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अंतर्मन की आवाज-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM Apr 12, 2024 IST | Sapna Jha
अंतर्मन की आवाज गृहलक्ष्मी की कहानियां
Antarman ki Awaaz
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Story in Hindi: " मैं कुछ लिखना चाहता हूं अपनी कलम से तुम्हारे लिए,

 मैं बातें करना चाहता हूं तुमसे घंटों ऐसे ही संग बैठकर,

मगर मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं तुम ही बताओ कैसे कहूं"।

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इन पंक्तियों के द्वारा अपने दिल के किसी कोने में छुपी हुई अपनी भावनाओं को कलम की स्याही में अपने एहसासों के द्वारा अक्षरों को शब्दों में पिरोकर कागज पर उतारते हुए अनुपम अचानक रुक जाता है और खिड़की से प्रकृति को निहारते हुए कलम को कागज पर रखकर कुर्सी से उठ जाता है और खाने की मेज़ पर रखे हुए पानी के गिलास को उठाकर पानी पीने लग जाता है तभी अचानक तेज हवाएं चलना शुरु हो जाती हैं , खिड़की के पास रखे हुए काग़ज़ अचानक हवाओं में उड़ने लग जाते हैं , अनुपम जब यह सब देखता है तो तुरंत सभी कागजों को उठाकर खिड़की बंद कर देता है। और उन कागजों के ऊपर कलम का डिब्बा रख देता है। तेज हवाओं का अंदर आना अब बंद हो गया था और एक अजीब सी ख़ामोशी पूरे घर में फैलने लगी थी और कुछ ही पलों में घर की बिजली भी चली गई थी अनुपम मोमबत्ती को ढूंढने में व्यस्त हो जाता है काफ़ी देर तक ढूंढने के बाद मोमबत्ती अनुपम को मिल जाती है वह उसे जलाकर अपनी लिखने की मेज पर रख देता है मगर तेज़ हवाओं को अंदर आने से रोकने वाली खिड़की उनका सामना नहीं कर पा रही थी खिड़की ने अपनी हार मान ली हवाओं ने किसी बेजान शरीर में आत्मा की तरह पूरे घर में जीवन ला दिया मोमबत्ती बुझ चुकी थी और खुद को बहकाने की अनुपम की कोशिश भी ख़त्म हो चुकी थी। जिस प्रकार झूठी " खुशी " कुछ पलों के बाद गायब हो जाती है वैसे ही उसका यह झूठा व्यवहार कि सब कुछ ठीक है। वह गायब होने लगा था। उसकी " अंतर्मन की आवाज " के साथ में।

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पिछले कई सालों से अनुपम एक ही प्रकार की जिंदगी जी रहा था , सुबह उठना और फिर ऑफिस के लिए निकल जाना जीवन किसी कारखाने की तरह हो गया था जहां सिर्फ एक ही चीज का उत्पादन हो रहा था वह था सिर्फ काम और कुछ भी नहीं। जिस प्रकार कारखाने में मजदूर दिन - रात काम करता है जिससे उसका घर चल सके ठीक उसी प्रकार अनुपम भी दिन - रात काम करता था जिससे इस समाज में उसकी पहचान बनी रहे , उसका नाम इस समाज में सबसे ऊपर रहे , सब उसकी तारीफ करें। उसका जीवन खुद के लिए नहीं बल्कि इस समाज के लिए था , वह अपने चेहरे पर मुस्कान भी केवल दिखावे के लिए ही रखता था। उसकी " खुशी " लोगों का उसके प्रति किया गया अच्छा व्यवहार ही निर्धारित करता था। अनुपम किसी कहानी के किरदार को निभा रहा एक अभिनेता की तरह हो गया था, जिसका निर्देशक यह समाज था जो उसे अपने इशारों पर अभिनय करने का निर्देश देता था और अनुपम चुपचाप उन निर्देशों का पालन करते हुए अभिनय करता था। अपनी रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को अनुपम भूल ही चुका था, अपनी "अंतर्मन की आवाज " के साथ में । वह जीवित भी है या नहीं उसे स्वयं भी पता नहीं था। वह तो बस समाज की कठपुतली बन चुका था। उसका अपना कोई दिशा निर्देश ही नहीं था।

तेज हवाओं का चलना अब बंद हो चुका था और घर में बिजली भी आ चुकी थी। अनुपम खिड़कियां खोलना शुरू कर देता है। शायद उसके अंदर की बंद " खुशी " वाली खिड़कियां जो कब से खुली नहीं थी वह खुल जाएं। अनुपम घर के मुख्य दरवाजे को खोलकर बाहर आ जाता है और सामने बगीचे में बने झूले पर बैठ जाता है और खुद से ही बातें करने की कोशिश करने लग जाता है। मगर वह असफल होता रहता है। कुछ आवाजें आने के कारण अनुपम के मन में चल रही उथल - पुथल अचानक रुक जाती है , वह आवाज़ों की दिशा में देखने लगता है और कुछ दिखाई नहीं देने के कारण उस तरफ चल देता है। कुछ ही दूर तक चलने के बाद उसे कुछ बच्चे खेलते हुए दिखते हैं अपनी स्कूल की पोशाक पहने हुए , तभी बादलों में छुपी हुई पानी की बूंदें एक - एक करके ज़मीन को छूने लगती हैं, अनुपम पास के एक पेड़ के नीचे खड़ा हो जाता है , मगर बच्चे खेलते रहते हैं अब बारिश के कारण पानी और कीचड़ को वो अपना खिलौना बना लेते हैं और उनके साथ " खुशी " में नाचने और गाने लग जाते हैं। अनुपम यह सब देखता ही रह जाता है। उसकी " अंतर्मन की आवाज " ने आज बहुत सालों बाद आज उससे धीरे से कुछ कहा। जिसे सुनकर बहुत अच्छा लगा था। अनुपम उन बच्चों को चुपचाप खेलते हुए देखता रहता है। कुछ समय बाद सभी बच्चे वहां से चले जाते हैं। अनुपम अपने चेहरे पर मुस्कान लिए हुए वहां से चला जाता है। जैसे कोई बच्चा किसी खिलौने के प्राप्त होने पर अपने चेहरे पर मुस्कान लिए हुए चलता है।

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यह वक्त कुछ ऐसे गुजरा था कि किसी को भी पता नहीं चल पाया था। अनुपम की चाल में कुछ बदलाव आ चुके थे , जिसे वह महसूस कर रहा था। जैसे पतझड़ के बाद सावन के आने के कारण वीरान हुए वृक्ष पर नई हरी पत्तियां अपना वर्चस्व बना लेती हैं ठीक वैसे ही अनुपम के नीरस जीवन में कुछ फूलों ने खिलना अब शुरु कर दिया था। आज उसके शरीर से " खुशी " की चिंगारियां निकल रहीं थीं। अनुपम अब कुछ नया - सा महसूस करने लगा था , जो उसने पहले कभी भी महसूस नहीं किया था। वह अपनी पुरानी जिंदगी जो अभी तक चली आ रही थी उसे पीछे छोड़ चुका था यह सब कुछ एक सपने की तरह लग रहा था , जैसे खुलकर जीने की उसकी इच्छा पूरी हो चुकी हो। घर जाने वाले पूरे रास्ते में अनुपम को इतना खुश देखकर सभी लोग हैरान होने लगे थे। अनुपम उन सभी लोगों को देखकर और खुश होने लग जाता। आज वह स्वयं को सभी बंधनों से आज़ाद महसूस कर रहा था। वह आज किसी पिंजरे में बंद पक्षी जो अब पूरे खुले आकाश में उड़ान भरने लगा हो ऐसा महसूस कर रहा था। आज उसे समाज से कोई डर नहीं लग रहा था और आज उसे अपने अपमान की भी कोई चिंता नहीं थी आज उसे अपने चरित्र पर कोई दाग़ लगने का भय भी नहीं था।

घर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी दिशा को गले से लगाया और फिर अपनी मेज पर बैठकर लिखने लग गया उन अनुभवों को जिन्हें उसने आज महसूस किए हैं। दिशा थोड़ी हैरान - सी होने लगती है , वह चाय बनाकर अनुपम के बगल में रखी हुई कुर्सी पर बैठ जाती है और चाय देते हुए अनुपम से पूछती है - " क्या हुआ आज तुम बहुत खुश नजर आ रहे हो " ? अनुपम कहता है " मेरी इस " खुशी " का कारण है , दिशा आज मैंने अपने जीवन का बहुत खुशनुमा अनुभव किया है ," खुशी " किसी चीज की प्राप्ति नहीं बल्कि मन की एक अवस्था होती है , जहां सिर्फ आत्मा ही निवास करती है हमारा यह नश्वर शरीर नहीं , यह शरीर तो समाज और समय एवम परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करता है मगर आत्मा इन सभी बंधनों से मुक्त रहती है। जब कोई बच्चा अपने आप में ही रहता है तो कोई समाज या समय एवम परिस्थितियां उसका कोई विरोध नहीं करतीं अपितु सभी उसका समर्थन करते हैं। हर मनुष्य को अपना जीवन एक बच्चे की तरह ही जीना चाहिए , कुछ खोने का डर , कुछ पा लेने का सुख इन सबसे ऊपर उठकर जीना चाहिए तभी वह इस जीवन की सबसे सुंदर " खुशी " का अनुभव कर पाएगा।

अनुपम की इन सब बातों को सुनकर दिशा अपने मन में बहुत प्रसन्न होती है , इतने वर्षों के बाद अनुपम ने दिशा को पहली बार आज गले से लगाया था वो पल दिशा की जिंदगी का बहुत खास पल था। वह आज अनुपम को किसी छोटे बच्चे की तरह देख रही थी। उसे आज ऐसा लग रहा था जैसे उसके सभी सपने आज एक साथ पूरे हो गए हैं वह आज " खुशी " में झूमने लगी थी। वह चाय का प्याला अनुपम को देते हुए कहती है - " चाय की चुस्कियों को लेते हुए लिखने से विचार बहुत अच्छे आते हैं और मन " खुशी " से झूमने लग जाता है। दिशा की इन बातों को सुनकर अनुपम मुस्कुराते हुए चाय की चुस्कियों लेने लगता है। दिशा पूछती है " क्या लिख रहे हो" ? अनुपम कहता है - " अंतर्मन की आवाज " व्यक्ति वास्तविक " खुशी " फिर दोनों चाय की चुस्कियां को लेते हुए अपने - अपने " अंतर्मन की आवाज " को सुनने लग जाते हैं। दिशा कहती है -" क्या लिखा है ? मुझे भी सुनाओ " अनुपम मुस्कुरा कर दिशा को अपने द्वारा लिखा हुआ सुनाने लगता है-

" 'अंतर्मन की आवाज ' कुछ कहना चाहती है तुमसे अकेले में,

तुम सुनो ध्यान से उसको बतलाती तुमको " खुशी " अकेले में"

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