टीबी बैक्टीरिया इनफर्टिलिटी का एक बड़ा कारण: Tuberculosis Effects
Tuberculosis Effects: माइकोबैक्टीरियम बैक्टीरिया से फैलने वाला ट्यूबरक्लोसिस या टीबी एक संक्रामक बीमारी है। जो शरीर के किसी भी अंग मूलतः फेफड़ों, गर्दन के लिम्फनोड, आंतों में होती है। लेकिन इसमें हमेशा यह रिस्क रहता है कि ट्यूबरल माइकोबैक्टीरियम बैक्टीरिया ब्लड लिम्फेटिक्स से होते हुए शरीर के दूसरे अंगों खासकर रिप्रोडक्टिव अंगों में भी पहुंच सकता है। महिलाओं में सबसे सेंसेटिव ऑर्गन यूटरस होता है जिसमें टीबी बैक्टीरिया का इंफेक्शन हो सकता है। इसमें भी सबसे ज्यादा रिस्क दो जगह होता है- एक यूटरस की लाइनिंग जहां से महावारी और भ्रूण इम्प्लांट होता है। दूसरा यूटरस के दोनों तरफ की फैलोपियन ट्यूब। ऐसे टीबी को जेनाइटल टीबी या पेल्विक टीबी कहा जाता है।
पाॅसीबैसिलरी डिजीज होने के कारण जेनाइटल टीबी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की एक बड़ी वजह बनता है। सबसे दुखद है कि इसका पता शुरूआती स्टेज पर इसका पता नहीं चल पाता। चूंकि पेल्विक एरिया में टीबी बैक्टीरिया बहुत कम मात्रा में होते हैं जिसकी वजह से शुरूआती स्टेज पर कल्चर टेस्ट, जीन टेस्ट में नेगेटिव रिजल्ट आते हैं। और ठीक समय पर उपचार शुरू नहीं हो पाता। इसकी एडवांस स्टेज पर यूटरस के अंदर जाल बन जाता है, तब इसका इलाज मुश्किल हो जाता है और महिला कंसीव नहीं कर पाती। लेकिन अगर शुरूआती स्टेज में इलाज हो जाए, तो वह नाॅर्मल तरीके से या आईवीएफ टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया की मदद से कंसीव कर सकती है।
Tuberculosis Effects:प्रकार
जेनाइटल टीबी 2 तरह का होता है। प्राइमरी और सेकेंडरी, प्राइमरी में मरीज की मेडिकल हिस्ट्री का पता लगाया जाता है। अगर बचपन में कभी फेफड़ों का टीबी संक्रमित हुआ हो, लिम्फ नोड के जरिये जेनाइटल ट्रैक को प्रभावित कर सकता है। आंतों में होने वाला टीबी जेनाइटल ट्रैक और रिप्रोडक्टिव ऑर्गन को प्रभावित कर सकता है। वहीं सेकेंडरी में बोन्स में टीबी हो, तो वो भी सेकेंडरी जेनाइटल ट्रैक तक पहुंच सकता है।
टीबी से अंगों पर क्या होता है असर
जेनाइटल टीबी महिला के रिप्रोडक्टिव ट्रैक के ऑर्गन को प्रभावित करता है-
- टीबी बैक्टीरिया जब महिला की ओवरी को संक्रमित करते हैं तो वहां प्रजनन-एग्स की क्वालिटी खराब हो सकती है। अच्छी क्वालिटी के एग्स न बन पाने के कारण स्पर्म के साथ फर्टिलाइजेशन में दिक्कत आती है।
- फैलोपियन ट्यूब को संक्रमित होने पर ट्यूब में पानी या पस इकट्ठा हो जाता है जिसे हाइड्रो स्फिंक्स कहते हैं। इस स्थिति में ट्यूब ब्लाॅक हो सकती है जिससे महिलाओं में एक्टोपिक प्रेगनेंसी का खतरा हो सकता है। इसमें न केवल ट्यूब में होने वाले एग और स्पर्म के फर्टिलाइजेशन में दिक्कत आती है। बल्कि भ्रूण के यूटरस तक पहुंचकर यूटरस लाइनिंग में इम्प्लांट की प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
- भ्रूण इम्प्लांटेशन यूटरस में न होकर फैलोपियन ट्यूब में होने की संभावना बढ़ जाती है। जहां उसका ठीक से विकास न हो पाने के कारण कुदरती तौर पर या तो कुछ समय के बाद मिसकैरेज हो जाता है। वरना एक्टोपिक प्रेगनेंसी का अंदेशा होने पर डाॅक्टर अबार्शन की सलाह ही देते हैं क्योंकि भ्रूण के विकास से ट्यूब के फटने का खतरा बना रहता है और यह महिला के लिए जानलेवा भी हो सकताहै।
- कई मामलों में टीबी बैक्टीरिया यूटरस की लाइनिंग एंडोमैटरियम को भी संक्रमित करता है। यूटरस की लाइनिंग एंडोमैटरियम डैमेज या बहुत पतली हो जाती है। कई बार इसमें छोटेे-छोटे दाने ट्यूबरकल्स बन जाते हैं जिससे वहां भ्रूण के इम्प्लांटेशन में समस्या आ सकती है। यदि इम्प्लांटेशन हो भी जाता है तो महिला का मिसकैैरेज का रिस्क काफी ज्यादा होता है। क्योंकि भ्रूण को समुचित ब्लड सप्लाई और न्यूट्रीशन्स नहीं मिल पाते जिससे भ्रूण का विकास ठीक तरह नहीं हो पाता और मिसकैरेज हो जाता है।
- मरीज का उपचार सही समय पर न होने पर यूटरस में फ्राइबोसिस हो जाते हैं जिन्हें माइक्रोपाॅलिप, फोकल हाइपरमिया कहा जाता है। यूटरस के अंदर जाला-सा यानी एडेसन बन जाता है।
कैसे होती है पहचान
जेनाइटल टीबी को शुरुआत में पहचानना काफी मुश्किल होता है। कई मामलों में जेनाइटल टीबी के कोई लक्षण नहीं होते। आमतौर पर यह तब सामने आता है जब महिला शादी के काफी समय बाद तक चाह कर भी गर्भ धारण नहीं कर पाती। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए डाॅक्टर को एप्रोच करती है, तब रूटीन चैकअप के अलावा डाॅक्टर यूटरस और फैलोपियन ट्यूब का चैकअप करते हैं, तब टीबी होने का खुलासा होता है।
कुछ लक्षण जरूर मिलते हैं, लेकिन ये महिलाओं में टीबी की ओर संकेत नहीं करते- पैल्विक एरिया में हल्का दर्द होेना, शाम के समय हल्का बुखार होना, एनर्जी लेवल कम होना, कमजोरी होना या चक्कर आना, काम करने का मन न करना, सिर दर्द, बदन दर्द रहना, भूख कम होना, वजाइना से गंदे पानी का डिस्चार्ज होना, माहवारी में अनियमितता होना और इंटरकोर्स में दिक्कत आना।
कैसे होता है डायगनोज
अगर महिला को ये लक्षण महसूस हों, तो अनदेखी न करके डाॅक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए। सबसे पहले डाॅक्टर महिला की मेडिकल हिस्ट्री का पता लगाते हैं। महिला को बचपन में कभी टीबी हुआ हो या घर-आसपास किसी को पल्मोनरी टीबी हुआ हो। चूंकि टीबी का वायरस शरीर में सालोंसाल साइलेंट पड़ा रहता है जो इम्यूनिटी कमजोर होने या दूसरे संक्रमण के कारण कभी भी एक्टिव हो जाता है और महिला को संक्रमित कर सकता है।
जेनाइटल टीबी का पता लगाने के लिए यूटरस में लेप्रोस्काोपी या हिस्टेरोस्कोपी टेस्ट बहुत कारगर है। यूटरस और आसपास के एरिया की जांच करने के लिए थ्रीडी ट्रांसवजाइनल सोनोग्राफी करते हैं। ट्यूबरकुलीन मोनटाॅक्स स्किन टेस्ट, फेफडें में टीबी संक्रमण जांच के लिए चेस्ट एक्स-रे, पैल्विक एरिया में अल्ट्रासाउंड, यूटरस लाइनिंग की जांच के लिए बाॅयोप्सी (हिस्टोपैथालाॅजी) टेस्ट भी किए जाते हैं।
क्या है इलाज
महिला की स्थिति के आधार पर ही इलाज किया जाता है। फैलोपियन ट्यूब में ब्लाॅकेज को दूर करने के लिए लेप्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता है। अगर यह ब्लाॅकेज नाॅर्मल हो तो लेप्रोस्कोपी से ब्लाॅकेज खुल जाती है। अगर ये ब्लाॅकेज फ्राइबोसिस लिए होते हैं तो यह खुल नहीं पाते। महिला को प्रेगनेंसी के लिए आईवीएफ का सहारा लेने के लिए कहा जाता है।
थ्रीडी सोनोग्राफी करके अगर यूटरस की लाइनिंग पतली होने या उसमें फ्राइब्रोसिस होने का पता चलता है। इसके लिए वजाइना के रास्ते से हिस्टरोस्कोपी से फ्राइब्रोसिस को दूर किया जाता है। इससे महिलाओं के गर्भ ठीक तरह काम करने लगता है।
टीबी के उपचार के लिए मरीज को इलाज के लिए 6-9 महीने का कोर्स करना पड़ता है। मरीज को 2 महीने के लिए एंटी-टीबी दवाई दी जाती है, उसके बाद 2 एंटी-टीबी दवाई नियमित तौर पर दी जाती हैै। 6 महीने के उपचार के बाद डाॅक्टर आपके यूटरस की लाइनिंग को दोबारा एग्जामिन करते हैं जिसमें महिला की स्थिति का पता चलता है।
अगर महिला डाॅक्टर की हिदायत का ध्यान रखती है और समय पर दवाई लेती है तो तकरीबन 40 प्रतिशत महिलाएं नाॅर्मली कंसीव कर लेती हैं। तकरीबन 50 प्रतिशत महिलाओं का फैलोपियन ट्यूब में ज्यादा डैमेज हो तो महिला को टेस्ट ट्यूब बेबी की सलाह दी जाती है। करीब 10 प्रतिशत मरीजों की बीमारी यूटरस तक पहुंच गई है और यूटरस की लाइनिंग डैमेज हो गई है, उन्हें बच्चा पाने के लिए अन्य विकल्पों का सहारा लेना पड़ता है।
रखें ध्यान
रिप्रोडक्टिव अंगों तक टीबी को रोकने के लिए इस बात की जांच करें कि शरीर के किसी अंग में टीबी नहीं है। वरना वहां से फैलकर माइक्रोबैक्टीरियम बैक्टीरिया रिप्रोडक्टिव ऑर्गन तक पहुंच कर उन्हें संक्रमित कर सकता है।
जेनाइटल टीबी के विशेष लक्षण नहीं होते। कई बार टेस्ट नेगेटिव भी आते हैं। सतर्क रहना जरूरी है। जांच में अगर जेनाइटल टीबी के लक्षणों का पता चल जाता है तो बिना देर किए उपचार शुरू कर देना चाहिए।
संभव है दवाई लेने पर महिला को अपच, जलन, उल्टी महसूस होना जैसी समस्याएं भी होती हैं। लेकिन इससे घबराकर दवाई छोड़नी नहीं चाहिए। क्योंकि नागा पड़ने पर ट्रीटमेंट दोबारा शुरू करना पड़ता है जो काफी लंबा चलता है। ड्रग रजिस्टेंट हो जाएगा यानी उसके उपचार के लिए नई दवाइयां लेनी पड़ती हैं।
इलाज के साथ महिला को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आहार में प्रोटीन और विटामिन की मात्रा अधिक लेनी चाहिए।
(डाॅ अंशु जिंदल, स्त्री रोग विशेषज्ञ, इंफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, जिंदल अस्पताल, मेरठ)