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जानिए कितना खतरनाक है आईबीडी, कैसे करें इसकी पहचान और क्या है इलाज: Inflammatory Bowel Disease

02:58 PM Apr 20, 2024 IST | Anuradha Jain
जानिए कितना खतरनाक है आईबीडी  कैसे करें इसकी पहचान और क्या है इलाज  inflammatory bowel disease
Inflammatory Bowel Disease
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Inflammatory Bowel Disease: इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज जिसे आईबीडी, सूजन आंत्र रोग और आंतों में सूजन जैसे कई नामों से जाना जाता है। ये रोग आंतों में लंबे समय तक सूजन और दर्द का कारण बनता है। चलिए जानते हैं, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के पार्ट-2 में आईबीडी कितना खतरनाक हो सकता है, साथ ही इसके लिए कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं और इसके लिए कौन सी दवाओं और इलाज की जरूरत होती है।

आईबीडी के कारण होने वाली समस्याएं

आईबीडी के प्रकार अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग होने पर हर व्यक्ति को कुछ ना कुछ जटिलताएं या समस्याएं होना सामान्य बात है। चलिए जानते हैं आईबीडी के कारण होने वाली समस्याएं कौन सी हैं।

पेट का कैंसर: इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज कोलन के अधिकांश हिस्से को प्रभावित करती है जिससे कोलन कैंसर के होने का खतरा बढ़ सकता है। सूजन आंत्र रोग का निदान होने पर नियमित अंतराल पर कोलोनोस्कोपी से कैंसर की जांच 8 से 10 साल डॉक्टर की सलाह पर करवाने की आवश्यकता होती है।

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त्वचा, आंख और जोड़ों में सूजन: आईबीडी ट्रिगर होने पर गठिया (जोड़ों में सूजन), त्वचा पर घाव या सूजन, लीवर और किडनी के विकार या हड्डियों का कमजोर होना और आंखों की सूजन जिसे यूवाइटिस भी कहते हैं, जैसे कई डिसऑर्डर हो सकते हैं।

आईबीडी दवाओं के साइड इफेक्ट: आईबीडी के इलाज के लिए ली जाने वाली कुछ दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इन साइड इफेक्ट्स में कई तरह के कैंसर सेल्स विकसित होने का जोखिम होता है। इसके अलावा कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स ऑस्टियोपोरोसिस, हाई ब्लड प्रेशर और अन्य स्थितियों के होने का खतरी भी बनी रहता है।

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स्केलेरोसिंग कोलिन्जाइटिस: आईबीडी होने पर कुछ लोगों को स्केलेरोसिंग कोलिन्जाइटिस भी हो सकता है। इस स्थिति में, सूजन के कारण पित्त नलिकाओं के अंदर घाव हो जाते हैं। यह घाव पित्त नलिकाओं को संकीर्ण कर देता है, जिससे पित्त के सर्कुलेशन में रूकावट आने लगती है और इससे लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है।

ब्लड क्लॉटिंग : आईबीडी होने पर नसों और आर्टरीज में ब्लड क्लॉटिंग होने का खतरा बढ़ जाता है।

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डिहाइड्रेशन: आईबीडी के लक्षणों में से एक लक्षण बहुत ज्यादा दस्त होना है। इस वजह से गंभीर स्तर पर डिहाइड्रेशन हो सकता है।

आईबीडी के गंभीर मामलों में गुर्दे की पथरी, ऑस्टियोपोरोसिस और सदमा तक लग सकता है।

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आईबीडी के क्रोहन रोग के कारण होने वाली समस्याएं

Inflammatory Bowel Disease
Inflammatory Bowel Disease

बाउल ऑब्स्ट्रक्शन: क्रोहन रोग आंतों की दीवार की मोटाई को बहुत अधिक प्रभावित करता है। समय के साथ, आंत के हिस्से मोटे और संकीर्ण हो सकते हैं, जो पाचन सामग्री के प्रवाह में रूकावट पैदा कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में आंत के रोगग्रस्त हिस्से को हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

मालन्यूट्रिशन: क्रोहन रोग के कारण दस्त, पेट दर्द और ऐंठन बहुत अधिक देखने को मिलती है। ऐसे में मरीज के लिए खाना खाना या आंतों को पोषित रखने के लिए पर्याप्त पोषक तत्वों को अवशोषित करना मुश्किल हो सकता है। इस वजह से आयरन या विटामिन बी-12 की कमी हो सकती है। नतीजन, एनीमिया भी विकसित हो सकता है।

फिस्टुला: ये स्थिति शरीर के उन हिस्सों के बीच एक खुला स्थान होती है जो आपस में जुड़े नहीं होते। आमतौर पर, फिस्टुला शरीर के किसी क्षेत्र में कैंसर के बढ़ने के कारण हो सकता है। आईबीडी होने पर कभी-कभी सूजन आंतों की दीवार के माध्यम से पूरी तरह से फैल सकती है, जिससे फिस्टुला बन जाता है। एनस या इसके आसपास फिस्टुला सबसे अधिक विकसित होता है। लेकिन ये आंतरिक रूप से या पेट क्षेत्र की दीवार की ओर भी हो सकते हैं।

एनल फिशर: यह टिश्यूज में एक छोटा सा चीरा होता है जो गुदा की रेखाओं या एनस के आसपास की त्वचा में होता है जहां भी संक्रमण हो सकता है। इस वजह से अक्सर दर्दनाक मल त्याग की समस्या भी हो जाती है। और ये फिस्टुला का कारण बन सकता है।

आईबीडी के अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण होने वाली समस्याएं

टॉक्सिक मेगाकोलन: अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण कोलन तेजी से चौड़ा और सूज सकता है। ये एक गंभीर स्थिति होती है जिसे टॉक्सिक मेगाकोलोन के रूप में जाना जाता है।

परफोरेटेड कोलन: कोलन में एक छेद आमतौर पर जहरीले मेगाकोलन के कारण होता है, लेकिन यह अपने आप भी हो सकता है।

आईबीडी का निदान

सूजन आंत्र रोग का निदान करने के लिए, डॉक्टर लक्षणों के बारे में पूछेगा। इसके बाद ही डॉक्टर कुछ टेस्ट लिखता है। जैसे -

  • आंतों की सूजन के लक्षणों को देखने के लिए कंप्लीट सीबीसी ब्लड टेस्ट और स्टूल टेस्ट करवाएं जा सकते हैं।
  • बड़ी और छोटी आंतों की जांच के लिए कोलोनोस्कोपी की सलाह दी जा सकती है।
  • सूजन और अल्सर के लिए पाचन तंत्र की जांच करने के लिए ईयूएस (एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड) करवाया जा सकता है।
  • रेक्टम और एनस के अंदर की जांच करने के लिए फ्लेक्सिबल सिग्मायोडोस्कोपी की सलाह दी जा सकती है।
  • सूजन या फोड़े के लक्षणों की जांच के लिए इमेजिंग स्कैन, जैसे सीटी स्कैन या एमआरआई करवाएं जा सकते हैं।
  • मुंह से छोटी आंत की शुरुआत तक, पाचन तंत्र की जांच करने के लिए अपर एंडोस्कोपी करवाने की सलाह दी जा सकती है।
  • आईबीडी कितना गंभीर है, यह देखने के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स, प्रोटीन और ईएसआर और सीआरपी टेस्ट करवाए जा सकते हैं।
  • छोटी आंत में बीमारी का निदान करने के लिए कैप्सूल एंडोस्कोपी टेस्ट करवाने की सलाह दी जा सकती है।

आईबीडी का इलाज

आईबीडी का टीट्रमेंट इसके लक्षणों के आधार पर अलग-अलग होता है। दवाएं सूजन को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं। लेकिन डीवाई पाटिल की डॉ. आस्था सिंघल का कहना है कि सिर्फ लाइफस्टाइल और खानपान में बदलाव करने के साथ ही सक्रिय जीवनशैली अपनाकर आईबीडी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आईबीडी के इलाज के लिए कुछ दवाएं भी हैं। जैसे -

  • अमीनोसैलिसिलेट्स एक एंटी-इंफ्लेमेट्री दवा है, जो आंतों में जलन को कम करती है।
  • एंटीबायोटिक्स संक्रमण और फोड़े का इलाज करते हैं।
  • बायोलॉजिक्स इम्यून सिस्टम सूजन का कारकों को नष्ट करने में मदद करता है।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स, जैसे कि प्रेडनिसोन, इम्यून सिस्टम और फ्लेयर्स को को कंट्रोल रखते हैं
  • इम्यूनोमॉड्यूलेटर्स ओवरएक्टिव इम्यून सिस्टम को कूल करते हैं।
  • ओवर-द-काउंटर आईबीडी के इलाज के लिए कुछ दवाएं मौजूद हैं। जैसे - एंटी-डायरियल मेडिसीन, नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (एनएसएआईडी) और प्रोबायोटिक्स।

यदि दवाएं काम करना बंद कर देती हैं तो गंभीर मामलों में डॉक्टर सर्जरी की सलाह भी देते हैं।

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