृति खगोल विज्ञान व कविता के प्रति प्रेम, प्रकट किया।

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"बाबा, मैं प्रकृति की गोद में रहना चाहता हूं। इसकी एक-एक खूबसूरती पर लिखना चाहता हूं।"

"हां पुत्र! प्रकृति तो सुंदरता व आश्चर्य से भरी है, किंतु मैं चाहता हूं कि तुम इन बातों में समय गंवाने की बजाय पढ़-लिखकर वकील बनो," देवेंद्रनाथ ने कहा।

वे पुत्र के इस रुझान से चिंतित हुए व उन्हें विदेश भेजने की योजना बनाने लगे।

Rabindranath Tagore biography
Rabindranath Tagore
biography

1878 में रवींद्र के पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा पाने के लिए ब्रिटेन भेज दिया। उस समय वे सत्रह वर्ष के थे, बड़े भाई सत्येंद्रनाथ भी साथ गए।

रवींद्र को लंदन के एक अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया। फिर वे लंदन यूनीवर्सिटी में पढ़ने गए। वे बहुप्रतिभाशाली थे। उन्हें नया माहौल व लंदन की अनेक नई वस्तुओं ने आकर्षित किया। वे संगीत प्रेमी भी थे।

शीघ्र ही उन्होंने पश्चिमी संगीत सीख लिया और कुछ ही माह में अपने गीतों की धुनें स्वयं बनाने लगे।

वे उच्च शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं थे। पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई और वे भारत लौट आए।

Rabindranath in Britain
Rabindranath in Britain

1880 में, उनके पिता ने उन्हें वापस भारत बुलवा लिया। वे भारत लौटकर साहित्य में रुचि लेने लगे। पहली बार उनकी लिखी कुछ कविताएं प्रकाशित हुईं तो हर जगह से प्रशंसा मिली।

इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। वे पढ़ने-लिखने में अधिक समय बिताने लगे।

Ravindra's return to India
Ravindra's return to India

1884 में रवींद्र को अपनी भाभी कादंबरी देवी की मृत्यु से गहरा धक्का लगा। वह उनके बहुत निकट थे। मां की मृत्यु के बाद, भाभी ने ही उन्हें अपनी संतान की तरह स्नेह दिया था। भाभी उनके जीवन का एक विशाल संबल थीं। रवींद्र शोक में डूब गए। वह उनकी मित्र व मार्गदर्शिका भी थीं। उन्होंने ही रवींद्र के मन में साहित्य व संगीत के लिए लगाव उत्पन्न किया था।

रवींद्रनाथ ने तय किया कि वे कुछ अच्छा रचेंगे व उसे कादंबरी देवी के नाम समर्पित कर देंगे।

उन्होंने ‘शैशव संगीत’ की रचना कीं और उसे कादंबरी देवी को समर्पित किया गया।

Ravindra's return to India
Ravindra's return to India

वर्ष 1883 में, रवींद्र का विवाह भवतारिणी देवी से हुआ। विवाह के बाद उन्हें ‘मृणालिनी देवी’ कहा जाने लगा। इस विवाह से रवींद्र के जीवन में एक सुंदर चरण आरंभ हुआ। वे पत्नी के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।

विवाह के बाद भी साहित्यिक रुझान घटा नहीं। वे एक के बाद एक रचनाएं देते रहे। कुछ अच्छे नाटक भी लिखे।

उनकी सभी रचनाएं भारतीय साहित्य जगत में सराही गईं।

ग्रामीणों के जीवन व बंगाली जीवनशैली ने रवींद्र को लघुकथाएं लिखने की प्रेरणा दी। उन्हें भी बहुत पसंद किया गया।

1891 में रवींद्र को पिता की जिम्मेवारी लेते हुए, जमींदार बनना पड़ा। उन्होंने सियालदह में पारिवारिक एस्टेट का काम संभाला। वे पूरे मन से सारा काम करते रहे। शीघ्र ही वे सबके प्रिय व आदरणीय बन गए। तब तक उनकी पांच संतानें हो चुकी थीं- दो पुत्र व तीन पुत्रियां।

Great works of Rabindra
Great works of Rabindra

वर्ष 1901 में, वे सियालदह से शांतिनिकेतन आ गए। वहां ‘शांतिनिकेतन ब्रह्मचर्य आश्रम’ नाम से स्कूल खोला। उनके पहले पांच छात्रें में भवानीचंद्र चटर्जी भी थे। वह रवींद्र के प्रिय शिष्य थे व उन्हें ‘गुरुदेव’ कहते थे।

शीघ्र ही सभी रवींद्र को गरुदेव कहने लगे। शांतिनिकेतन सफलतापूर्वक चल निकला, किंतु 1902 में मृणालिनी की मृत्यु से, उनके जीवन में दुखों के बादल छा गए। वे बुरी तरह से टूट गए फिर स्वयं को किसी तरह संभाला व काम में मन रमाया।

Great works of Rabindra
Great works of Rabindra

उस समय भारत अंग्रेजों के कब्जे में था। गुरुजी भी भारत के लिए स्वतंत्रता चाहते थे। उन्होंने भारत व उसकी स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों के नाम कविताएं लिखीं। ‘नैवेद्य’ व ‘खैया’ नामक देशभक्ति की रचनाएं बेहद लोकप्रिय हुईं। उनका भाषण ‘स्वदेशी समाज’ आज भी स्मरण किया जाता है। उन्होंने राष्ट्र व इसके स्वतंत्रता संग्राम पर अनेक लेख भी लिखे, जिसने पाठकों के मन में देशभक्ति की भावना जागृत की।

रवींद्र एक बार अपने पुत्र के साथ लंदन गए। यात्र के दौरान, उनके मन में विचार आया कि "भारत की कीर्ति व समृद्ध संस्कृति का प्रचार पश्चिमी देशों में भी हो सके तो कितना अच्छा हो!"

गुरुदेव के इसी विचार ने उन्हें उनकी महान साहित्यिक कृति ‘गीतांजलि’ रचने की प्रेरणा दी। उन्होंने इस कृति में अपनी सैकड़ों देशभक्ति की कविताएं अंग्रेजी में अनूदित कीं। महान कलाकार रोथेनस्टीन व प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू. बी. चीट्स भी इनसे प्रभावित हुए। डब्ल्यू. बी. चीट्स ने गीतांजलि का सुंदर परिचय भी लिखा।

Great works of Rabindra
Great works of Rabindra

1912 में, गीतांजलि के प्रकाशित होते ही, पूरे लंदन में उत्सुकता की लहर दौड़ गई। लंदनवासी गुरुदेव व उनके काव्य के प्रशंसक हो गए।

रवींद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय थे, जिन्हें 1913 में, साहित्य योगदान के लिए ‘नोबल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

इसके बाद अंग्रेज सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। पहली बार किसी भारतीय को नाईटहुड दिया गया था।

साहित्य के अतिरिक्त रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय समाज को ‘रवींद्र संगीत’ का उपहार भी दिया।

कला का कोई भी क्षेत्र, बहुमुखी प्रतिभा के गुरुदेव से अछूता नहीं रहा। उन्होंने अनेक सुंदर चित्र भी बनाए। उनके चित्रें की अनेक प्रदर्शनियां लगाई गईं।

Great works of Rabindra
Great works of Rabindra

रवींद्र एक समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों को मिटाना चाहा। अछूत प्रथा को मिटाने में भी अपना योगदान दिया।

वे अपने जीवनकाल में अनेक महान हस्तियों से मिले; जैसे- आईंस्टीन, मुसोलिनी, एच-जी-वेल्स आदि।

उन्होंने अपने जीवन में अनेक कविताओं, कहानियों, लेखों व गीतों की रचना की।

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखीं।

भारत का राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ भी उन्हीं के द्धारा लिखा गया था।

Great works of Rabindra
Great works of Rabindra

वृद्धावस्था के कारण भी उनके कार्य में कभी कोई कमी नहीं आई। वे निरंतर पढ़ते-लिखते रहे, भाषण देते रहे, समाज-सेवा करते रहे व विदेश यात्रओं पर जाते रहे। इस तरह उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन खराब रहने लगा।

जुलाई 1941 में, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। गुरुदेव को बचाने के लिए कई ऑप्रेशन किए गए व कई विशेष प्रकार की चिकित्साएं उपलब्ध कराई गईं, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। 7 अगस्त, 1941 को गुरुदेव अस्सी वर्ष की आयु में चल बसे।

Last phase of Gurudev's life
Last phase of Gurudev's life

उनकी मृत्यु की सूचना देश-विदेश में किसी भयंकर आघात की तरह फैल गई। यह राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी हानि थी। आज भी देश-विदेश में उनके साहित्य, गीत व संगीत को बेहद चाव से पढ़ा, सुना व देखा जाता है।

गुरुदेव ने अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से प्रेम, एकता, भाईचारे व शांति का संदेश प्रचारित किया। हमें उस महापुरुष के जीवन से प्रेरणा व सबक लेना चाहिए, जिसने अपने उल्लेखनीय योगदान से राष्ट्र के रूपांतरण व सुधार के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

Last phase of Gurudev's life
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