भगवान हनुमान की माता अंजनी को क्यों मिला था वानरी बनने का श्राप, जानें पूरी कथा: Lord Hanuman Katha
Lord Hanuman Katha: हनुमान जी को शक्तिशाली देवताओं में से एक माना जाता है। हनुमान जी की भक्ति करने से जीवन के तमाम कष्ट दूर होते हैं। सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी देवताओं को जरूर समर्पित होता है। ठीक इसी प्रकार मंगलवार का दिन प्रभु श्री राम के परम भक्त भगवान हनुमान को समर्पित होता है। हनुमान जी की भक्ति करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है जिसके चलते उनके भक्तों की संख्या अधिक हो गई है।
वीर हनुमान का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। जिसके चलते हर साल चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। साल 2024 में हनुमान जयंती का त्यौहार 23 अप्रैल को मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी ने बंदर के रूप में जन्म क्यों लिया था, क्या आप भगवान हनुमान के माता-पिता के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो आज हम आपको इस लेख के द्वारा विस्तार में बताएंगे, तो चलिए जानते हैं।
कौन थे भगवान हनुमान के माता-पिता
भगवान हनुमान के पिता सुमेरु पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। यही वजह है कि हनुमान जी को पवन पुत्र और अंजनी पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। हनुमान जी के पिता को वायु देव भी माना जाता है। पुंजिकस्थली, जो बाद में माता अंजनी के नाम से जानी गईं, देवराज इंद्र की सभा में रहने वाली एक मनमोहक अप्सरा थीं। उनकी अद्भुत सुंदरता और अभिनय कौशल उन्हें सभा में विशेष स्थान दिलाते थे।
क्यों दिया श्राप
एक बार, जब ऋषि दुर्वासा इंद्र की सभा में पधारे, तब पुंजिकस्थली बार-बार आ-जा रही थीं। इससे ऋषि दुर्वासा को असुविधा हुई और उन्होंने क्रोधित होकर उन्हें वानरी बनने का शाप दे दिया। पश्चाताप से व्याकुल पुंजिकस्थली ने ऋषि से क्षमा मांगी और इच्छानुसार रूप धारण करने का वरदान भी प्राप्त किया। कुछ वर्षों बाद, पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विराज की पत्नी के गर्भ में वानरी रूप में जन्म लिया। जहां उनका नाम अंजनी रखा गया। अंजनी ने वानर राजा केसरी से विवाह किया और माता अंजनी के नाम से जानी जाने लगीं। माता अंजनी एक पतिव्रता और सदाचारणी महिला थीं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या कर हनुमान जी को पुत्र रूप में प्राप्त किया।