गुरांदित्ता : एस. बलवंत
उन दिनों सुबह होते ही सारी सब्जी मंडी में ऐसा शोर मचता था जैसे कोई बहुत बड़ी लड़ाई शुरू हो गई हो।
सब्जियों और फलों के लदे हुए ट्रक आते और छोटे व्यापारी और रेहड़ी वाले अपनी-अपनी जरूरत के अनुसार माल खरीदकर मुहल्लों की तरफ चल पड़ते।
दोपहर तक शांति हो जाती।
पर उस दिन चुप होते ही सूरज को बादलों ने घेर लिया। बरसात के भी कोई आसार नहीं थे। पंछी उड़-उड़ कर इधर से उधर शोर मचाते रहे। मौसम में बड़ी उमस सी हो गई थी।
इसी सब्जी मंडी के एक तरफ गुरांदित्ता का अड्डा था। सारे ट्रक ड्राइवर और क्लीनर इधर ही डेरा जमाते थे। अफीम, चरस व कच्ची शराब यहां धड़ा धड़ बिकती।
हर रोज की तरह उस दिन भी धंधा चल रहा था।
गुरांदित्ता हमेशा की तरह आज भी मोटे बान से बुनी चौड़ी चारपाई पर चादर बिछाकर चौकड़ी मार कर बैठा हुक्का पी रहा था। चेले इर्द-गिर्द बैठे हुए थे।
गुरांदित्ता का नाम दस नम्बरियों में शामिल था।
थानेदार अभी सलाम करके लौटा था।
गुरांदित्ता के इलाके में कुछ भी घटे सबसे पहले गुरांदित्ता को पता चलता और इससे पहले कि पुलिस हरकत में आये मुजरिम गुरांदित्ता की अदालत में हाजिर होता और मुनासिब सज़ा तजवीज होती।
जरूरत पड़ने पर वह मुजरिम को थानेदार के हवाले भी कर देता था।
गुरांदित्ता ने गेले को आवाज देकर पूछा, तुझे कहा था कि भई आठ दस बोतलें बढ़िया तोड़ की निकाल। बादाम डाल कर।” वह तो पहले से ही पड़ी है। आपने कहा था कि आपके किसी दोस्त ने आना है। अंदर अलमारी के ऊपर दराज में संभाल कर रखी हुई है।” गेले ने तफसील दी।
गुरादित्ता के मुंह पर मुस्कान आई।
उसने गेले को अपना काम करने को कहा।
वह बचपन के दिनों को याद करने लगा। “इकट्ठे खेलते रहते थे। पर वह पढ़ाकू निकला। सुना है आजकल वह किसी कॉलेज में पढ़ाता है। बड़ा आदमी बन गया है। खूब नाम कमाया उसने। इस बार जब आयेगा तो उस पढ़ाकू के साथ खूब बातें करनी है।” उसने मन में कहा।
इतनी देर में उसका मुखबिर खबर लाया कि खचेडू जेल से छूट गया है।
गुरांदित्ता आराम से हुक्का पीता रहा और कुछ सोचता रहा।
फिर वह उठा और गेले को आवाज देकर गोदाम का दरवाजा खोलने को बोला। गेले ने फटाफट चाबियां उठाईं और दरवाजे का ताला खोल दिया।
दोनों अंदर चले गये। किरपानों और बरछों का ढेर लगा हुआ था। दो बन्दूकें भी पड़ी थीं, थोड़े कारतूस थे। उसने गेले को कहा, “इनको धार लगवा ला। पता नहीं कब इनकी जरूरत पड़ जाए।” यह कह वह बाहर आ गया।
गेले ने जल्दी-जल्दी सानें चलवाईं। बरछे और किरपानें तीखी होनी शुरू हो गईं।
इस तरह कई दिन गुजर गए। उस दिन गुरांदित्ता अपनी चारपाई पर बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था।
वह सोच रहा था कि यदि खचेडू ने पहल न की तो वह उसको माफ कर देगा। आखिर वह उसके लिए काफी देर काम करता रहा है। बल्कि दायां हाथ था उसका।
एक दिन वह जमीला को उठा लाया। तो इस पर गुरांदित्ता में को गुस्सा आ गया। औरत जात पर गुरांदित्ता ने कभी ज्यादती नहीं होने दी थी। वह आप चाहे खुद सौ काले धंधे करता था, पर उसके इलाके की सारी औरतें उसकी कसम खा सकती थीं।
बस इसी बात से उनका झगड़ा हो गया।
खचेडू को तो वह उसी दिन खत्म कर देता पर उसकी पहली गलती के कारण गुरांदित्ता ने उसे माफ कर दिया।
गरांदित्ता से अलग होते ही खचेडू ने भी उसके वाले काम शुरू कर दिए। थाने वालों का क्या था। वे भी साथ मिल गये।
बस कत्ल व चोरी न हो बाकी जो मर्जी करो। बस उनकी मुट्ठी गर्म रखो और वैसे भी यह तो खाने पीने का धंधा करते थे। सारी मंडी के ड्राइवर इनके बूते ही ट्रक चलाते थे। हर वक्त उनके अड्डों पर डेरा लगा रहता।
खचेडू ने जमीला को अपने पास रख लिया। रोज वह तांगे में बैठ अपने अड्डे पर आता। घोड़े के पैर में बंधे घुँघरूओं की आवाज़ से दूर से ही पता चल जाता खचेडू आ रहा है।
पर कुछ ही दिनों में जमीला का कत्ल हो गया। उसके किसी पुराने दोस्त ने उसे मार दिया। इल्जाम खचेडू के सिर लगा और वह जेल चला गया। खचेडू को यही लगा कि कत्ल तो गुरांदित्ता ने करवाया पर फंसा उसे दिया।
इस तरह उनकी दुश्मनी बढ़ती गई।
जितने दिन खचेडू जेल में रहा गुरांदित्ता से बदला लेने के लिए तड़पता रहा।
यह खबर गुरांदित्ता के पास भी पहुंच चुकी थी।
कई दिन सुख शांति रही। रोज मंडी का शोर वैसे ही शुरू होता और खत्म हो जाता।
एक दिन थानेदार आया और उसने गुरांदित्ता को बताया तुम्हारे इलाके में चोरी हुई है। चोर को हाज़िर करना ज़रूरी है क्योंकि चोरी सेठ धन्नुशाह के यहां हुई है। उसकी पहुंच ऊपर तक है। शाह ने खचेडू के आदमी का नाम लिखवाया है। पकड़ तो हम भी लें पर आपका हुक्म है कि आपके इलाके में कुछ भी हो पहले आपको बताऊं।
गुरांदित्ता गुस्से से भर गया। “यह तो फिर शेर के मुंह में हाथ डालने वाली बात है थानेदार। गुरांदित्ता के इलाके में चोरी और वह भी जान बूझ कर?..तू बैठ थानेदार दूध पी। चोर को कल पहुंचा दूंगा।”
थानेदार खुश होकर लौट गया।
गुरांदित्ता ने अपने दो आदमी बुलवाये और खचेडू के अड्डे पर भेजे यह ताकीद करने के लिए कि खचेडू अपनी हद में रहे और वह गुरांदित्ता के इलाके में चोरी करने वालों को उसके हवाले कर दे।
पर साथ ही खबर आ गई कि खचेडू ने दिखावे के तौर पर उनमें से एक की बाजू काट दी है। गुरादित्ता को आग लग गई “उसकी ये हिम्मत?… गुरांदित्ता पूरे जोर से दहाड़ा।
गुस्से में उसने अपनी पिस्तौल निकाल कर हवा में ही फायर करने शुरू कर दिए। गेले को बुलाकर अपने आदमी इकट्ठे करके उन्हें खचेडू के अड्डे पर टूट पड़ने को कहा। “आज उस हरामी का काम ही खत्म कर दो। आज झगड़ा ही खत्म कर दूंगा। कसम उस सांई की।
उसका काम तो उसी दिन खत्म कर देना था जब उसने जमीला को उठाकर मेरी नाक कटवा दी थी। उठो जवानो, आज देखता हूं तुम्हारी बाजुएं कितनी फड़कती हैं।
उधर खचेडू के अड्डे पर भी खबर लग गई। वह पहले से ही तैयारी करके बैठा था। उसने भी कुछ कारतूस खरीद लिए थे। उसको पता था कि गुरांदित्ता के पास पक्की राइफल है।
उन्होंने जब गुरांदित्ता के आदमी देखे तो दोनों तरफ के आदमी एक दूसरे पर टूट पड़े।
मोर्चे बनाकर गोलियां तो चलीं पर जल्दी ही खत्म हो गईं।
गेले ने मशाल में मिट्टी का तेल डाला और आग लगाकर खचेडू के आदमियों की तरफ जोर से फेंकी। वह मशाल घास फूस पर जा गिरी और आग लग गई।
खचेडू के आदमी बाहर निकलने शुरू हो गए।
गेले ने भी अपने आदमियों को आगे आने और उन पर टूट पड़ने के लिए कहा।
दोनों तरफ के लोग गुत्थम गुत्था हो गए। जिनके पास किरपानें थी वह किरपानों के साथ लड़ रहे थे और बरछों वाले बरछों के साथ। बाकी हाथापाई कर रहे थे।
सब्जी मंडी के आस पास के लोग चौबारों पर चढ़कर यह सब कुछ देख रहे थे। ट्रक तो वहीं जाम हो गए थे। हवा जैसे रुक गई हो। देखने वाले सांस रोक कर यह लड़ाई देख रहे थे। सूरज को जैसे काली बदली ने घेर लिया हो। पक्षी भी चुपचाप वृक्षों पर यह लड़ाई देख रहे थे। पूरे इलाके में उनकी लड़ाई की आवाजें गूंज रही थी। बाकी सब कुछ जैसे रुक गया था।।
खचेडू और गुरांदित्ता की कई बार पहले भी लड़ाई हुई थी। पर आज जैसे कभी नहीं। खचेडू और उसके आदमी सिर पर कफन बांधे आए थे।
वह गुरांदित्ता के आदमियों पर यूं पड़ते जैसे उन्होंने बस आज ही जीना हो। लड़ते-लड़ते कई लोगों को बरछे लगे। कई किरपानों से जख्मी हो गये। पर दोनों तरफ से कोई भी हिम्मत नहीं छोड़ रहा था।
आखिर गुरांदित्ता और खचेडू का सामना हो गया।
गुरांदित्ता ने खचेडू पर गोलियां दागनी शुरू कर दी। वह पतले शरीर का होने के कारण फुर्ती से स्थान बदल जाता और गोली एक तरफ से गुजर जाती।
वैसे भी गुरांदित्ता गोलियां चलाने में माहिर नहीं था। उसको तो अपनी बाजुओं पर ही अधिक मान था।
जब गोलियां खत्म हो गईं तो गुरांदित्ता ने खचेडू को बाहों में कस लिया। भारी शरीर और मजबूत हड्डियों ने खचेडू को यूं कसा जैसे बटेर पकड़ी हो।
खचेडू का शरीर हल्का था। पर था वह भी बड़ा मजबूत। हल्का शरीर होने के कारण वह फुर्तीला भी बड़ा था। उसने पैर की एड़ी से गुरांदित्ता के गुप्तांग पर चोट की। वह कराह उठा। खचेडू उसकी पकड़ से निकल गया।
खचेडू ने एक और चोट मारी और ललकार कर कहा “आज वो बाप का बेटा नहीं जो एक दूसरे के जीते जी लड़ाई बंद कर दे। …वह खड़ा चोर जिसने तेरे इलाके में चोरी की और वह भी मेरे कहने पर। तुझे ललकारता ना तो यह नजारा कहां होना था… असल बाप का बेटा है तो हाथ लगा कर दिखा इसको…।”
गुरांदित्ता दर्द से कराह रहा था। पर खचेडू की ललकार ने उसमें इतना जोश भर दिया कि हवा में उछल कर उसने खचेडू के लात मारी।
खचेडू जमीन पर जा गिरा।
गुरांदित्ता ने उसे दाएं पैर से पूरे जोर के साथ एक और ठोकर मारी।
खचेडू की आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
गुरांदित्ता के हाथ बरछा आ गया। उसने हवा में लहराते खचेडू पर वार किया। फिर एक बार उसी बरछे को बाहर निकाला तो खचेडू की छाती लहूलुहान हो गई।
खचेडू तड़प रहा था।
गुरांदित्ता ने एक बार वही लहू से भरा बरछा खचेडू की गर्दन के बीच से पार कर दिया। वह वहीं ढेर हो गया।
यह देख वह चोर भागने लगा।
गुरांदित्ता ने वही बरछा खचेडू की गर्दन से निकाल हवा में ही जोर से फेंका। बरछा उस चोर की टांग में लगा। वह गिर पड़ा।
खचेडू के मरने की खबर ने उसके आदमियों के हौंसले तोड़ दिए। बुझे हुए दिल के साथ उन्होंने मरने के बजाय समर्पण करना ही मुनासिब समझा।
लड़ाई बंद हो गई। कई मरे। काफी जख्मी हो गये।
गुरांदित्ता ने खचेडू के आदमियों को अपनी शरण में ले लिया। जख्मियों के लिए दवाई मरहमपट्टी का इन्तजाम करवाया और कहा कि जब तक वह बाहर न आये वह गेले के अधीन काम करें।
गेले को सारा काम संभाल कर वह उस चोर को थाने ले जा रहा था।
थानेदार रास्ते में ही मिल गया। उसने उस चोर और अपने आपको उसके हवाले कर दिया। उसने हंसते-हंसते अपने आपको थानेदार के हवाले किया, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
जब थानेदार उनको थाने ले जाने लगा तो गुरांदित्ता ने कहा “थानेदार तेरा काम तो खत्म हुआ। कचहरी से पहले मेरे यार संसार के पास ले चल मुझे।” थानेदार गुरांदित्ता की बहुत कद्र करता था। उसको पता था कि वह उसूलों का पक्का और सही आदमी है। कचहरी जाने से पहले वह गुरांदित्ता को उसके दोस्त के पास ले गया।
चलते समय गुरांदित्ता ने खासे शराब की वे बोतलें भी उठवा लीं और संसारचंद के घर वह उससे गले बाहें डालकर मिला। हथकड़ियां देख कर संसारचंद हैरान था। गुरांदित्ता कहने लगा, “आ संसारे बड़ा मन सी तेरी पढ़ाकू दीआं गल्लां सुणन दा ओए। पर एह थाना लथ्थ वंझिआ। कुझ कत्ल जिहे हो गए मैथों। ऐ लै फड़!… हुण तूं कल्ले ही पीवीं। अपणी दोस्ती दे नां। फिर मिलसां। मुड़ दस्सी कद आसैं।” गुरांदित्ता ने बोतलें संसारचंद को थमा दीं।।
संसारचंद यह सब देख हैरान था और उसने गुरांदित्ता को हौंसला देने की कोशिश की और कहा, “फिक्र ना करीं भापे। मैं तेरा मुकदमा लडूंगा और जीत कर आऊँगा।
उसकी दलीलें देख गुरांदित्ता मुसकरा रहा था और मन ही मन कह रहा था कि गुरांदित्ता तो अपनी अदालत खुद लगाता है। नहीं तो उसके हाथ में हथकड़ी न होती। इससे पहले कि संसार चंद कुछ और कहता वह थानेदार को खींच चल पड़ा।
संसार चंद बोतलें हाथ में पकड़े उनको तब तक देखता रहा जब तक वह आंखों से ओझल न हो गया।