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रविवार व्रत की कथा व पूजन विधि

11:30 AM Jul 07, 2022 IST | sahnawaj
रविवार व्रत की कथा व पूजन विधि
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Ravivar vrat katha pujan vidhi

सूर्य के बिना इस सृष्टि की कल्पना करना भी मुश्किल है। अगर ये न होता तो शायद धरती पर जीवन भी संभव न हो पाता। हमारे यहां सदियों से भगवान सूर्य नारायण की आराधना व पूजा की परंपरा रही है। सूर्य देव की अर्चना का ऐसा ही एक प्रमुख उपाय है रविवार का व्रत। क्या है रविवार व्रत कथा व पूजन विधि जानें इस लेख से।

मनुष्य की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत करना एक उत्तम उपाय है। इस व्रत के करने से मनुष्य सूर्य देव को प्रसन्न कर अपने जीवन की समस्त बाधाओं को दूर कर सुख से अपना जीवनयापन कर सकता है। इस व्रत को करने के लिए प्रात:काल स्नानादि करके साफ-धुले कपड़े पहनें और शांतचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करें। इस व्रत में एक ही समय भोजन अथवा फलाहार दिन ढलने से पहले ही कर लेना चाहिए। यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें। व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिए। व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण न करें।

रविवार व्रत कथा (Ravivar vrat katha pujan)

एक बुढ़िया का नियम था कि वह प्रति रविवार को प्रात: स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर, भोजन तैयार कर, भगवान को भोग लगा कर, उसके पश्चात् भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर सभी धन-धान्य से परिपूर्ण था। लेकिन कुछ दिन बाद उसकी एक पड़ोसन, जिसकी गाय का गोबर यह बुढ़िया लाया करती थी, विचार करने लगी कि यह वृद्धा, सर्वदा मेरी गाय का ही गोबर ले जाती है।

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इसलिए अब मैं इसे अपनी गाय का गोबर नहीं ले जाने दूंगी। यह सोचकर वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी। बुढ़िया, गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से न लीप सकी। इसलिए उस दिन उसने न तो भोजन बनाया, न भोग लगाया और न ही भोजन किया।

इस प्रकार उस दिन उसने निराहार व्रत किया। रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गई। रात में भगवान ने उससे स्वप्न में भोजन न बनाने और भोग न लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण बताया तब भगवान ने कहा कि माता, हम तुम्हें सर्व कामना पूरक गाय देते हैं और भगवान ने उसे वरदान में गाय दी और उसकी परेशानी दूर की। इसके अलावा सूर्य देव ने सपने में इस व्रत को करने वाले अन्य व्रतियों की मनोकामना भी पूर्ण की।

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भगवान सूर्य के इस व्रत को करने वाले निर्धनों को उन्होंने धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर अपने भक्तों के दु:खों को दूर किया। साथ ही अंत समय में उस बुढ़िया को मोक्ष दिया और अंतर्ध्यान हो गए। आंख खुलने पर आंगन में अति सुंदर गाय और बछड़ा देखकर वृद्धा अति प्रसन्न हो गई। जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय व बछड़े को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी।

साथ ही देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है। उसने वह गोबर अपनी गाय के गोबर से बदल दिया। रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी न लगी। भगवान ने देखा कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है। इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने जोर की आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया। सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी।

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उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा से शिकायत कर दी कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है। राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली। बुढ़िया ने गाय के वियोग में अखंड व्रत रखे। उधर व्रत के प्रभाव से राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया। सूर्य भगवान ने राजा से स्वप्न में बुढ़िया को गाय लौटाने को कहा। सुबह होते ही राजा ने ऐसा ही किया।

साथ ही पड़ोसन को उचित दंड दिया। साथ ही राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया। तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे और उन लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण हुई।

व्रत का विधान (Ravivar vrat vidhan)

यह व्रत सूर्याष्ठी रथ सप्तमी या शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से आरंभ कर प्रत्येक रविवार को 12 सप्ताह या पूरे एक साल रखना चाहिए। विशेष कामनाओं के लिए इसे बारह साल तक किया जा सकता है। व्रत के दिन तेल और नमक का परहेज करते हुए सूर्य भगवान का ध्यान करना चाहिए। इसे एक दिन के उपवास के साथ विधिपूर्वक इस प्रकार से किया जाता है।

  1. रविवार को सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म से निपटने के बाद घर के ईशान कोण में किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए
  2. व्रत के लिए संकल्प के बाद सुगंध, धूप, फूल, दीप आदि से लाल चंदन का तिलक लगाकर सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए लाल रंग का फूल शुभ होता है। दोपहर के समय एक बार फिर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा के बाद कथा श्रवण करनी चाहिए।
  3. व्रत के दिन सिर्फ गेहंू के आटे की रोटी गुड़ के साथ खानी चाहिए। साथ में दलिया, घी और शक्कर हो सकता है। किसी कारण सूर्य अस्त हो जाने तक भोजन नहीं कर पाने की स्थिति में अगले दिन के सूर्योदय तक निराहार रहना चाहिए। प्रात: स्नानादि कर सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
  4. व्रत के पूजन या व्रत कथा के अंत में रविवार की आरती जरूर गानी चाहिए।

रविवार की आरती (Ravivar vrat ki arti)

कहुं लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे।
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुंभ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झन्कार करे हो राम।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्म वेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरे हों राम।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चंवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये।

क्यों करें यह व्रत?

सुख-समृद्धि और सर्वमनोकामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रविवार के व्रत की महिमा अपरंपार है। इससे न केवल शत्रु पर विजय प्राप्त होती है, बल्कि संतान प्राप्ति के भी योग बनते हैं। साथ ही यह व्रत नेत्र रोग और कुष्ठ रोग के निवारण के लिए भी किया जाता है। रविवार के दिन भगवान सूर्य की आराधना सूर्य ग्रह के प्रभाव को सकारात्मक बनाने के लिए की जाती है। सूर्य ग्रह की शांति के लिए माणिक रत्न धारण करना चाहिए। इस दिन लाल कपड़े के दान को शुभ और फलदायी बताया गया है। इसे इतवारी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

यदि किसी की कुंडली में सूर्य के अलावा कोई अन्य ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहा हो और किसी विशेष कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही हो, तो वैसे व्यक्ति को रविवार का व्रत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह व्रत अच्छी सेहत और तेजस्विता देता है। इससे व्रती के स्वभाव में आत्मविश्वास आता है। आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है। स्त्रियों में इस व्रत से संतानहीनता दूर होती है। इस तरह सर्वकामना पूर्ण करने वाला यह व्रत मनुष्य के लिए परम हितकारी है।

श्री सूर्य देव की आरती

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।
षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥
जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥
नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।
निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥
करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

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