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जब तक अनुकूल, तब तक सुख: Spiritual Thoughts

06:00 AM Apr 07, 2024 IST | Srishti Mishra
जब तक अनुकूल  तब तक सुख  spiritual thoughts
Spiritual Thoughts
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Spiritual Thoughts: हर कोई एक दूसरे को दबाने की, चेष्टा में है कि जब तक दबा रहेगा तब तक मेरे अनुकूल रहेगा, जब तक मेरे अनुकूल रहेगा, तब तक मेरा सुख इसमें बना रहेगा। संसार में सुख दिखता है, इसलिए सुख की कल्पना हमेशा ही बनी रहती है। संसार में सुख दूर से सदा दिखता रहता है कि वो मिला, वो मिला, किस विषय में? जिस विषय के प्रति हमारा मन चंचल हुआ कि ये मिलेगा तो हमें सुख होगा, अब कल्पना है कि दिख रही है, दिख रही है पर जब मिली तो मालूम हुआ तो इसमें तो सुख...। तो संसार मे सुख प्रतीत होता है इसलिए है, पर वास्तव मे अंदर से आया, आनंद स्वरूप से आया, इसलिए नहीं है। तो है भी और...।
हर कोई एक दूसरे को दबाने की, चेष्टा में है कि जब तक दबा रहेगा तब तक मेरे अनुकूल रहेगा, जब तक मेरे अनुकूल रहेगा, तब तक मेरा सुख इसमें बना रहेगा।

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बच्चा स्कूल गया था, शाम हो गई वो स्कूल से वापिस नहीं आया। अब बहुत देर तक इंतजार करने पर माता सोचती है कि स्कूल ही चली जाऊं, वहीं जाकर पता करूं, क्या बात है? रिक्शा किया, स्कूल गई, वहां जाकर मालूम हुआ कि छुट्टी हो गई है। अब लगी चिंता होने कि मेरा बच्चा कहां गया? सब यहां वहां दोस्तों से पूछा। पता लगा सब दोस्त तो घर में हैं, पर मेरा बच्चा नहीं है। बड़ी परेशान हुई, घबराई, घरवालों को फोन किया कि बच्चा तो मिल नहीं रहा, स्कूल गया था आया नहीं वापस। मां का दिल तो वैसे भी नर्म होता है, वो डरे, भयभीत हो, कांपे, भागी-भागी फिर रही है। इतने में कोई आया कि सुनो जी आपका लड़का क्या घर में है? बोले नहीं तो क्या हुआ? कहा, फलाने स्कूल के चार बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद बगीचे में जा रहे थे, चलती हुई ट्रक ने आकर टक्कर मार दी। जैसे सुना तो भागी तो क्या देखा? वहां भीड़ लगी है, भीड़ को चीर के अन्दर जाती है तो एक खून से लथपथ पड़ा है, दूसरा कराह रहा है, दो बच्चे उनको चोट कम लगी है।

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जाकर मुंह उठाकर देखती है यह तो मेरा नहीं है। इतने में नजर उठाकर देखी सामने तो वही बगीचे में उसका लड़का खेल रहा था। दौड़कर गई, सीने से चिपटा लिया मां का सुख लग रहा है है कि नहीं लग रहा है, फिर साथ ही ध्यान आ गया कि ये स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे घर नहीं आया, और मुझे कितनी परेशानी उठानी पड़ी। अब लगी डांटने बच्चे को, तुम्हें मालूम नहीं है, मैं कितनी परेशान हूं। कहां चले गए थे तुम? थोड़ी देर तक तो सुनता रहा बच्चा, फिर कहा, मम्मी तू बहुत बोलती है, मैं डैडी से बोलूंगा। जब बच्चे ने ऐसा बोला तो मां को बुरा लगा कि एक तो गलती करता है और सॉरी बोलने के बजाय मुझे ही बुरा भला कह रहा है, एक थप्पड़ लगाया मुंह पर, मुंह फेर ऐसे ही। बच्चे ने अब सुख लग रहा है? कब तक सुख लगा? जब तक अनुकूल था।

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