Teach Us Too: हमें भी पढ़ाओ' ने आचार्य सुदर्शन को बनाया गरीबों का मसीहा
Teach Us Too: यह सब संभव हुआ है आचार्य श्री सुदर्शनजी महाराज द्वारा छेड़े गए महाभियान से। पिछले 20 वर्षों से चल रहे ‘हमें भी पढ़ाओ’ महाभियान ने हजारों स्लम बच्चों की जिंदगी ही बदल दी। कभी वे रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर प्लास्टिक चुनते थे। बचपन में ही सिगरेट और दूसरे नशे के आदी हो गए थे, लेकिन आचार्य श्री सुदर्शन जी महाराज के इस अभियान ने ऐसे बच्चों को नेक और काबिल बना दिया। आज ये बच्चे मध्य वर्गीय परिवार के बच्चों की तरह सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। इस महाभियान में सैकड़ों स्वयंसेवक साथ दे रहे हैं। वे स्लम में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। उन्हें साक्षर बनाते हैं। तहजीब सिखाते हैं। पटना सहित पूरे राज्य के कई झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में ‘हमें भी पढ़ाओ’ का केंद्र चल रहा है। यहां 50-100 की संख्या में बच्चे आते हैं। महाराज जी के नेक कार्य से जुड़े स्वयंसेवक इन बच्चों को दो घंटे पढ़ाते हैं। छह माह तक उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। इसमें अक्षर ज्ञान के साथ खाना खाने, कपड़े पहनने, माता-पिता से व्यवहार करने और साफ-सफाई के तरीके व सलीके सिखाए जाते हैं। फिर इन बच्चों को पास के ही किसी निजी विद्यालय में दाखिला करा दिया जाता है। इसका सारा खर्च आचार्य श्री सुदर्शन जी महाराज वहन करते हैं। केंद्र में आनेवाले बच्चों को कॉपी, किताब, स्लेट, कपड़ा आदि मुफ्त में दिया जाता है। कई बार उनके घर पर खाद्य सामग्री भी पहुंचाई जाती है। इन केंद्रों के माध्यम से पढ़े स्लम के बच्चों का पटना सेंट्रल स्कूल और कृष्णा निकेतन में 25 प्रतिशत सीट पर नामांकन होता है। पढ़ाई का सारा खर्च स्कूल वहन करता है।
‘हमें भी पढ़ाओ’ विचार की क्रांति मेरे अंदर तब जगी, जब पटना के चितकोहरा पुल के नीचे प्लास्टिक की खोली में रहनेवाले रामू से भेंट हुई। मैंने उसके दुर्दशाग्रस्त जीवन को निकट से देखा। विठुरी पहने रामू, उसकी पत्नी, उसके दो बच्चों को जब भोजन के लिए लड़ते देखा तो मन भर आया। बड़ी बेचैन हालत में मैं पटना सेंट्रल स्कूल आया। रामू का उदास चेहरा मन को पीड़ा के वेग से बेधे जा रहा था। मैंने उसी समय मन ही मन संकल्प किया और अंदर से आवाज निकली, ‘हमें भी पढ़ाओ’। बस, शुरू हो गया मेरे जीवन का यह अभियान।’
अब तक 50 हजार बच्चे पढ़ चुके हैं
‘हमें भी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत वर्ष 2001 में हुई। इस तरह के कई केंद्रों से राज्य भर से लगभग 50 हजार बच्चे पढ़ कर निकल चुके हैं। कई बच्चे तो अब युवा होकर खुद इस तरह के केंद्रों में पढ़ा रहे हैं। आचार्य श्री सुदर्शन जी महाराज कहते हैं कि इस अभियान में शामिल शिक्षक-शिक्षिकाओं को अभी भी बच्चों को केंद्र तक लाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाले लोगों में जागरूकता का इतना अभाव है कि वे अपने बच्चे को पढ़ाना तक नहीं चाहते हैं। लेकिन हम लोगों ने भी बदलाव की ठान रखी है। इसलिए उन्हें बिना राजी किए मानते नहीं हैं। ‘हमें भी पढ़ाओ” अभियान के तहत बच्चों के अभिभावकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्हें भी कुशल बनाया जा रहा है ताकि वे सही से अपना जीवनयापन कर सकें। उन्हें तरह-तरह के हुनर सिखाए जा रहे हैं। आचार्य जी कहते हैं कि हमारे पास संसाधन सीमित है। यदि समाज से सहयोग मिलना शुरू हो जाए तो पूरे बिहार में कायापलट हो सकता है। फिर झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाले बच्चों का जीवन अभिशाप नहीं होगा। उनके मन में समाज के प्रति विद्रोह या गुस्सा नहीं रहेगा।
कौन जाने कहां से डॉ. अंबेडकर निकल आए
महाराज जी कहते हैं कि हम प्रयास कर रहे हैं। कौन जानता है कि इस महाभियान से डॉ. बी आर अंबेडकर या डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसी कोई शख्सियत निकल आए। लोगों से भी अपील करते हैं कि इसमें वे साथ आएं। हम हरियाणा में संयुक्त प्रयास शुरू कर चुके हैं।