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टीकाकरण है जीवन का मूल आधार: Vaccination Importance

09:30 AM May 23, 2024 IST | Rajni Arora
टीकाकरण है जीवन का मूल आधार  vaccination importance
Vaccination
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Vaccination Importance: भारत में टीकाकरण के लिए दो तरह के शेड्यूल का अनुसरण किया जाता है- इंडियन ऐकेडमी ऑफ पिडाड्रिएक्ट (प्राइवेट अस्पताल) और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (सरकारी अस्पताल)। टीकाकरण-कार्ड पर दिए गए विवरण के आधार पर बच्चे को समय-समय पर अलग-अलग टीका लगाई जाती है।

इस टीकाकरण कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चे को शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत बनाना है। उन्हें कई तरह के इंफेक्शन और जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में आने से बचाना है। यानी ऐसी कई गंभीर बीमारियां हैं जिनका उपचार कराने में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। कई बार तो उनका इलाज भी संभव नहीं होता। ऐसी बीमारियों की रोकथाम में वैक्सीन बहुत कारगर होती है। दुर्भाग्यवश अगर किसी कारणवश बच्चे को वैक्सीन नहीं लग पाती, उनमें बार-बार बीमार पड़ने, यहां तक कि मौत होने की संभावना बढ़ जाती है। डब्लयूएचओ के हिसाब से वैक्सीन लगने पर बच्चे के बीमार होने संभावना 80-95 प्रतिशत तक कम रहती है।

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बूस्टर डोज लगवाना भी है जरूरी

वैक्सीन का डोजिग शेड्यूल वैक्सीन-साइंस के आधार पर किया जाता है। कुछ वैक्सीन की दो डोज ही काफी होती है, जबकि कुछ वैक्सीन की बूस्टर डोज कुछ समय बाद लगाई जाती है। अगर बूस्टर न लगाई जाए तो वैक्सीन का प्रभाव धीमा पड़ जाता है। उसे रिचार्ज करने के लिए बूस्टर डोज लगवानी जरूरी है। हमारे शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बूस्टर डोज उसी तरह काम करती है जैसे युद्ध के दौरान गर हमारी सीमा पर तैनात सैनिक। सैनिक अगर कमजोर पड़ जाएं या थक जाएं तो दुश्मन सीमा से घुसपैठ कर सकते हैं। दुश्मन को रोकने के लिए सैनिकों को रिचार्ज करना जरूरी होता है या तो उन्हें थोड़ा आराम देकर तरोताजा किया जाता है या फिर सैनिकों की नई बैटेलियन भेजी जाती है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के हिसाब से टीकाकरण हमें बचपन से बुढ़ापे तक करीब 25 तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से बचाता है। हमारे शरीर में एंटीबॉडीज बनाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं और बीमारी के वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। लेकिन किसी कारणवश जब बच्चे जीवन रक्षक टीकों की खुराक से वंचित रह जाते हैं, तो वो जिंदगी भर विकलांगता का दर्द झेलने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। टीकाकरण से हर साल लाखों लोगों की जान बचती है। डब्ल्यूएचओ के आंकडों के मुताबिक बचपन का टीकाकरण हर साल दुनिया भर में अनुमानित 4 मिलियन लोगों की जान बचाता है। डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, इन्फ्लूएंजा और खसरा जैसी बीमारियों से होने वाली 3-5.5 मिलियन मौतों को रोकता है। 2000 से 2021 तक खसरे के टीकों ने अनुमानित 56 मिलियन लोगों की जान बचाई। 1988 से अनुमानित 20 मिलियन लोगों में पोलियो के टीकों ने पक्षाघात को रोका है।बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन: टीकाकरण प्रक्रिया का अधिकांश भाग जन्म लेने के दो साल के भीतर पूरा हो जाता है जिसमें मोटे तौर पर पहले साल में बच्चे के लिए अनिवार्य टीके लगते हैं, बाद में बूस्टर डोज दी जाती है।

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जन्म के समय लगने वाली वैक्सीन

Birth Vaccination
vaccination given at birth

नवजात शिशु को टीबी के लिए बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन ड्रॉप्स पिलाई जाती है या ओपीवी (जीरो डोज), हेपेटाइटिस बी (फर्स्ट डोज) की वैक्सीन लगती है। ये वैक्सीन जन्म के तुरंत बाद और अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले बच्चे को दी जाती है। वैक्सीन बच्चे को टीबी, पोलियो, लिवर को डैमेज होने से बचाती है।
जन्म के 6 सप्ताह या जब वह डेढ़ महीने का हो जाता है, तब बच्चे को ओरल पोलियो की वैक्सीन दी जाती है। इसके साथ ही आजकल एक पेंटावालेंट वैक्सीन दी जाती है। यह पेंटावालेंट वैक्सीन 5 मल्टीपल डिजीज में दी जाने वाली वैक्सीन को मिलाकर बनी है- डिप्थीरिया, टिटनेस, व्हूपिंग कफ, हेपेटाइटिस बी, हीमोफीलस इंफ्लूएंजा टाइप बी।

रोटावायरस ड्रॉप्स पिलाई जाती है। लेकिन रोटावायरस अभी भारत के कुछ राज्यों में ही दी जाती है। बच्चे को रोटावायरस ड्रॉप्स की 3 डोज पिलाई जाती है- पहली जब बच्चा 6-12 सप्ताह का हो, दूसरी डोज 4-10 सप्ताह के बीच और तीसरी डोज 32 सप्ताह या 8 महीने का होने पर दी जाती है।

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डीटीपी यानी पेंटावालेंट वैक्सीन: पेंटा वैक्सीन बच्चे को पांच बीमारियों (डिप्थीरिया या काली खांसी, पर्टूसिस, टेटनेस, हेपेटाइटिस-बी और एचआईवी या हिमोफीलस इंफ्लूएंजा टाइप बी) से बचाती है।
हेपेटाइटिस-बी: हेपेटाइटिस बी संक्रामक बीमारी है जो बॉडी फ्ल्यूड या संक्रमित नीडल के उपयोग, सेक्सचुअल रिलेशन के दौरान, ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान संक्रमित ब्लड की वजह से होती है। हेपेटाइटिस बी से लिवर डैमेज होता है और बच्चा बीमार हो सकता है। हेपेटाइटिस बी वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन है यानी हर बच्चे को दी जाती है।
न्यूमोकोकल हीमोफीलस इंफ्लूएंजा टाइप-बी: निमोनिया बुखार होना बच्चों में बहुत आम बात है, इसलिए उससे बचाव के लिए निमोनिया वैक्सीन दी जाती है। टाइफायड और निमोनिया के लिए जिम्मेदार इंफ्लूएंजा वायरस से बचाने के लिए बच्चों को तकरीबन 6 साल तक हर साल वैक्सीन लगाई जाती है। वैज्ञानिकों के हिसाब से इंफ्लूएंजा वायरस में हर साल कुछ म्यूटेशन या बदलाव आ जाते हैं। इस वायरस से बचाने के लिए इस वैक्सीन में कुछ बदलाव करके लगाई जाती है। बार-बार खांसी-जुकाम होना, अस्थमा, हार्ट या फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित बच्चों या प्री-मैच्योर बर्थ वाले कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चों को किशोरावस्था तक हर साल लगवानी जरूरी है।
रोटावायरस वैक्सीन: रोटावायरस ड्रॉप्स की 3 डोज भी पिलाई जाती है- पहली डोज 6-12 सप्ताह, दूसरी 4-10 सप्ताह और तीसरी 32 सप्ताह या 8 महीने का होने पर दी जाती है। रोटावायरस गंभीर दस्त या डायरिया का कारण बन सकता है, जिससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। समुचित उपचार न होने पर बच्चे की जान भी जा सकती है।
ओपीवी वैक्सीन: पोलियो से बचाव के लिए बच्चे को पोलियो वैक्सीन लगाई जाती है। वैक्सीन उपलब्ध न होने पर जन्म के 6, 10 और 14 सप्ताह में बच्चे को ओपीवी-1, 2, 3 की ओरल पोलियो ड्रॉप्स दी जाती है, जिससे बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ती है जबकि ओपीवी वैक्सीन न मिलने पर बच्चे के पैरों में विकृति आ सकती है और वो अपाहिज हो सकता है।

छठे महीने में दी जाने वाली वैक्सीन

इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स यानी प्राइवेट अस्पतालों में बच्चों को टाइफायड, निमोकोकल, चिकनपॉक्स वैक्सीन भी दी जाती है। ये वैक्सीन भारत सरकार के प्रोटोकॉल में नहीं दी जाती। चिकनपॉक्स वैक्सीन की दो डोज डेढ साल पर और 5 साल पर दी जाती है। प्राइवेट अस्पतालों में निमोकोकल वैक्सीन की 5 डोज दी जाती है। पहले 6-10-14 सप्ताह पर तीन डोज दिए जाते हैं। फिर 15 महीने और 10 साल पर बूस्टर डोज। इनके साथ ही टायफाइड वैक्सीन की पहली डोज बच्चे को एक साल के अंदर देते हैं जिसका बूस्टर इंजेक्शन दो साल पर दिया जाता है।

9 महीने में

एमएमआर वायरस के संक्रमण से होने वाली खसरा (मीजल्स), गलसुआ (मंप्स) और रूबेला वायरल बीमारियों से बचाव में कारगर एमएमआर कम्बीनेशन वैक्सीन लगती है। खसरा में तेज बुखार के साथ मुंह से शुरू होकर पूरे शरीर पर दाने हो जाते हैं। वायरस फेफड़ो में संक्रमण होने पर निमोनिया और मस्तिष्क में सूजन होने पर एन्सेफलाइटिस यानी मस्तिष्क क्षति की संभावना रहती है। रूबेला या जर्मन खसरा होने पर बुखार, चेहरे पर हल्के दाने, कान के पीछे सूजन और जोड़ों में सूजन जैसी समस्याएं होती हैं।

मंप्स एयर ड्रॉपलेट्स के माध्यम से फैलने वाली संक्रामक बीमारी है जो आरएनए वायरस और पैरावे वायरस ऑर्थो रूबेला वायरस की वजह से होता है। वैक्सीन न लेने पर बहरापन या कम सुनाई देने के अलावा पेट में दर्द होना, पेनक्रियेटाइटिस, टेस्टिस का सूजन आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ओरल पोलियो ड्रॉप्स की दूसरी डोज पिलाई जाती है। सरकारी अस्पतालों में खसरे की वैक्सीन के साथ बच्चे को विटामिन ए वैक्सीन डोज दी जाती है। बच्चों में होने वाली नाइट ब्लाइंडनेस या रतौंधी की बीमारी से रक्षा करता है। बच्चों को जैपनीज एन्सेफलाइटिस यानी दिमागी बुखार के दो डोज दी जाती हैं। 9 महीने पूरे होने पर और दूसरी करीब एक साल पूरे होने पर। यह एक प्रकार का ब्रेन का वायरस इंफेक्शन है।

12वें महीने पर

हेपेटाइटिस-ए वैक्सीन : यह 2 तरह की होती है। लाइव वैक्सीन जिसकी सिंगल डोज दी जाती है, दूसरी इनएक्टिव वैक्सीन जिसकी 6 महीने के अंतराल पर 2 डोज (12वें और 18वें माह में) दी जाती है। हेपेटाइटिस ए वायरस खाने-पीने में गंदगी की वजह से फैलता है। वैक्सीन से इसे प्रीवेंट किया जा सकता है। वैक्सीन न लगने पर हेपेटाइटिस ए वायरस की वजह से लिवर इंफेक्शन होने और शरीर में पीलिया होने की संभावना रहती है।

15वें माह पर

एमएमआर : बच्चे को एमएमआर वैक्सीन की दूसरी डोज लगाई जाती है।
वैरीसेला-1 : यह चिकनपॉक्स के लिए दी जाती है।

4-6 साल की उम्र में

Fouth Year Vaccination
Fouth Year Vaccination

डीटीपी वैक्सीन: साढ़े चार से पांच साल की उम्र के बीच बच्चे को डीटीपी वैक्सीन की बूस्टर डोज लगाई जाती है।
एमएमआर वैक्सीन : तीसरी डोज लगाई जाती है।
वेरीसेला वैक्सीन : दूसरी डोज दी जाती है।

7-14 साल की उम्र तक

लड़कियों को 7-14 साल की उम्र तक रूबेला वैक्सीन या एमएमआर वैक्सीन लगाई जाती है।

9 साल की उम्र के बाद

सरवरेक्स (एचपीवी): 9-14 साल की उम्र की लड़कियों को सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए 0 और 6 महीने पर दो सरवरेक्स (एचपीवी) वैक्सीन लगाई जाती है। या फिर 14-26 साल की लड़कियों को यह वैक्सीन 3 डोज में लगाई जाती है- 0, 1 और 6 महीने पर। ह्यूमन पैपीलोमा एचपीवी वायरस से बचाव के लिए दी जाती है। सरकारी अस्पतालों में भी लगाई जाने की योजना है। लड़कों को भी एचपीवी वायरस से बचाने के लिए यह वैक्सीन लगाई जाने के लिए लाइसेंसिंग दी गई है। यह वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर के अलावा एनल कैंसर, थ्रोट कैंसर, इसोफेगेसियल कैंसर से बचाने में कारगर है।
बूस्टर वैक्सीन शेड्यूल : इसके साथ टीकाकरण का बूस्टर शेड्यूल भी शुरू हो जाता है।

15वें महीने पर

नीमोकोकल वैक्सीन सबसे पहले बच्चे को नीमोकोकल वैक्सीन का बूस्टर डोज दिया जाता है।
डीपीटी बूस्टर, इंजेक्टिड पोलियो वैक्सीन-16-18वें महीने में वैक्सीन लगाई जाती है।
इनएक्टिव हेपेटाइटिस-ए : वैक्सीन का बूस्टर डोज 18वें महीने में लगाई जाती है।

9-14वें साल में

टी-डेप बूस्टर : इस उम्र में बच्चों को टी-डेप बूस्टर वैक्सीन दी जाती है।

10वें और 15वें साल में

टेटनेस : बच्चों को टिटनेस का बूस्टर इंजेक्शन लगाया जाता है।

प्राइमरी सीरीज में दी जाने वाली वैक्सीन शिशु के जन्म के 6 सप्ताह (डेढ माह), 10 सप्ताह (ढाई माह) और 14 सप्ताह (साढे तीन माह) का होने पर वैक्सीन लगाई जाती है जो 8 बीमारियों को कवर करती है।

(डॉ. संजीव दत्ता, एचओडी, पीडियाट्रिक्स विभाग, मैरिंगो एशिया अस्पताल, फरीदाबाद)

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