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बच्चों के लिए जरूरी है इम्यूनाइजेशन : World Immunization Week

12:37 PM Apr 24, 2023 IST | Rajni Arora
बच्चों के लिए जरूरी है इम्यूनाइजेशन   world immunization week
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World Immunization Week: रोग प्रतिरोधक क्षमता हमारे स्वस्थ जीवन का आधार है। हमारी इम्यूनिटी को बूस्ट करता है- हमारा हैल्दी लाइफ स्टाइल और जिंदगी भर चलने वाली वैक्सीनेशन प्रक्रिया, जो जन्म लेने के साथ ही नवजात को दी जानी शुरू हो जाती है और ताउम्र चलती है। व्यक्ति चाहें छोटा हो या बड़ा, हैल्दी लाइफ जीना चाहता है। इसके लिए जरूरी है-स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना। जो आवश्यक टीकाकरण के जरिए ही संभव है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के हिसाब से वैक्सीनेशन हमें बचपन से बुढ़ापे तक करीब 25 तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से बचाता है। समय-समय पर दी जाने वाली ये वैक्सीन, खासकर बचपन में लगे कई टीके व्यक्ति के शारीरिक-मानसिक विकास में तो सहायक होते ही हैं साथ ही हमारे शरीर में एंटीबाॅडीज बनाते हैं। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं और बीमारी के वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं। लेकिन किसी कारणवश जब बच्चे जीवन रक्षक टीकों की खुराक से वंचित रह जाते हैं, तो वो जिंदगी भर विकलांगता का दर्द झेलने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं।

टीकाकरण एक वैश्विक स्वास्थ्य और विकास की सफलता की कहानी है, जिससे हर साल लाखों लोगों की जान बचती है। डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, इन्फ्लूएंजा और खसरा जैसी बीमारियों से होने वाली 3.5-5 मिलियन मौतों को रोकता है। डब्ल्यूएचओ के आंकडों के मुताबिक, बचपन का टीकाकरण हर साल दुनिया भर में अनुमानित 4 मिलियन लोगों की जान बचाता है। 2000 से 2021 तक खसरे के टीकों ने अनुमानित 56 मिलियन लोगों की जान बचाई। 1988 से अनुमानित 20 मिलियन लोगों में पोलियो के टीकों ने पक्षाघात को रोका है।

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विश्व टीकाकरण सप्ताह

World Immunization Week

वैश्विक स्तर पर टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व टीकाकरण सप्ताह मनाया जाता है। इसे डब्ल्यूएचओ एक उत्सव के रूप में पूरी दुनिया में हर साल अप्रैल के अंतिम सप्ताह (24-30 अप्रैल)  को आयोजित करता है। इस साल विश्व टीकाकरण सप्ताह की थीम ‘The Big Catch-Up’ है। इसका मूल उद्देश्य उन बच्चों को जल्द से जल्द उन बच्चों को ढूंढना और उनका टीकाकरण करना है जो कोरोना महामारी के दौरान जीवन रक्षक टीके लेने से चूक गए हैं। जिसके चलते वर्तमान में खसरा, डिप्थीरिया, पोलियो, पीत ज्वर जैसी टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है।  2023 में टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करने पर बच्चों और किशोरों को रोकथाम योग्य बीमारियों से बचाया जा सकेगा, जिससे उन्हें स्वस्थ जीवन और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन

बच्चों के टीकाकरण के लिए भारत में दो तरह के शेड्यूल को फोलो किया जाता है- इंडियन एकाडमी ऑफ पिडाड्रिएक्ट (प्राइवेट सैक्टर) और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया का शेड्यूल। बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीनेशन के लिए यह स्लोगन उपयुक्त ठहरता है-‘7 बार आना है,8 वैक्सीन पाना है और 9 बीमारियों से बचाना है।’

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जन्म के समय लगने वाली वैक्सीन

World Immunization Week

नवजात शिशु को टीबी के लिए बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन ड्रॉप्स पिलाई जाती है या ओपीवी (जीरो डोज़), हेपेटाइटिस बी (फर्स्ट डोज़) वैक्सीन लगती हैं।

प्राइमरी सीरीज़ में दी जाने वाली वैक्सीन

शिशु के जन्म के 6 सप्ताह (डेढ माह), 10 सप्ताह (ढाई माह) और 14 सप्ताह (साढे तीन माह) का होने पर वैक्सीन लगाई जाती हैं। जो 8 बीमारियों को कवर करती हैैं। पेंटावेलेंट वैक्सीन जो डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, व्हूपिंग कफ़, हेपेटाइटिस बी, हीमोफीलस इंफ्लूएंजा टाइप बी (न्यूमोनिया के लिए) बीमारियों से बचाव के लिए दी जाती है। इसके अलावा डायरिया के लिए रोटावायरस, निमोनिया के लिए न्यूमोकोकल और पोलियो के लिए वैक्सीन लगाई जाती है।
पोलियो वैक्सीन उपलब्ध न होने पर जन्म के 6-10 और 14 सप्ताह में बच्चे को ओपीवी-1 , 2 ,3 की ओरल पोलियो ड्रॉप्स दी जाती हैं। इसी तरह रोटावायरस ड्रॉप्स की 3 डोज भी पिलाई जाती है- पहली डोज़ 6-12 सप्ताह, दूसरी 4-10 सप्ताह और तीसरी 32 सप्ताह या 8 महीने के बीच दी जाती है।
छठें महीने में दी जाने वाली वैक्सीन- प्राइवेट सेक्टर में शिशु को टाइफायड कॉजुगेट वैक्सीन, ओरल पोलियो वैक्सीन और इंफ्लूएंजा (सीज़नल फ्लू)।

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9 महीने में

एमएमआर या खसरे (मीज़ल्स, मम्स और रुबैला) की कम्बीनेशन वैक्सीन लगती है। ओरल पोलियो ड्रॉप्स की दूसरी डोज पिलाई जाती है। गवर्नमेंट सेक्टर में खसरे की वैक्सीन के साथ बच्चे को विटामिन ए की 9 डोज़ दी जाती हैं। एंडेमिक राज्यों में 9 महीने पूरे होने पर बच्चों को जैपनीज एंसेफलाइटिस यानी दिमागी बुखार के दो डोज दी जाती हैं।

12वें महीने पर

बच्चे को हेपेटाइटिस ए वैक्सीन दी जाती है। यह 2 तरह की होती है। लाइव वैक्सीन जिसकी सिंगल डोज़ दी जाती है, दूसरी इनएक्टिव वैक्सीन जिसकी 6 महीने के अंतराल पर 2 डोज़ (12वें और 18वें माह में) दी जाती हैं।

15वे माह पर दी जाने वाली वैक्सीन

इस उम्र के बच्चों को एमएमआर सेकंड डोज, वैरीसेला 1 (चिकनपॉक्स के लिए) दी जाती है।

बूस्टर वैक्सीन शेड्यूल

इसके साथ वैक्सीनेशन का बूस्टर शेड्यूल भी शुरू हो जाता है। सबसे पहले 15वें महीने पर बच्चे को नीमोकोकल वैक्सीन का बूस्टर डोज़ दिया जाता है। 16-18वें महीने में डीपीटी बूस्टर, इंजेक्टिड पोलियो वैक्सीन वैक्सीन लगाई जाती है। इनएक्टिव हेपेटाइटिस ए वैक्सीन का बूस्टर डोज़ 18वें महीने में लगाई जाती है।

4-6 साल में जरूरी वैक्सी

इस उम्र में बच्चे को डीटीपी वैक्सीन का बूस्टर डोज़, एमएमआर वैक्सीन की तीसरी डोज़ और वेरीसेला वैक्सीन की दूसरी डोज दी जाती है।

9-14वें साल में वैक्सीन

इस उम्र में बच्चों को टी-डेप बूस्टर वैक्सीन दी जाती है। ह्यूमन पैपीलोमा वायरस से बचाव के लिए लडकियों को 9 साल की उम्र के बाद सर्वाइकल प्रिवेंशन के लिए 0 और 6 महीने पर दो सरवरेक्स इंजेक्शन (एचपीवी) लगते है। या फिर 14 साल की उम्र के बाद इस इंजेक्शन केे 3 डोज में लगाए जाते हैं- 0, 1 और 6 महीने पर। लड़कियों को 7-14 साल की उम्र तक रूबेला वैक्सीन या एमएमआर वैक्सीन लगाई जाती है। 10वें और 15वें साल में उन्हें टिटनेस का बूस्टर इंजेक्शन दिया जाता है।

( डाॅ पंकज गर्ग, बाल रोग विशेषज्ञ, सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली )

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