प्रीनैटनल इंफेक्शंस टेस्टिंग का महत्व: Pre Natal Infection Test
Pre Natal Infection Test: मातृ मृत्युदर दुनियाभर में चिंता का एक बड़ा कारण है। 2020 में, करीब 287,000 महिलाओं की मृत्यु प्रेग्नेंसी के दौरान और बाद में या प्रसव में हुई थी। ऐसी करीब 75% मौतों का कारण प्रसव के दौरान ब्लीडिंग, प्रीनैटल इंफेक्शन, और प्री-एक्लेम्पसिया होता है। दरअसल, प्रीनैटल इंफेक्शंस के कारण न सिर्फ मां की सेहत पर असर पड़ता है बल्कि उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी नुकसान पहुंचता है और कई बार यह गर्भ में ही भ्रूण की मृत्यु, प्रीटर्म बर्थ, तथा जन्मजात विकारों का कारण भी बनता है।
महिलाओं को ये इंफेक्शन यौन-संसर्ग, ब्लड ट्रांसमिशन, संक्रमित लोगों की त्वचा के संपर्क में आने और दूषित खान-पान की वजह से होते हैं। इम्यून सिस्टम में बदलाव, स्ट्रैस, हार्मोनल उतार-चढ़ाव और माइक्रोबायोलॉजिकल फ्लोरा की वजह से भी प्रेग्नेंसी के दौरान इंफेक्शंस पर असर पड़ता है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती महीनों में इनका पता लगाना और इलाज करना महत्वपूर्ण होता है जिससे प्रेग्नेंसी तथा प्रसव के दौरान इन इंफेक्शंस से बचाव किया जा सके।
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प्रीनैटल इंफेक्शन (Pre Natal Infection Test) आमतौर से बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और पैरासाइट्स की वजह से होते हैं। इनमें सबसे आम हैं हेपेटाइटिस बी, सिफलिस और इंफेक्शंस का ग्रुप –TORCH, जिसमें टॉक्सोप्लाज़्मा, अन्य इंफेक्शन (जैसे एचआईवी, पर्वोवायरस बी-19, वेरीसेला, ज़िका), रूबैला, साइटोमेगलोवायरस तथा हर्पीज़ सिंप्लैक्स शामिल हैं। ये इंफेक्शन गर्भवती मां के गर्भनाल (प्लेसेंटा) के जरिए प्रसव के दौरान शिशु को प्रभावित करते हैं, और कई बार स्तन के दूध के माध्यम से भी शिशु तक पहुंचते हैं।
Pre Natal Infection Test के लक्षण इंफेक्शन पैदा करने वाले रोगाणुओं पर निर्भर हैं। हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान इंफेक्शन के ज्यादातर लक्षणों के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता और यही वजह है कि प्रसवपूर्व जांच के दौरान इन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है।
डॉ पूजा त्रेहन, ज़ोनल चीफ ऑफ लैब्स – उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड, मैट्रोपोलिस हैल्थकेयर लिमिटेड, के अनुसार Pre Natal Infection Test इंफेक्शंस का पता लगाने के लिए किए जाने वाले कुछ टैस्ट रूटीन एंटीनैटल जांच का हिस्सा होते हैं, लेकिन कुछ की सलाह प्रेग्नेंट महिला की मेडिकल हिस्ट्री और लक्षणों को ध्यान में रखकर दी जाती है। लेकिन कुछ टैस्ट जैसे रूटीन ब्लड काउंट, यूरिन रूटीन टैस्ट/कल्चर और वायरल मार्कर टैस्ट – हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी करवाने की सलाह सभी प्रेग्नेंट महिलाओं को दी जानी चाहिए, भले ही उनकी मेडिकल हिस्ट्री, लक्षण और रिस्क फैक्टर्स कुछ भी क्यों न हों। TORCH इंफेक्शंस का पता लगाने वाले टेस्ट हाइ रिस्क प्रेग्नेंसी, बार-बार गर्भपात या अल्ट्रासाउंड स्कैन में भ्रूण में किसी प्रकार की असामान्यता दिखायी देने पर करवाए जाने चाहिए।
इन इंफेक्शंस से बचने का सबसे आसान और कारगर तरीका होता है इन्हें पैदा करने वाले रोगाणुओं के संपर्क में आने से बचना। इसलिए रिस्क को कम करने के लिए संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग से बचना, सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूज़न और प्रेग्नेंसी के दौरान जहां तक मुमकिन हो, कुछ खास तरह के रोगों वाले इलाकों में ट्रैवल से बचना चाहिए। इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि रोगाणुओं की प्रकृति कैसी है और कई बार दवाओं के सेवन से ही मरीज ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी मेडिकल प्रक्रियाओं की जरूरत होती है या डिलीवरी का विकल्प बदलने की जरूरत होती है। कुछ दुर्लभ मामलों में, गर्भपात करवाने की जरूरत भी हो सकती है।
अब ग्लोबलाइज़ेशन के बढ़ते दौर में, कुछ ही घंटों में रोगाणुओं के एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने की संभावना काफी बढ़ गई है और ऐसे में इंफेक्शन फैलने का रिस्क भी बढ़ चुका है। हाल में, कोविड-19 महामारी इस बात का ही उदाहरण है और फिलहाल मां तथा भ्रूण पर इसके असर के बारे में रिसर्च चल रही है। प्रेग्नेंसी के दौरान, समय पर इन इंफेक्शंस का पता लगाकर मातृ मृत्युदर को रोका जा सकता है, प्रेग्नेंसी को बचाया जा सकता है और साथ ही, नवजातों में भी जन्मजात विकारों की आशंका को कम किया जा सकता है।