समूचा विकास परिवर्तन का विकास है: Spiritual Thoughts
Spiritual Thoughts: मनुष्य अपनी परिस्थितियों को बदलता है और वातावरण को भी बदलता है। वातावरण को ऐसे ही नहीं छोड़ देता। परिस्थिति को, जो जैसे है, वैसे ही नहीं छोड़ देता, उसे बदलने का प्रयत्न करता है। मनुष्य का पूरा पुरुषार्थ और पूरा प्रयत्न बदलने में लगा है और वह आगे बढ़ा है।
विश्व का समूचा विकास, सभ्यता और संस्कृति का पूरा विकास, परिवर्तन का विकास है। जो जैसे है वैसे ही रहे तो विकास संभव नहीं होता। मेरे सामने लोग कपड़े पहने बैठे हैं। रुई पौधे पर लगी, रुई बनी, धागा बना और कपड़ा बना। रुई पहने हुए कोई नहीं है। सारा परिवर्तन हुआ है। कच्चा माल सामने आया, पक्का बना। रुई से धागा बना, धागे से कपड़ा बना, तो कपड़ेे पहने हुए बैठे हैं। अगर रुई को ही पहने होते तो काम काम बनता नहीं। धागों को तो पहना ही नहीं जा सकता। कपड़े से सर्दी रुकती है, गर्मी का बचाव होता है, आंधी और वर्षा से बचा जा सकता है। इसके पीछे पूरे परिवर्तन की कहानी है। रोटी खाते हैं पर कोरे गेहूं नहीं चबाते। कोरे चने नहीं चबाते, रोटी बनाकर खाते हैं।
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मनुष्य अपनी परिस्थितियों को बदलता है और वातावरण को भी बदलता है। वातावरण को ऐसे ही नहीं छोड़ देता। परिस्थिति को, जो जैसे है, वैसे ही नहीं छोड़ देता, उसे बदलने का प्रयत्न करता है। मनुष्य का पूरा पुरुषार्थ और पूरा प्रयत्न बदलने में लगा है और वह आगे बढ़ा है। यदि बाहरी परिस्थिति को न बदला जाए तो काफी कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं। मनुष्य ने बाहरी परिस्थिति को बदलने का भी उपक्रम किया है, बाहर के वातावरण को भी बदलने की चेष्टïा की है। यदि अंधकार को नहीं बदला जाता है तो प्रकाश उपलब्ध नहीं होता। प्रकाश से रात में भी दिन हो जाता है। रात में भी दिन होता है मनुष्य के पुरुषार्थ के द्वारा और बदलने के द्वारा। मनुष्य ने कितने प्रयत्न किए हैं कभी पत्थरों से आग जलाई, कभी अरणी की लकड़ी से आग जलाई और बिजली जलाई। साधनों के परिवर्तनों के द्वारा वह अंधकार को भी प्रकाश में बदल देता है। अंधकार एक परिस्थति है। उस परिस्थिति को बदलने का प्रयास किया, प्रकाश उपलब्ध हो गया। बाहरी वातावरण को बदलने का प्रयत्न हुआ है, इसीलिए आदमी गर्मी में सर्दी की स्थिति पैदा कर सकता है। ये सारे पंखे, कूलर इसीलिए तो बना कि सर्दी की परिस्थिति को बदल दिया जाए, गर्मी में सर्दी और सर्दी में गर्मी। मौसम की एकरूपता बना दी जाए। दूसरा प्रश्न आता है, आंतरिक परिस्थिति को बदलने का।
मेडिकल साइन्स में यह माना गया है कि अंत:स्रावी के स्रावों में परिवर्तन करने के पर्याप्त साधन अभी उपलब्ध नहीं हैं। भावों को नहीं बदला जा सकता, विचारों को नहीं बदला जा सकता। अभी बड़ी कठिनाइयां हैं। मनुष्य आंतरिक परिस्थति को बदलने में अपने आपको अक्षम अनुभव करता है और एक बहुत बड़ा बहाना मिल जाता है कि हम क्या करें? बुरे विचार आते हैं पर क्या करें यह तो नियति की बात है, बुरे भाव आते हैं, हम क्या करें, हमारे वश की बात नहीं। आदमी अपने आपको अवश-सा अनुभव करता है और एक बहाना भी बहुत अच्छा है कि बुरा-अच्छा जो जैसा होता है वैसा नियति से होता है, भीतर की प्रेरणा से होता है, उसमें हमारा तो कोई नियंत्रण नहीं है। क्यों दोष दिया जाए? एक चोर को क्यों दोषी माना जाए? जैसे उसकी भीतरी प्रेरणा होती है, जैसा उसका भीतर का रसायन होता है वैसा व्यवहार और आचरण उसे करना होता है उसकी विवशता है, उसकेवश की बात नहीं है। यह एक बहाना मिल जाता है।
रसायनों का परिवर्तन करने के लिए परिवर्तन करना होता है, विचारों का और विचार का परितर्वन करने के लिए परिवर्तन करना होता है भावों का। जब भाव परिवर्तन की कुंजी हमारे हाथ लग जाती है तो आंतरिक-परिवर्तन की कुंजी हमारे हाथ लग जाती है तो आंतरिक-परिवर्तन की दिशा में हमारा प्रस्थान तीव्र गति से होने लग जाता है।