वो! खुशी के पल-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Hindi Short Story: ये उस समय की बात है, जब मोहन सातवीं कक्षा में पढ़ता था,उसका मिडिल स्कूल पठन- पाठन,खेलकूद एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था।विद्यालय के मुख्य आयोजनों में जिलाधिकारी को बुलाने की परम्परा थी।
एक आयोजन देश के अन्नदाता"किसान" को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए किया गया।जिसमें एक नृत्य नाटिका द्वारा किसानों की महत्ता परिभाषित करने हेतु मोहन और उसकी सहपाठिनी मीना को चुना गया। कई दिनों के कठिन अभ्यास के उपरान्त वह दिन,वह घड़ी आ गई,जब जिलाधीश महोदय के समक्ष उन्हें अपनी प्रस्तुति देने के लिए मंच से आमन्त्रित किया गया।धड़कते दिल के साथ शुद्ध ग्रामीण वेशभूषा में जब मंच पर वे दोनों आये,सामने परिचित चेहरों को देखकर, उनका कुछ आत्मविश्वास बढ़ा।
एक लोकगीत की पहली पंक्ति मोहन ने शुरू किया…
किस्सा सुनाऊँ तुम्हें गरमी महिनवाँ,
बीच दुपहरिया,हला जोते ला किसनवाँ।
फिर मीना ने गाया…
रतिया के प्रात उठि,किसनवाँ की धनिया,
कमवा बहोरि, जोरि, भरि लावै पनिया।
पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।कार्यक्रम की समाप्ति पर,अपने उदबोधन के समय जिलाधीश महोदय ने उन दोनों का विशेष उल्लेख किया और 10-10 रूपये पुरस्कार के रूप में अपने पास से दिया।
वो!खुशी के पल मोहन और मीना के लिये अविस्मरणीय हैं…
आज भी वह 10 रूपये की पुरस्कार राशि मोहन और मीना के पास सुरक्षित है।जिसे देखकर वे आज भी मुस्कुरा उठते है…
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