जानें क्यों भगवान शिव के ही लिंग की होती है पूजा, ये कहते हैं वेद व पुराण: Shivratri History
Shivratri History: हिंदू धर्म बहुदेववाद पर आधारित है। जिसमें 33 कोटि देवी-देवता माने गए हैं। इन देवी- देवताओं की पूजा मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा करके भी की जाती है। पर इन सभी देवी-देवताओं में सिर्फ एक ही देव ऐसे हैं, जिनकी मूर्ति के अलावा लिंग की भी पूजा होती है। ये देव देवों के देव महादेव यानी भगवान शिव है। जिन्हें शंकर, भोलेनाथ, अवसर सहित कई नामों से जाना जाता है। पर कम ही लोग जानते हैं कि अकेले भगवान शिव ही वह देव क्यों है जिनके लिंग की पूजा होती है। ऐसे में आज हम आपको लिंग पूजा का वही रहस्य बताने जा रहे हैं।
Shivratri History: ये कहता है शिव पुराण
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा का एक कारण शिव पुराण में बताया गया है। जिसमें सूतजी ने ऋषियों के पूछने पर उन्हें भगवान शिव की मूर्ति व लिंग की पूजा महत्व बताया था। इसी संवाद में ही ऋषि सूतजी से पूछते हैं कि सब देवताओं की पूजा मूर्ति में ही होती है तो भगवान शिव की पूजा मूर्ति व लिंग दोनों में क्यों होती है? इस पर सूतजी कहते हैं कि मुनिश्वरो एकमात्र भगवान शिव ब्रह्म रूप होने के कारण निष्कल यानी निराकार कहे गए हैं।
रूपवान होने के कारण उन्हें सकल यानी भी कहा गया है।इसलिये वे साकार और निराकार दोनों है। शिव के निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा निराकार लिंग यानी प्रतीक के रूप में होती है। जबकि शिव के साकार होने के कारण उनकी पूजा मूर्ति रूप में भी की जाती है। शिव के अलावा जो देवता हैं वे साक्षात ब्रह्मा नहीं व साकार है। इसलिए उनकी पूजा साकार रूप में की जाती है। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार के पूछने पर नन्दिकेश्वर ने उन्हें भी भगवान शिव के लिंग पूजन का यही कारण बताया था।
लिंग सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक
पंडित जोशी के अनुसार भगवान शिव आदि- अनादि होने की वजह से उनसे ही सृष्टि की उत्पत्ति मानी गई है। चूंकि उत्पत्ति में लिंग को बीज रूप माना गया है, ऐसे में इस वजह से भी भगवान शिव का प्रतीक लिंग को माना गया है। गीता में भी लिखा है कि
‘सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: संभवन्ति या:।
तासां ब्रह्मा महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता।।’
यानी समस्त प्राणियों में जितनी वस्तुएं उत्पन्न होती है, उन सबकी योनि अर्थात उत्पन्न करने वाली माता प्रकृति है और बीज देने वाला शिव यानी लिंग मैं हूं। मतलब मूल प्रकृति और परमात्मा ही उन योनि- लिंग स्वरूप माता पिता के रूप में उन-उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
वेदों व लिंगोद्भव में भी छिपा रहस्य
शिव लिंग पूजन का कारण वेदों व लिंगोद्भव की प्राचीन मूर्तियों में भी छिपा है। वेदों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति व अंत का क्रम लगातार चलता है। भगवान शिव ही इस सृष्टि का संहार कर ब्रह्मा रूप में उसकी फिर से रचना करते हैं। इसलिए भी वे सृजन करने वाले लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। यही वजह है कि लिंगोद्भव की प्राचीन मूर्तियों में भी लिंग से ही सभी देवी-देवताओं सहित सृष्टि की उत्पत्ति को दर्शाया गया है।
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