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सोच बदलों : देश बदलो

09:00 PM Apr 25, 2024 IST | Reena Yadav
सोच बदलों   देश बदलो
Soch Badlo Desh Badlo
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Soch Badlo Desh Badlo: इस देश को, इस समाज को, हमारी सभ्यता और संस्कृति को बचाने का स्वच्छता के अतिरिक्त और कोई दूसरा मार्ग अब शेष नहीं रह गया है। क्या हमारी स्वचेतना पर कोई असर पड़ रहा है क्या हम इस दिशा में प्रयाप्त संवेदनशील हो रहे हैं इतने विशाल खर्चे पर होने वाले कार्यक्रमों, जागरुकता अभियानों और नारों का अभी भी यदि हमारी सुप्त चेतना और गैर जिम्मेदार रवैये पर प्रभाव नहीं पड़ा, तो इससे अधिक दुर्भाग्य की बात कुछ और नहीं हो सकती। स्वच्छ एवं स्वस्थ रहना किसी भी मनुष्य मात्र के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं उसकी प्राथमिक पहचान होती है। स्वच्छता के मार्ग पर चलकर ही स्वास्थ्य, समृद्घि और सम्मान को प्राप्त किया जा सकता है।
संपूर्ण स्वच्छता के अखिल भारतीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के सवा सौ करोड़ नागरिकों में एक मानसिक क्रांति पैदा करनी होगी। यह मानसिक क्रांति ही एक अनुशासन और सतत परिश्रम की ओर समाज को ले जा सकती है। धैर्यपूर्वक योजनाबद्घ ढंग से निरंतर कार्य करने के बाद ही स्थाई सफलताएं प्राप्त हो सकती है। यह बात भारतीय नागरिकों को समझनी चाहिए। 'आज ही बोएं, आज ही खाएं वाली व्याकुल, अधीर और स्वार्थपूर्ण मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है। इस मानसिकता से मुक्त हुए बिना 'समर्थ भारत का निर्माण संभव नहीं हो पाएगा। राष्टï्र के निर्माण में सैकड़ों वर्षों तक अनेक पीढ़ियों को अपना सर्वस्व खपाना पड़ता है।
भारतीय नागरिकों की परीक्षा की घड़ी आ चुकी है। आज हमारी मानसिकता बेहद संकुचित हो गई है और इसलिए हमें किसी भी कार्य का परिणाम जल्द मिल जाए, ऐसी हमारी उत्सुकता और व्यग्रता सदैव बनी रहती है। हम यह भी चाहते हैं कि हमारे किए कार्य का प्रदर्शन हो और उसकी प्रशंसा भी हो। हम में से अधिकांश लोगों में स्वप्रेरणा का अभाव होता है और यही कारण है कि देश को स्वच्छ बनाने के लिए अभियान चलाने की आवश्यकता होती है, जबकि यह भाव तो हम सभी में स्थाई रूप से स्वत निर्मित होना चाहिए।

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'स्वच्छ भारत और 'स्वस्थ भारत वास्तव में एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वच्छता निश्चित रूप से स्वस्थ रहने की गारंटी है। स्वच्छता एक अवधारणा ही नहीं, बल्कि एक प्रवृति भी है। आज जरूरत इस बात की है कि भारतीय नागरिकों में इस प्रवृति का निरंतर विकास किया जाए। इसके विकास और विस्तार के लिए जरूरी है कि पूरे देश में युद्घस्तर पर स्वच्छता के प्रति एक-एक नागरिक को जागरूक किया जाए। अक्सर हम सार्वजनिक स्थलों पर सफाई के लिए सरकारी एजेंसियों को कोसते रहते हैं। सवाल यह है कि आखिर यह गंदगी कहा से आती है इसे कौन फैलाता है इसके लिए कौन दोषी है जितना सफाई न करने वाला एक सरकारी कर्मी और प्रशासन दोषी है, उतना ही गंदगी फैलाने वाले भी कसूरवार हैं। इसलिए गंदगी और स्वच्छता भी एक-दूसरे के साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है। इसके लिए व्यक्तिगत प्रयास के साथ-साथ व्यापक सामुदायिक प्रयास भी किए जाने की आवश्यकता है।
हम अक्सर स्वच्छता को लेकर पाश्चात्य देशों का उदाहरण देते हैं, ऐसा नहीं है कि विकसित पाश्चात्य देशों के नागरिक मात्र नियम-कानून के भय से अनुशासित रहते हैं, बल्कि यह उनकी विकसित एवं परिपक्व चेतना के कारण संभव हो पाता है। पाश्चात्य विकसित देशों के नागरिक राष्टï्र और पर्यावरण के प्रति अपने दायित्वों को बहुत बेहतर ढंग से समझते हैं। भारतीय नागरिकों को भी राष्टï्र और पर्यावरण के प्रति इसी प्रकार का चेतनाभाव स्वयं में विकसित करना होगा।
मात्र सरकार के भरोसे बैठे रहने से यह विशाल देश साफ-सुथरा नहीं हो सकता। विडम्बना यही है कि भारतीय नागरिक अधिकांशत हर काम में सरकार का मुंह देखते रहने के तथा उसके भरोसे बैठे रहने के आदी हो चुके हैं। इतने बड़े देश में समस्त संसाधन जुटा पाना किसी भी सरकार के लिए कभी संभव नहीं हो पाएगा। नागरिक दायित्वबोध ही सरकार के इस बोझ को अपने ऊपर ले सकता है। हम जिस प्रकार से अपना समझकर अपने घर को साफ-सुथरा रखते हैं, वैसे ही यदि गली-मुहल्ला तथा अपने सार्वजनिक स्थल भी साफ-सुथरा रखने की प्रतिज्ञा कर लें, तो वास्तव में कभी गंदगी दिखेगी ही नहीं।

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