रोज़ डे—गृहलक्ष्मी की कविता
Rose Day Poem: आज बाज़ार गई तो
फूलों का व्यापार होते देखा,
दुकानों,एक्स्ट्रा काउंटर्स पर
लाल गुलाब बेहिसाब देखा।
ओह!आज रोज़ डे है…
जो हर वर्ष फरवरी में आता है।
दिमाग में एक विचार कौंधा
ये प्यार लाल गुलाब से ही क्यों दर्शाया जाता है?
शायद लाल रंग प्यार का प्रतीक हो!
पर फूल गुलाब ही क्यों, गुड़हल,डहेलिया
भी तो हो सकता था?पर तभी लगा कि
गुलाब सी कोमलता और दूजे में कहां?
इसकी नर्म पत्तियां, मादक सुगंध
और सुंदरता दिल चुरा लेती है,
कितनी ही अनकही बातें,इशारों
में,वो,मिनटों में कह देती है।
कितने ही प्रेमी इसकी सूखी पत्तियों को
जान से ज्यादा सहेज के अपने पास रखते हैं,
वो उनके प्यार का प्रतीक होती हैं
ऐसा वो सब कहते दिखते हैं।
पर मजे की बात ये है कि जिन्हें
ये गुलाब का फूल लेने देने का
जिंदगी भर का लाइसेंस मिल जाता है
वो बाद में उसकी जगह गोभी का फूल
और धनिया लाते ही दिखते हैं।
अब बात भी सही है,प्यार
जिंदगी के लिए जरूरी होता है
लेकिन पापी पेट को खाने के लिए
गुलाब नहीं गोभी,धनिया ही चाहिए।
तो सुन लें सारी जनता,कान खोल के!
जिस जिस को गुलाब की जगह गोभी
मिल रही है,वो भी वेलेंटाइन डे मना रहे हैं
असली प्यार का लुत्फ तो जनाब आप ही उठा रहे हैं।