शीर्षक: ए चंदा सुन- गृहलक्ष्मी की कविता
गृहलक्ष्मी की कविता-
ए चंदा,आज तुझसे
कुछ बातें करनी हैं
कुछ अपनी कहनी है
कुछ तेरी सुननी है
क्यों सदा निहारता है तू
यूं टकटकी लगा धरा को
क्या तुझे भी किसी ने
छला है बेहिसाब
क्या तेरा भी मेरी तरह
खिन्न है मन आज
तू क्यों है इतना शांत
क्यों सियें हैं तेरे अधर
कुछ तो हाल ए दिल खोल
चल मान लिया मैंने
तू है गमगीन बहुत
नहीं फूटेंगे स्वर तेरे
पर एक बात तो बता
कब तक रहेगा यूं तू
तन्हा तन्हा ख़ुद में सिमटा
मेरी तरह क्या तू भी अधीर है
क्या हालत अंतर्मन की तेरे
मेरी ही तरह गंभीर है
चल आज तेरे मौन का
मान रख लेती हूं
अपने दिल का हाल आज
मैं ही बयां कर देती हूं
सुन चंदा ,
बहुत थक चुकी अब मैं
ओढ़ दोहरेपन के लिबास को
चाहती हूं निकल जाना
दूर बहुत दूर कहीं
जहां पीछा न करे
परछाई तक मेरी
सुकून पाना चाहती हूं अब
भूलकर उन सब जख्मों को
जो मिले इस बेदर्द दुनिया से
और,
बन जाना चाहती हूं
मैं बिल्कुल तेरे जैसी
दूर सबसे दूर
ताकि छू न पाए
आज के बाद कोई
संतप्त रूह को मेरी
न कर पाए छलनी इसे
न कर पाए जज़्बात को मेरे
कोई फिर से तार तार
कोई फिर से तार तार..