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तुम मेरे उतने ही अपने-गृहलक्ष्मी की कविता

10:35 AM Feb 14, 2024 IST | Sapna Jha
तुम मेरे उतने ही अपने गृहलक्ष्मी की कविता
Tum Mere Utne hi Apne
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Hindi Poem: तुम मेरे उतने ही अपने
जितना अंबर अवनी का,
जितना सागर नदिया का,
चलते रहते वह साथ-साथ,
पा लेने की नहीं है प्यास|

तुम मेरे उतने ही अपने
जैसे मीरा मोहन की,
जैसे राधा किशन की,
ध्येय नहीं था पाने का
भक्ति प्रेम अर्थ जीवन का|

तुम मेरे उतने ही अपने
जैसे यशोधरा सिद्धार्थ की,
उर्मिला जैसे हो लक्ष्मण की,
जहाँ डर नहीं था खोने का
भाव था सिर्फ समर्पण का|

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तुम मेरे उतने ही अपने
जैसे हो नदिया के दो किनारे,
समानांतर बस बहती रहती
उसकी कल कल विमल धारें,
कुछ भी नहीं उनकी इच्छा
बहती रहती सिर्फ प्रतीक्षा|

बस वैसे ही तुम मेरे हो जाना,
जब भी यह हृदय पुकारे
द्रोपदी की चीर बन जाना,
विष को सुधा कर जाना,
मन मंदिर में ही गढ़ जाना,
सिद्धार्थ को बुद्ध कर जाना,
उर्मिला का त्याग समझ जाना|

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बस इतने ही मेरे कुछ सपने
हो सके तो हो जाना सिर्फ
तुम मेरे उतने ही अपने|

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