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शिकायतों का भी एक अलग ही वक़्त होता है-गृहलक्ष्मी की कविता

01:00 PM Apr 19, 2024 IST | Sapna Jha
शिकायतों का भी एक अलग ही वक़्त होता है गृहलक्ष्मी की कविता
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Hindi Poem: थककर लौटे हुए पति से नहीं करना चाहिए शिकायतें
और जो घर पर ही रहे, हर समय
उससे तो भूलकर भी कुछ न कहना चाहिए
उलझा जो होता है वो अपने नाकारेपन में
जबकि तुम तो खुद ही सदियों से
स्‍वयं के नाकारेपन को झेल रही हो
और सकारे सकारे तो कुछ बोलना ही नहीं
चाय का स्‍वाद कसैला हो जाता है
तुम्‍हारा मन कितना ही कड़वा क्‍यों न हो
चाशनी झलकनी चाहिए शब्‍दों में
और खाते बखत तो बस
प्रेम ही परोसना चाहिए
आंखो का खारापन नहीं
थाली के संग मुस्‍कान सजी होनी चाहिए
रात की नींद न खराब करनी चाहिए
शिकायतों से
रात को तो बस देह की जरूरतों को समझना चाहिए
मन की जरूरतें तो वैसे भी
अधूरापन लेकर ही जन्‍मती हैं
शिकायतों का पिटारा नहीं खोलना चाहिए कभी भी
शिकायतें होनी चाहिए बस मुट्ठी भर
कि कहीं भी इधर उधर रखी जा सकें
और फिर उन्‍हें भूल जाना भी हो आसान
वैसे तो कोशिश करों
कि शिकायतें जन्‍म ही न लें
और जो जन भी जाएं
तो जनते ही मार डालना चाहिए उन्‍हें
क्योंकि तुम्हारी शिकायतों के लिए कोई वक्त ही नहीं बना…..

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