सोशल मीडिया पर क्यों छाए हुए हैं फिल्म 12th फेल के ये दृश्य: 12th Fail Best Scenes
Film 12th Fail Best Scenes: फिल्म 12th फेल ने दर्शकों का दिल जीत लिया है। सोशल मीडिया पर फिल्म की बहुत तारीफ हो रही है। फिल्म के संवाद से लेकर दृश्य तक सभी कुछ दर्शकों को बेहद पसंद आ रहा है। 12th फेल आई ए एस मनोज शर्मा के जीवन पर आधारित है। मनोज शर्मा का किरदार विक्रांत मेसी ने निभाया है श्रध्दा जोशी का किरदार मेधा शंकर ने निभाया है। जीवन के संघर्षों पर आधारित ये फिल्म दशाओं को कितना आकर्षित कर रही है ये तो ट्विटर के ट्रेंड बता रहे हैं। फिल्में अपने दृश्यों के कारण जानी जाती हैं। फ़िल्म 12th के दृश्यों को सोशल मीडिया पर बहुत प्यार मिल रहा है। तो चलिए बात करते हैं फिल्म के उन दृश्यों के बारे में जो फिल्म को यादगार बना देते हैं।
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1) रिजल्ट का दिन
फिल्म की कहानी में एक दृश्य है जिसमें मनोज की परीक्षा का रिजल्ट निकला है। चूंकि ये मनोज का आखिरी मौका होता है तो डर के कारण मनोज (विक्रांत मेसी) अपना रिजल्ट खुद नहीं देखते उनका रिजल्ट देखने के लिए श्रद्धा (मेधा शंकर) जाती है। रिजल्ट सेंटर की दीवार पर एक लिस्ट में जिसमें सभी छात्र अपना नाम चेक कर रहे हैं। जब श्रद्धा रिजल्ट देखती है तो भावुक हो जाती है। श्रद्धा रोते हुए मनोज की ओर देखकर सिर हिलाती है। मनोज ये देखकर रोने लगता है। फिर सभी साथी मनोज को गले लगा लेते हैं। वहीं इस दृश्य को अपने कैमरा में रिकॉर्ड करते हुए पाण्डेय मनोज के बारे में बताता है। ये दृश्य अपने दर्शकों को भावुक का देने में सफल रहा। यहाँ एक दर्शक के तौर पर ऐसा लगता है कि मनोज का रिजल्ट नहीं बल्कि आपका रिजल्ट आया है और आप पास हो गए हैं।
2) श्रद्धा की चिट्ठी
फिल्म का ये दृश्य बेहद प्रेम और विश्वास से भरा हुआ है। यहां मनोज इंटरव्यू के लिए जाने से पहले श्रद्धा एक चिट्ठी उन्हें देती है और कहती है कि मेरे सामने नहीं अकेले में पढ़ना, मनोज को इंटरव्यू के लिए घबराहट होने लगती है वो चिट्ठी को खोलकर पढ़ता है जिसमें लिखा होता है कि 'मनोज तुम चाहे आई पी एस ऑफिसर बनो या चक्की में काम करो, मैं सारी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूं'। इस दृश्य में मनोज के चेहरे पर जो आत्मविश्वास का भाव आता है वो देखने लायक है।
3) टी स्टॉल का दृश्य
ये दृश्य एक उम्मीद का दृश्य है उनके लिए जो सपने देखते हैं और उन सपनों को पूरा करने के लिए अपने घर से दूर निकलते हैं। ये दृश्य भावुक तो कर देता है लेकिन एक उम्मीद बाँध देता है कि सब मुमकिन है। फिल्म में एक किरदार है गौरी भैया का जो कि एक टी स्टॉल चलाते हैं। यहां टेबल पर तीन लोग बैठे हैं जहाँ एक लड़का कहता है कि लोग तैयारी के नाम पर आ जाते हैं और कुछ नहीं कर पाते खाली वक़्त बर्बाद करते हैं और संसाधन का दुरूपयोग करते हैं। ये सुनते हुए गौरी भैया कहते हैं कि 'सही बात है... चले आते हैं भेड़ बकरियों की तरह बसों और ट्रेनों में भर भर के कुछ नहीं होता इनके पास। गरीब होता है इनका बाप कोई सब्ज़ी बेचता है कोई ट्रक चलाता है तो कोई झाड़ू लगाता है लेकिन पता है फिर भी ये लोग खाली हाथ नहीं आते, जज़्बा लेकर आते हैं कि एक दिन न ये लोग भी आई ए एस , आई पी एस बनेंगे इनको किसी लाइब्रेरी में झाड़ू लगाना पड़े या किसी का टॉयलेट साफ़ करना पड़े, ये पीछे नहीं हटते हार नहीं मानते , बड़ा पक्का होता है इनका जज़्बा। ये जज़्बा किसी महंगे स्कूल में पढ़ने से नहीं आता है ये आता है करोड़ों हिन्दुस्तानियों की उम्मीदों से और यही इनका पूँजी होता है, हार जीत सब लगा रहता है लेकिन जिस दिन हम सबमें से किसी एक का जीत होता है न तो हिंदुस्तान के करोड़ों भेड़ बकरियों का जीत होता है'। ये दृश्य इतना सच्चा है कि मानो गौरी नहीं ये बात वो सभी मेहनतकश लोग बोल रहे हैं जो किसी उम्मीद से अपने घर को छोड़कर बाहर जाते हैं।