सरस्वती वंदना-गृहलक्ष्मी की कविता
Hindi Poem: हे मांँ वीणा वादिनी ऐसा तू वरदान दे,
ज्ञान से झोली तू भर दे, ज्ञान का आकाश दे।
ज्ञान की गंगा बहे, ज्ञान का भंडार दे
ज्ञान की चाशनी में, मांँ तू हमको पाक दे।
ज्ञान की सरगम सजें, ज्ञान का संगीत हो
ज्ञान के नूपुर बजें, ज्ञान के ही साज़ हो।
ज्ञान से सजें लेखनी, ज्ञान की स्याही तू दे।
ज्ञान के पन्नों पर माँ तू, ज्ञान अमृत बांँट दें।
ज्ञान का आंँगन सजें, ज्ञान की ही धूप दे,
ज्ञान की पवन बहे, ज्ञान की बरसात दे।
ज्ञान से हृदय भरा हो, ज्ञान ही बस में सुनूंँ,
ज्ञान ही मैं मुख से बोलूंँ, ऐसा दीपक वाल (जला)दें।
ज्ञान से हर भाव समझूंँ, ज्ञान से ही भाव लिखूंँ,
सार्थक साहित्य की करुंँ मैं सेवा, ऐसा तू आशीष दे।
हस्त (हाथ) जोड़े मै खड़ी मांँ, सुन लो मेरी प्रार्थना
ज्ञान के सागर से मोती, मेरे आंँचल में तू डाल दे।
ज्ञान का करार दे मांँ, ज्ञान का श्रृंगार दे,
ज्ञान की थपकी तू दे माँ, आके हमको थाम ले।
हर सखा के दिल की समझूंँ,ऐसा तू आशीष दे,
हर बात सरलता से मै लिख दूंँ,ऐसा तू वरदान दे।
परिवार संँग शरण मैं तेरी, अब तो हाथ थाम ले,
अज्ञान का तिमिर हटाकर, ज्ञान का आलोक दे।
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