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डेस्टिनी : एस. बलवंत

09:00 PM Aug 26, 2022 IST | sahnawaj
Mahanagar
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उस दिन हसीना जब वापिस घर पहुंची तो सलमा को देख दंग रह गई।

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सलमा का कुंआरापन लुट चुका था। उसकी कोमल सी काया रौंदी हुई थी। सलमा स्वयं भी हसीना की ओर देखती रही जैसे बहुत कुछ कहना चाहती हो। पर कहा केवल आंखों और दिल के द्वारा ही। जैसे कोई भी भाषा उसकी जुबान पर आने से इंकार कर रही हो।

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हसीना ने सलमा को अपने सीने से लगाया। हसीना के दिल की धड़कन घटती बढ़ती रही। वह अपने आप पर ही रो उठी।

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शायद सलमा से ज्यादा हसीना परेशान थी। सलमा को सहारा देकर उसने बिस्तर पर लिटाया। फिर गर्म दूध में हल्दी डाल कर उसको दिया और कुछ दवाईयां भी। थोड़ी ही देर में सलमा सो गई। सलमा को सोया हुआ देख हसीना अपने अतीत में खो गई।

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हसीना की तमाम उम्र कैबरे घरों में डांस करते हुए गुजरी थी। हसीना अपनी मां की तरह अपनी बेटी को अपनी जैसी जिल्लत की जिन्दगी से दर रखना चाहती थी। इसीलिए उसने सलमा को होस्टल में रखकर कॉलेज तक की पढ़ाई करवाई।

हसीना की तरह उसकी अम्मी भी चाहती थी कि हसीना कोठे की दुनिया से दूर चली जाए।

हसीना की अम्मी एक मशहूर तवायफ थी। दूर दूर तक उसका नाम था। तरह तरह के लोग आते उसके मुजरे के लिए। एक फिल्मी आदमी भी आता था उसके पास। वह उसकी बातों में आ गई और हसीना को बम्बई फिल्मों में काम करने के लिए भेज दिया। सुन्दर तो वह थी ही। मां ने सोचा वहां उसका कैरियर बन जाएगा?

पर उनको क्या पता था कि यही उनकी आखिरी मुलाकात होगी?

कुछ ही दिनों में हसीना की अम्मी का कत्ल हो गया और हसीना अकेली रह गई। कई तूफान आये। हसीना वक्त की मार झेलती जिंदगी का सफर तय करने लगी।। वह फिल्मी आदमी तो कुछ दिनों बाद ही हसीना को छोड़ कर चला गया। पर वहां उसकी एक और आदमी से जान पहचान हो गई, जिसने हसीना को फिल्मों में डांस का काम दिला दिया।

जब भी कोई ग्रुप डांस होता तो हसीना उसमें हीरोइन के साथ डांस करती। जितने दिन लगते उतने पैसे मिल जाते। पर इतने ज्यादा नहीं थे कि वह अच्छे तरीके से रह सकती। धीरे-धीरे वह फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों के साथ रातों को जाने लग पड़ी। कोई उसको गिफ्ट देता तो कोई पैसे।

हसीना सोचती कि उसकी अम्मी ने तो कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि वह जो काम उससे छुड़वाना चाहती थी, वही उसके सामने डेस्टिनी बनकर उसकी प्रतीक्षा करेगा?

इस तरह से वह अपना गुजर-बसर कर रही थी कि अचानक सैट पर एक कैबरे घर का मालिक आया। हसीना उसको सुन्दर लगी। डांस भी अच्छा करती थी। उसने उसको अपने कैबरे घर में बतौर डांसर पसंद किया।

और बस हसीना कैबरे डांसर बन गई।

अब हसीना खुश थी। उसको फिल्म के काम से कहीं अधिक पैसे मिल जाते। कभी-कभी वह किसी अमीरजादे के साथ रात को भी चली जाती।

चाहे कैबरे घरों में कांट्रेक्ट कुछ महीनों के लिए ही होता था। लगातार आने वाले ग्राहक एक ही चचेरे से ऊब जाते थे। इस कारण कैबरे घरों वाले आर्टिस्ट बदलते रहते थे।

पर हसीना को एक के बाद एक कैबरे घर वाले लेने को तैयार रहते। बल्कि हसीना अपने ग्राहक भी अपने साथ ही खींच ले जाती तो मालिक और भी खुश हो जाते।

धीरे-धीरे वह और शहरों में भी जाने लगी। कभी बम्बई तो कभी बंगलौर। कभी हैदराबाद तो कभी कलकता, फिर दिल्ली। सब शहरों में उसका खूब नाम फैल चुका था। वैसे वह कई स्थानों पर अपना नाम बदल भी लेती। कैबरे घरों में कई प्रकार के सीन करने को कहा जाता। कहीं शरीर अधनंगा तो कहीं पूरा। ग्राहक के साथ हाथ मिलाने की अनुमति होती। कहीं केवल खूबसूरत डांस के लिए ही कहा जाता। हसीना सब करती जाती।

यहीं पर उसकी अजगर के साथ मुलाकात हुई थी। उस कैबरे घर में बहुत अमीर लोग आते थे। कैबरे खत्म होने के बाद वह बार में चली जाती। उसको याद आया की जब वह पहले दिन अजगर के साथ गई तो हैरान थी, “तू तो कहता था मैं मुसलमान हूँ?”

“मेरा नाम अजगर है। मैं सच कहता हूँ। तू हैरान हुई होगी कि मेरी सुनत नहीं हुई। यह इसलिए कि मैं ठीक तब पैदा हुआ जब उन्नीस सौ सैंतालीस के दंगे हो रहे थे। मेरे घर वाले सब मारे गए थे और एक हिन्दू परिवार ने मुझे बचा कर पाला। इसीलिए उन्होंने सुनत नहीं करवाई पर मेरा नाम अजगर रखा।” अजगर ने बड़ी मासूमियत के साथ जवाब दिया।

यह जानते हुए भी कि यह झूठ हो सकता है, हसीना ने उस पर विश्वास कर लिया।

अजगर उसे अच्छा लगता। उसकी मीठी-मीठी बातें सुनकर तथा चापलूसी देख वह खुश भी होती और कभी-कभी खूब हंसती। वह उसको घुमाने भी ले जाता। हसीना जब अजगर के साथ जाती तो पता नहीं क्यूं उसके अंदर अजगर की बीवी होने का एहसास हो उठता। हसीना को लगता अजगर उसका हर तरह से ध्यान रखता और छोटी से छोटी चीज़ के बारे में भी चिन्तित रहता।

अजगर से ही उसको एक बच्ची मिली। हसीना ने उसका नाम सलमा रखा। जब वक्त आया तो हसीना ने अजगर की मिन्नतें की कि वह बच्ची को जनम देना चाहती है और वह उससे निकाह कर ले। अजगर निकाह के लिए न माना पर उसके साथ बाकी जिंदगी गुजारने का वायदा तो किया, तो हसीना उस बच्ची को जन्म देने अपने घर चली गई।

पर जब वह वापिस लौटी तो अजगर उसे कहीं न मिला। हसीना के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। वह अजगर को ही अपना सब कुछ समझ बैठी थी। अजगर का गायब हो जाना उसकी बर्दाश्त से बाहर था।

वह अंदर से टूटती जा रही थी। पर वह बेबस, कर भी क्या सकती थी?

उसके सलमा की देख-रेख का प्रबन्ध प्राइवेट किया और लोगों के लिए अभी भी कुँवारी बनी रही और दोबारा कैबरे डांस शुरू कर दिया।

पर इस घटना ने हसीना की सारी भावुकता निचोड़ दी। अब वह किसी भी इनसान पर विश्वास नहीं करती। धीरे-धीरे वह एक ऐसा हथियार बन गई जो चाकू से भी तेज और भरोसेमंद है।

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…और आज यह क्या हादसा हो गया? …हसीना सलमा के मासूम चेहरे की ओर देख परेशान थी।…बैठी बैठी सोचों में डूबी रही…।

सोचते सोचते उसका शक बनवारी लाल पर चला जाता।…हो न हो यह काम बनवारी लाल का ही हो सकता है…और किसी की हिम्मत नहीं हो सकती।

बनवारी लाल तक पहुँचने की भी उसकी लम्बी कहानी थी। तब वह दिल्ली के एक ऐसे कैबरे घर में काम करती थी जिसका मालिक एक समाज सेवक भी था। उसका काम पार्टी के लिए काम करने के अलावा नेताओं के लिए उनके बिस्तर “गर्म” करने के लिए “सामान” उपलब्ध करवाना भी था।

और इसी सामान के बीच हसीना बनवारी लाल के पास पहुंच गई। बनवारी लाल को वह इतनी भा गई कि हसीना उसकी रोज की ज़रूरत बन गई।

उसने हसीना की अपने पास ही रख लिया।

बनवारी लाल वैसे तो खतरनाक किस्म का आदमी था, पर हसीना ऐसे इनसानों के साथ चलना जान गई थी। वह जानती थी कि खतरनाक तो केवल हथियार या उनको चलाने वाला दिमाग होता है। मनुष्य तो मास हड्डी का ही बना होता है। वैसे भी मर्द जब औरत के सामने नंगा होता है, तब उसका सब कुछ ही नंगा हो जाता है। सारी खूंखारी खत्म हो जाती है।

इस तरह बनवारी लाल भी हसीना के सामने नंगा हो गया। उसकी खूंखारी छोटे बच्चे में बदल गई। बनवारी लाल ने बाद के सरकारी झंझटों से बचने के लिये हसीना को अपने कारोबार में कागजी हिस्सेदार बना लिया और खुद वह खुल कर राजनीति में चला गया। फिर हसीना ही सारा काम सम्भालती। सब लेन देन उसी के हाथों होता।। बनवारी लाल मंत्री बन गया। समाज सुधारक के रूप में उसका नाम काफी ऊपर वाले लोगों में आने लगा था।

कुछ इस तरह से हुई थी बनवारी से उसकी मुलाकात।

पर कुछ दिन पहले ही बनवारी लाल हसीना से झगड़ पड़ा था। वह समझता था कि उसके विरोधियों से मिलकर वह उसके राज उन्हें बताती है…बस इसी बात से वह लड़ पड़े।

पर जब उसने हसीना की वफादारी पर शक किया तो हसीना सहन नहीं कर पायी।

हसीना गुस्सा होकर सब कुछ वैसे का वैसा छोड़कर इस मकान में चली आयी जो उसने बनवारी लाल के पास आने से पहले खरीदा था।

बाद में बनवारी लाल ने भी उसका पता नहीं किया।

कई दिन गुजर गये।

तब ही सलमा की पढ़ाई खत्म हो गई। हसीना सलमा को इसी मकान में ले आई। यहीं पर कल सलमा ने कॉलेज की कई दिलचस्प बातें सुनाई थीं।

हसीना ने भी अपनी जिंदगी की सूक्ष्म से सूक्ष्म घटनाएं पूरे विस्तार सहित सलमा को बतायीं। उसने यह भी बताया कि किस तरह वह अपने शरीर को बचाने की कोशिश करती रही। पर हर मोड़ पर उसे समझौता ही करना पड़ा।

हसीना चाहती थी कि या तो वह और पढ़े या किसी अच्छे घर में निकाह कर सदा के लिए सुखी रहना शुरू कर दे।

दोनों में खूब बहस हुई और पता नहीं दोनों कब सो गई।

जब सुबह हसीना की आंख खली तो सलमा सोई पड़ी थी।

हसीना उसको सोई छोड़कर बाजार चली गई….वापिस लौटी तो सलमा का यह हाल देखकर उसकी जान निकल गई। वह हैरान सलमा की ओर देख कर चीखी तो सही….पर उसकी चीखें घर की चहारदीवारी से टकराकर ही लौट आईं।

यह क्या अनहोनी हो गई?…औरत का कुंआरापन एक बार गया तो बस गया।

धीरे-धीरे वो दिन बीत गया।…दूसरा आया वह भी चला गया।…और इस तरह दिन आता और चला जाता।…पर सलमा के चेहरे पर वह खुशी वापिस न आई…जो इस घर में आने पर थी।

हसीना को जब यकीन होने लगा कि यह काम बनवारी लाल का ही हो सकता है….तो वह कांपी नहीं बल्कि अपने अंदर और आक्रोश इकट्ठा कर उसने सोचा वह बदला लेगी…और दुनिया में जीने के लिए बनवारी लाल जैसे लोगों से टक्कर ले उसके मुकाबले ताकत अपने हाथ लेने की ट्रेनिंग सलमा को देगी और उसे उसकी डेस्टिनी तक पहुंचाएगी।

इन्हीं सोचों के सफर में उड़ते और लौटते उसकी आंख लग गई…!

जब उसने बनवारी लाल के विरोधियों से समझौता किया तो बस कुछ देर में ही बनवारी लाल के खिलाफ अखबारें भरी पड़ी थीं और बनवारी लाल उनके बारे में अपनी सफाई देने में उलझा पड़ा था। और उसका असली चरित्र लोंगों के सामने आ गया था। उसको बहुत ठेस लगी थी।

उधर जिंदगी की दहलीज टापते सलमा के चेहरे पर भी आत्मविश्वास आ गया था। अब उसको ज्यादा फर्क न पड़ता था कि वह किस-किस के साथ हमबिस्तर हुई। अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए वह कुछ भी कर सकती थी। तरह-तरह के भरोसे मिलते। तरह-तरह की उम्मीदें बनती।

हसीना को लगा कि उसने आधी जंग जीत ली हो। कामयाबी जैसे अब उसके सामने हो। जल्द ही उसकी बेटी अब बुलन्दियों के शिखर पर होगी।

पर कुछ ही दिनों बाद सलमा इस सब से बोर होने लगी। उसको सब कुछ बेकार लगने लगा। वह अपनी अम्मी के जल्दी मुरझाते चेहरे की ओर देखती तो डर जाती। यह कैसा गुस्सा था यह सोच वह परेशान हो जाती।

उसका दिल करता वहां से भाग जाए। वहीं खुले आसमान में उड़ान भरे अपनी होस्टल की सहेलियों में फिर से पहली जिंदगी में मुड़ जाये।

पर वह अपनी अम्मी की ओर देख रुक जाती। इस तरह वक्त गुज़रते एक दिन हसीना अपने इसी घर में आराम कुर्सी पर शांत बैठी अगले कदम के बारे सोच रही थी कि अचानक उसको पता चला कि सलमा के कुंवारेपन के साथ बनवारी लाल के आदमियों ने नहीं बल्कि उसके विरोधियों ने ही खेला था, जिनके साथ वह हाथ मिला बनवारी लाल को उजाड़ने और सलमा की कामयाबी के सपने ले रही थी। तो उसको लगा जैसे वह भी अपनी मां की तरह मुंह के बल जमीन पर जा गिरी हो जैसे पुश्तों से हसीना व सलमा जैसी औरतों की डेस्टिनी यू ही प्रतीक्षा कर रही हो।

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