ईश्वर - दादा दादी की कहानी
Dada dadi ki kahani : एक प्रसिद्ध कवि की मेज़ पर एक कलम, यानी पैन और एक स्याही की दवात रखी हुई थी।
रात का समय था। कवि महोदय किसी संगीत-कार्यक्रम में गए हुए थे। तभी उनकी मेज़ की चीजें अचानक बातें करने लगीं।
दवात बोली, 'कितने कमाल की बात है! मेरे अंदर से कितनी सुंदर चीजें निकलती हैं। कविताएँ, कहानियाँ, चित्र सभी कुछ। मेरी कुछ बूंदें ही काफी हैं, पूरा एक पेज भरने के लिए। मेरा कोई जवाब नहीं।'
पैन ने यह सुना तो तुरंत बोला, 'यह तुम क्या कह रही हो? अरे, अगर मैं नहीं होता तो कोई कैसे लिखता! तुमसे तो केवल स्याही ली जाती है। सुंदर शब्द तो बस मेरे अंदर से ही निकलते हैं।'
वे दोनों अभी बातें कर ही रहे थे कि तभी कवि महोदय वहाँ आ गए। ऐसा लगता था जैसे उन्हें संगीत का कार्यक्रम बहुत पसंद आया था, इसीलिए वे प्रसन्न थे। आकर सीधे अपनी मेज़ पर आए और लिखने लगे।
'यदि तबला कहे कि उसके अंदर से सुंदर तालें निकलती हैं तो कितना गलत होगा! यदि बाँसुरी कहे कि सारे मीठे स्वर उसी के अंदर से निकलते हैं तो मूर्खता होगी। सच तो यह है कि ये सब तो बस वही कहते हैं, जो उनके ऊपर चलने वाले हाथ उनसे करवाते हैं-उस व्यक्ति के हाथ जो इन्हें बजा रहा होता है। और वह व्यक्ति बस वही करता है, जो ईश्वर उससे करवाता है। यानी कि संसार में सब कुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता है। हम तो बस ईश्वर के हाथों के खिलौने हैं। जो वह चाहेगा, वही होगा।'
और तब पैन और स्याही को बात समझ में आई। उसके बाद उन्होंने कभी लड़ाई नहीं की।