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Top 20 Munshi Premchand Stories in Hindi-मुंशी प्रेमचंद की कहानियां

10:38 AM Jan 22, 2024 IST | Reena Yadav
top 20 munshi premchand stories in hindi मुंशी प्रेमचंद की कहानियां
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मुंशी प्रेमचंद की कहानियां:शीर्ष 20 मुंशी प्रेमचंद की कहानियों (Munshi Premchand Stories) का संग्रह: आइए जानें इस पृष्ठ की संक्षेपित कहानियों का रूपंतरण। मुंशी प्रेमचंद, हिन्दी साहित्य के महान कथाकार, के शीर्ष 20 कहानियों का यह संग्रह हमें उनकी अमूल्य रचनाओं का सारांश प्रदान करता है। हर कहानी एक अलग दृष्टिकोण और समाजिक संदेश के साथ साजीव और मनोहर है, जो आपको जीवन के अद्भुतता और अर्थ की खोज में आमंत्रित करती हैं। इस सांग्रहिक के माध्यम से हम एक साहित्यिक यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें समाज, मानवता, और भारतीय सांस्कृतिक विविधता की शानदार छवियाँ छुपी हैं। यहां आपको मुंशी प्रेमचंद के कहानी-सागर का आनंद लेने का मौका है, जो आपके मन को छू जाएगा और सोचने पर मजबूर करेगा।

1.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : शतरंज के खिलाड़ी 

2. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : कफ़न

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3. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : गुल्ली-डंडा

4.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : लेखक

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5. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : सुहाग की साड़ी

6. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : जुर्माना

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7.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : प्रेरणा

8. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : रहस्य

9.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : बोध

10. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : मेरी पहली रचना

11.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : सच्चाई का उपहार

12. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : कश्मीरी सेब

13. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : बूढ़ी काकी

14.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : जीवन सार

15. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : परीक्षा

16. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : तथ्य

17.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : दो बहनें

18. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : आहुति

19.मुंशी प्रेमचंद की कहानी : होली का उपहार

20. मुंशी प्रेमचंद की कहानी :पंडित मोटेराम की डायरी

वाज़िदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मज़लिस सजाता था, तो कोई अफ़ीम की पीनक ही के मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का प्रावधान था। शासन-विभाग में, साहित्य क्षेत्र में, सामाजिक व्यवस्था में, कला-कौशल में, उद्योग-धंधों में, आहार-विहार में सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही थी। कर्मचारी विषय-वासना में, कविगण प्रेम और विरह के वर्णन में, कारीगर कलाबत्तू और चिकन बनाने में, व्यवसायी सुरमे में, इत्र, मस्सी और उबटन का रोजगार करने में लिप्त थे। सभी की आँखों में विलासिता का मद छाया हुआ था। संसार में क्या हो रहा है इसकी किसी को खबर न थी। read more...

झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अन्दर जवान बेटे की बीवी बुधिया प्रसव-वेदना से पछाड़ खा रही थी । रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे । जाड़े की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गांव अन्धकार में लय हो गया था ।

घीसू ने कहा - मालूम होता है, बचेगी नहीं । सारा दिन दौड़ते ही गया, जा देख तो आ ।

माधव चिढ़कर बोला - मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती? देखकर क्या करूँ?

‘तू बड़ा बेदर्द है बे! साल-भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई!'

‘तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता ।' read more...

हमारे अंग्रेजीदां दोस्त मानें, या न मानें मैं तो यही कहूंगा कि गुल्ली-डण्डा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डण्डा खेलते देखता हूं, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूं। न लॉन की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मजे से किसी पेड़ की एक टहनी काट लो, गुल्ली बना लो और दो आदमी भी आ गये; तो खेल शुरू हो गया। विलायती मेलों में सबसे बड़ा खेल है कि उनके सामान महंगे होते हैं। जब तक कम-से-कम एक सैकड़ा न खर्च कीजिए, खिलाड़ियों में शुमार ही नहीं हो सकता। read more...

प्रातःकाल महाशय प्रवीण ने बीस दफा उबाली हुई चाय का पाला तैयार किया और बिना शक्कर और दूध के पी गये । यही उनका नाश्ता था । महीनों से मीठी, दूधिया चाय न मिली थी । दूध और शक्कर उनके लिए जीवन के आवश्यक पदार्थों में न थे । घर में गये जरूर, कि पत्नी को जगाकर पैसे माँगे; पर उसे फटे-मैले लिहाफ में निद्रा-मग्न देखकर जगाने की इच्छा न हुई । सोचा, शायद मारे सर्दी के बेचारी को रात भर नींद न आई होगी, इस वक्त जाकर आँख लगी है । कच्ची नींद जगा देना उचित न था । चुपके से चले आये ।

चाय पीकर उन्होंने कलम-दवात सँभाली और वह किताब लिखने में तल्लीन हो गये, जो उनके विचार में इस शताब्दी की सबसे बड़ी रचना होगी, जिसका प्रकाशन उन्हें गुमनामी से निकालकर ख्याति और समृद्धि के स्वर्ग पर पहुँचा देगा । read more...

यह कहना भूल है कि दांपत्य- सुख के लिए स्त्री-पुरुष के स्वभाव में मेल होना आवश्यक है। श्रीमती गौरा और श्रीमान कुंवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी। गौरा उदार थी, रतनसिंह कौड़ी-कौड़ी को दांतों से पकड़ते थे। वह हसंमुख थी, रतनसिंह चिन्ताशील थे। वह कुल-मर्यादा पर जान देती थी, रतनसिंह इसे आडम्बर समझते थे। उनके सामाजिक व्यवहार और विचार में भी घोर अंतर था। यहां उदारता की बाजी रतनसिंह के हाथ थी। गौरा को सहभोज से आपत्ति थी, विधवा-विवाह से घृणा और अछूतों के प्रश्न से विरोध। रतनसिंह इन सभी व्यवस्थाओं के अनुमोदक थे। राजनीतिक विषयों में यह विभिन्नता और भी जटिल थी। गौरा वर्तमान स्थिति को अमर, अटल, अपरिहार्य समझती थी, इसलिए वह नरम-गरम, कांग्रेस, स्वराज्य, होमरूल सभी से विरक्त थी। read more...

ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुर्माना न कट जाता । कभी-कभी तो उसे 6 के 5 ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोगा मु० खैरात अली खाँ के चुंगल में कभी न आती । खाँ साहब की मातहती में सैकड़ों मेहतरानियाँ थी । किसी की भी तलब न कटती, किसी पर जुर्माना न होता, न डाँट ही पड़ती । खाँ साहब नेकनाम थे, दयालु थे । मगर अलारक्खी उनके हाथों बराबर ताड़ना पाती रहती थी । वह कामचोर नहीं थी, बेअदब नहीं थी, फूहड़ नहीं थी, बदसूरत भी नहीं थी; पहर रात को इस ठण्ड के दिनों में वह झाड़ू लेकर निकल जाती और नौ बजे तक एक-चित्त होकर सड़क पर झाडू लगाती रहती । read more...

मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा ऊधमी कोई लड़का न था। बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से साबिक़ा न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनंद आता था। ऐसे-ऐसे षड्यंत्र रचता, ऐसे-ऐसे फदें डालता, ऐसे-ऐसे मंसूबे बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था। read more...

विमल प्रकाश ने सेवाश्रम के द्वार पर पहुँचकर जेब से रूमाल निकाला और बालों पर पड़ी हुई गर्द साफ की, फिर उसी रूमाल से जूतों की गर्द झाड़ी और अन्दर दाखिल हुआ । सुबह को वह रोज टहलने जाता है और लौटती बार सेवाश्रम की देख-भाल भी कर लेता है । वह इस आश्रम का बानी भी है, और संचालक भी ।

सेवाश्रम का काम शुरू हो गया था । अध्यापिकाएं लड़कियों को पढ़ा रही थी, माली फूलों की क्यारियों में पानी दे रहा था और एक दरजे की लड़कियाँ हरी-हरी घास पर दौड़ लगा रही थी । विमल को लड़कियों की सेहत का बड़ा खयाल है । read more...

पंडित चंद्रधर ने एक अपर प्राइमरी में मुदर्रिसी तो कर ली थी, किन्तु पछताया करते कि कहां से इस जंजाल में आ फंसे। यदि किसी अन्य विभाग में नौकर होते तो अब तक हाथ में चार पैसे होते, आराम से जीवन व्यतीत होता। यहां तो महीने भर प्रतीक्षा करने के पीछे कहीं पंद्रह रुपये देखने को मिलते हैं। वह भी इधर आये, उधर गायब। न खाने का सुख, न पहनने का आराम। read more...

उस वक्त मेरी उम्र कोई 13 साल को रही होगी । हिन्दी बिलकुल न जानता था । उर्दू के उपन्यास पढ़ने-लिखने का उन्माद था । मौलाना शरर, पं. रतननाथ सरशार, मिर्जा रुसवा, मौलवी मुहम्मद अली हरदोई निवासी, उस वक्त के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे । इनकी रचनाएँ जहाँ मिल जाती थीं, स्कूल की याद भूल जाती थी और पुस्तक समाप्त करके ही दम लेता था । उस जमाने में रेनाल्ड के उपन्यासों की धूम थी । उर्दू में उनके अनुवाद धड़ाधड़ निकल रहे थे और हाथों-हाथ बिकते थे । मैं भी उनका आशिक था । स्व. हजरत रियाज ने, जो उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे और जिनका हाल में देहान्त हुआ है, रेनाल्ड की एक रचना का अनुवाद ‘हरम सरा' के नाम से किया था । read more...

तहसीली मदरसा बरांव के प्रधानाध्यापक मुंशी भवानीसहाय को बागवानी का कुछ व्यसन था। क्यारियों में भांति-भांति के फूल और पत्तियां लगा रखी थी। दरवाजों पर लताएं चढ़ा दी थी। इससे मदरसे की शोभा अधिक हो गयी थी। वह मिडिल कक्षा के लड़कों से भी अपने बगीचे को सींचने और साफ करने में मदद लिया करते थे। अधिकांश लड़के इस काम को रुचिपूर्वक करते। इससे उनका मनोरंजन होता था। किंतु दरज़े में चार-पांच लड़के जमींदार के थे। उनमें कुछ ऐसी दुर्जनता थी कि यह मनोरंजक कार्य उन्हें बेगार प्रतीत होता। read more...

कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था । पंजाबी मेवाफरोशों की दुकानें रास्ते ही में पड़ती हैं । एक दुकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये । जी ललचा उठा । आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है । टमाटो को पहले कोई सेंत से भी न पूछता था । अब टमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है । गाजर भी पहले गरीबों के पेट भरने की बीज थी । अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी विटामिन है, इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है और सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज खाइए तो आपको डॉक्टरों की जरूरत न रहेगी । डाक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं । read more...

बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। बूढ़ी काकी में जिह्वास्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का, रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही। समस्त इन्द्रियां, नेत्र, हाथ और पैर जवाब दे चुके थे! पृथ्वी पर पड़ी रहती। और घर वाले कोई बात उनकी इच्छा के प्रतिकूल करते, भोजन का समय टल जाता या उसका परिणाम पूर्ण न होता, अथवा बाजार से कोई वस्तु आती और न मिलती तो ये रोने लगती थी। उनका रोना-सिसकना साधारण रोना न था, वे गला फाड़-फाड़कर रोती थीं। read more...

मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गड्ढे तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों का स्थान नहीं है । जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी । मेरा जन्म संवत् 1867 में हुआ । पिता डाकखाने में क्लर्क थे, माता मरीज । एक बड़ी बहन भी थी । उस समय पिताजी शायद 20 रुपये पाते थे । 40 रुपये तक पहुँचते-पहुँचते उनकी मृत्यु हो गई । यों वह बड़े विचारशील, जीवन-पथ पर आँखें खोलकर चलने वाले आदमी थे; लेकिन आखिरी दिनों में एक ठोकर खा ही गये और खुद तो गिरे ही थे, read more...

जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आयी। जाकर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गयी, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाये तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी जिन्दगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाये।

राजा साहब अपने अनुभवशील नीतिकुशल दीवान का बड़ा आदर करते थे। बहुत समझाया, लेकिन जब दीवान साहब ने न माना, तो हारकर उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली; पर शर्त यह लगा दी कि रियासत के लिए नया दीवान आप ही को खोजना पड़ेगा। read more...

वह भेद अमृत के मन में हमेशा ज्यों का त्यों बना रहा और कभी न खुला । न तो अमृत की नजरों से, न उसकी बातों से और न रंग-ढंग से ही पूर्णिमा को कभी इस बात का नाम को भी भ्रम हुआ कि साधारण पड़ोसियों का जिस तरह बर्ताव होना चाहिए और लड़कपन की दोस्ती का जिस तरह निबाह होना चाहिए उसके सिवा अमृत का मेरे साथ और भी किसी प्रकार सम्बन्ध है या हो सकता है । बेशक जब वह घड़ा लेकर कुएँ पर पानी खींचने के लिए जाती थी तब अमृत भी ईश्वर जाने कहाँ से वहाँ आ पहुँचता था और जबरदस्ती उसके हाथ से घड़ा छीनकर उसका पानी खींच देता था और जब वह अपनी गाय को सानी देने लगती थी तब वह उसके हाथ से भूसे की टोकरी ले लेता था और गाय की नाँद में सानी डाल देता था । read more...

दोनों बहने दो साल के बाद एक तीसरे नातेदार के घर मिली और खूब रो-धोकर खुश हुई तो बड़ी बहन रूपकुमारी ने देखा कि छोटी बहन रामदुलारी सिर से पाँव तक गहनों से लदी हुई है, कुछ उसका रंग खुल गया है, स्वभाव में कुछ गरिमा आ गई है और बातचीत करने में ज्यादा चतुर हो गई है । कीमती बनारसी साड़ी और बेलदार उन्नावी मखमल के जम्पर के उसके रूप को भी चमका दिया - वही रामदुलारी, लड़कपन में सिर के बाल खोले, फूहड़-सी इधर-उधर खेला करती थी । अन्तिम बार रूपकुमारी ने उसे उसके विवाह में देखा था, दो साल पहले । read more...

आनन्द ने गद्देदार कुर्सी पर बैठकर सिगार जलाते हुए कहा - आज विशम्भर ने कैसी हिमाकत की! इफहान करीब है और आप आज वालंटियर बन बैठे । कहीं पकड़े गये, तो इफहान से हाथ धोयेंगे । मेरा तो ख्याल है कि वजीफा भी बन्द हो जायेगा ।

सामने दूसरे बेंच पर रूपमणि बैठी एक अखबार पड़ रही थी । उसकी आंखें अखबार की तरफ थी; पर कान आनन्द की तरफ लगे हुए थे । बोली - यह तो बुरा हुआ । तुमने समझाया नहीं? आनन्द ने मुँह बनाकर कहा जब कोई अपने को दूसरा गांधी समझने लगे, तो उसे समझाना मुश्किल हो जाता है । वह उलटे मुझे समझाने लगता है । read more...

मैकूलाल अमरकान्त के घर शतरंज खेलने आये तो देखा, वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं । पूछा - कहीं बाहर की तैयारी कर रहे हो क्या भाई? फुरसत हो, तो आओ, आज दो-चार बाजियाँ हो जाये ।

अमरकान्त ने संदूक में आईना-कंघी रखते हुए कहा - नहीं भाई, आज तो बिलकुल फुरसत नहीं है । कल जरा ससुराल जा रहा हूँ । सामान-आमान ठीक कर रहा हूँ ।

मैकू - तो आज ही से क्या तैयारी करने लगे? चार कदम तो हैं । शायद पहली बार जा रहे हो?

अमर - हाँ यार, अभी एक बार भी नहीं गया । मेरी इच्छा तो अभी जाने की न थी; पर ससुरजी आग्रह कर रहे हैं । read more...

क्या नाम कि कुछ समझ में नहीं आता कि डेरी और डेरी फार्म में क्या सम्बन्ध! डेरी तो कहते हैं उस छोटी-सी सादी सजिल्द पोथी को, जिस पर रोज-रोज का वृत्तान्त लिखा करते हैं और जो प्रायः सभी महान पुरुष लिखा करते है और डेरी फार्म उस स्थान को कहते हैं जहाँ गायें-भैंसे पाली जाती हैं और उनका दूध, मक्खन, घी तैयार किया जाता है । ऐसा मालूम होता है, डेरी फार्म इसलिए नाम पड़ा कि जैसे डेरी में नित्य-प्रति का समाचार लिखा जाता है, उसी तरह वहाँ नित्य-प्रति दूध-मक्खन बनता है । जो कुछ हो, मैंने अब डेरी लिखने का निश्चय कर लिया है । कई साल पहले एक बार पुस्तकवाले ने मुझे एक डेरी भेंट की थी । तब मैंने उस पर एक महीने तक अपना हाल लिखा; लेकिन मुझे उसमें लिखने को कुछ सूझता ही न था । read more...

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