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लैक्टेशन फेलियर से बचना है, तो ज्यादा से ज्यादा कराएं स्तनपान: Lactation Failure

07:00 PM Aug 02, 2023 IST | Rajni Arora
लैक्टेशन फेलियर से बचना है  तो ज्यादा से ज्यादा कराएं स्तनपान  lactation failure
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Lactation Failure: नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान अमूल्य और दुनिया का सर्वोत्तम आहार है। शिशु के स्वस्थ जीवन का आधार है। वैज्ञानिकों ने तो मां के दूध में पाए जाने वाले पोषक और एंटीऑक्सीडेंट तत्वों की वजह से इसे ’फर्स्ट वैक्सीन’ का दर्जा भी दिया है। ब्रेस्टमिल्क शिशु का शारीरिक-मानसिक विकास ही नहीं करता बल्कि इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शिशु को कम से कम जीवन के पहले 6 महीने तक स्तनपान जरूर कराने की सिफरिश की है। जिसे 2 साल तक जारी रखा जा सकता है। जच्चा-बच्चा दोनों को फिट और हैल्दी रखने में सहायक माना जाता है।

क्यों होता है लैक्टेशन फेलियर

Lactation Failure
Lactation Failure

कई माएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती हैं जिससे बच्चा चिड़चिड़ा या बीमार रहने लगता है। इसके पीछे चाहे मां का स्वास्थ्य ठीक न रहना, शिशु को स्तनपान न करा पाना जैसे व्यक्तिगत और कई सामाजिक कारण हो सकते हैं। इससे स्तनों में दूध की सप्लाई रुक जाती है, दूध कम मात्रा में बनने लगता है और ध्यान न दिए जाने पर उतरना बंद हो जाता है। इस स्थिति को ‘लैक्टेशन फैल्योर‘ कहा जाता है। शिशु मां के दूध से वंचित रह जाता है और उसे जन्म से ही फार्मूला मिल्क या गाय के दूध पर निर्भर रहना पड़ता है।

लैक्टेशन फेलियर के कारण

कई स्थितियों या सामाजिक मान्यताओं के चलते नवजात शिशु को मां से दूर रखा जाता है या देर से स्तनपान कराने के लिए दिया जाता है। इससे स्तन को स्टीमुलेशन कम मिलने से दूध कम बनता है और शिशु ठीक से स्तनपान नहीं कर पाता।

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  • कई बार सिजेरियन होने, डिलीवरी के दौरान बेहोश होने या बेइंतहा ब्लीडिंग होने से मां को आईसीयू में रहना पड़ता है। या फिर प्री-मैच्योर बेबी होने या कोई प्राॅब्लम होने के कारण शिशु को कुछ टाइम के लिए नर्सरी में रखा जाता है।  
  • डिलीवरी के बाद कम मात्रा में बनने वाले गाढ़े पीले कोलस्ट्रम दूध को नवजात के लिए अपर्याप्त मानते हैं। शिशु को बोतल या कटोरी-चम्मच से टाॅप डाइट जैसे फार्मूलेटिड डिब्बाबंद मिल्क या गाय का दूध देते है। इससे बच्चे की भूख खत्म हो जाती है और वह मां का दूध नहीं पी पाता।  
  • कई परिवारों में नवजात शिशु को शहद या पानी में घुली मिश्री चटाने के चलन होता है। इससे शिशु की भूख कम हो जाती है और वो मां का दूध नहीं पी पाता। 
  • टांकों में दर्द होने की वजह से मां स्तनपान नहीं करा पाती जिससे दूध में कमी आ जाती है।
  • स्तन पर किसी तरह की चोट लगने या क्रेक हों तो ब्रेस्ट-निप्पल या दूध सप्लाई वाली वेन्स को नुकसान पहुंच सकता है और शिशु को दूध पिलाने में दिक्कत आ सकती है।  जल्द उपचार न किया जाए, तो दूध उत्पादन प्रभावित होता है।
  • फ्लैट निप्पल या निप्पल रिट्रेक्शन की वजह से कई बार शिशु ठीक से दूध नहीं पी पाता और दूध कम होने लगता है। 
  • शिशु के तालू में छेद होने के कारण दूध नाक में चला जाता है और उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। वह ब्रेस्ट से दूध पीना छोड़ देता है।  
  • गर्भवती महिला की पिट्यूटरी ग्लैंड में मौजूद हार्मोन में गड़बड़ी भी मुख्य कारण है। ब्रेन में मौजूद पिट्यूटरी ग्लैंड में प्रालैक्टिन हार्मोन दूध बनाने और ऑक्सीटोसिन हार्मोन दूध निकालने में मदद करता है। इन हार्मोन में असंतुलन होने पर दूध कम मात्रा में बनता है और मां को स्तनपान कराने में दिक्कत होती है।
  • कुछ महिलाएं मानसिक तनाव, डिप्रेशन, फीगर कांशियस होने की वजह से शिशु को स्तनपान कराने से कतराती हैं। ठीक से न पिलाने पर स्तनों में दूध बनना धीरे-धीरे कम हो जाता है।
  • मां को अगर कैंसर, हार्ट, किडनी, हाइपो-थाॅयराइड जैसी गंभीर बीमारी है और वह मेडिसिन ले रही हैं तो दूध उत्पादन प्रभावित होता है।  
  • गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल से महिलाओं में स्तनपान के लेवल में गिरावट आती है क्योंकि इनमें मौजूद एस्ट्रोजन हार्मोन ब्रेस्टमिल्क बनाने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।  
  • डिलीवरी के बाद मां को पेट फूलने के डर से पानी कम पीने के लिए दिया जाता है, जिसकी वजह से महिला को डिहाइड्रेशन की संभावना रहती है। ये कारण भी दूध उत्पादन और प्रवाह में भी बाधा बनता है।
  •  संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन न कर पाने का असर दूध उत्पादन पर पड़ता है।

लैक्टेशन फेलियर से ऐसे करें बचाव 

Lactation Failure
Lactation Failure

मां का दूध ईश्वरीय वरदान है जो बच्चे के जन्म लेने से पहले ही शुरू हो जाती है। लेकिन स्तनों में दूध तभी उतरता है, जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है।  डाॅक्टर मानते हैं कि बच्चे का स्पर्श स्तनपान प्रक्रिया में जादुई काम करता है। मां के हार्मोन्स सक्रिय और और दूध बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती  है। जरूरी है कि नवजात शिशु को जन्म के बाद मां की बगल में ब्रेस्ट के पास लिटाया जाए। बच्चा जितना ज्यादा दूध पीता है,  उतनी अधिक मात्रा में दूध उतरता है।  यानी शिशु की भूख और स्तनपान कराने के अनुसार दूध बनता है जो समय पर स्तनपान न कराने पर कम होने लगता है।

लें दूसरों की मदद

डिलीवरी के बाद जरूरी है कि मां को घर के कामों के लिए परिवार के सदस्यों की मदद लेनी चाहिए।शिशु को स्तनपात कराना या ज्यादा से ज्यादा शिशु संबंधी काम ही करने चाहिए। इससे मां आराम मिलने से वह शिशु को आराम से ब्रेस्ट फीड करा सकेगी।

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ज्यादा अंतराल न आने दें

डाॅक्टर मानते हैं कि अच्छा यही है कि बच्चे को तभी दूध पिलाना चाहिए, जब वो मांगे। लेकिन स्तनपान कराने में 3-4 घंटे से ज्यादा का गैप नहीं रखना चाहिए। यहां तक कि अगर बच्चा सो रहा हो, तो उसे उठा कर दूध पिलाना बेहतर है।

रखें हाइजीन का ध्यान

महिला को कोशिश करना चाहिए कि दोनों स्तनों से दूध पिलाए। इससे पहले गर्म पानी से भीगे टाॅवल या रुमाल से अपने स्तन और निप्पल को साफ करना चाहिए ताकि किसी तरह के इंफेक्शन का खतरा न हो। साथ ही महिला को अपने स्तन को हल्के हाथ से मसाज करनी चाहिए। ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने से स्तन में दूध का फ्लो अच्छा होगा। दूध पिलाने के बाद भी गीले कपड़े से पौंछ लें। क्रैक निप्पल की समस्या हो, तो माॅश्चराइजर, क्रीम या ऑयल की मसाज करनी चाहिए।

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ब्रेस्ट पंप का करें इस्तेमाल

अगर बच्चा नर्सरी में एडमिट है और उसे मां के पास नहीं लाया जा सकता। ऐसी स्थिति में ब्रेस्ट पंप मां के लिए उपयोगी साबित होता है। ब्रेस्ट पंप इलेक्ट्रिक या मैनुअल कोई भी हो सकता है जिसकी मदद से मां का दूध 8-10 घंटे के लिए स्टोर कर लिया जाता है और शिशु को दिया जा सकता है। यह दूध बढ़ोतरी में भी कारगर है। मां को दिन में कम से कम 6-7 बार ब्रेस्ट पंप से दूध निकालना चाहिए।

सिजेरियन के बाद दूध पिलाने में लें दूसरों की मदद

cesarean
cesarean

सिजेरियन डिलीवरी के केस में जब मां को दो दिन तक रेस्ट करने को कहा जाता है। ड्रिप या कैथेटर लगे होने, टांकों में दर्द की वजह से ठीक से बैठ भी नहीं पाती। ऐसी स्थिति में मां को नर्स या परिवार के सदस्यों की मदद लेनी चाहिए। बच्चे को लेटे-लेटे या ब्रेस्ट पंप से दूध निकाल कर दूध जरूर पिलाना चाहिए।

लैक्टेशन काउंसलिंग है जरूरी

फीगर बिगड़ने के डर की वजह से स्तनपान कराने से कतराने वाली महिलाओं को लैक्टेशन काउंसलिंग करके समझाया जाता है। जैसे-

  • स्तनपान से रोजाना 300-600 कैलोरी बर्न हो सकती हैं और गर्भावस्था में बढ़े हुए वजन को आसानी से काबू पाया जा सकता है। शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन के स्राव को बढ़ावा मिलता है जिससे यूटरस और शरीर पुनः उसी अवस्था में आ जाते हैं।
  • ब्रेस्ट की शेप बच्चे को गलत पाॅश्चर में बैठकर दूध पिलाने से होती है। बैड पर आलती-पालती मार कर दूध पिलाने के बजाय कुर्सी पर बिल्कुल सीधे बैठ कर स्तनपान कराना चाहिए। आगे झुकने के बजाय कुर्सी से पूरी तरह टेक लगाकर बैठना चाहिए। शिशु कोबांहों में उठा कर ब्रेस्ट लेवल तक लाना चाहिए। लेट कर दूध पिलाते हुए तकिये को सिर के नीचे रख कर गर्दन को सपोर्ट दें। ध्यान रखें कि स्तनपान कराते हुए बच्चे की नाक ब्रेस्ट से न दबे। सांस लेने में दिक्कत होने पर दूध पीना छोड़ सकता है।
  • परिवार नियोजन का प्राकृतिक उपाय है। नियमित स्तनपान कराने पर महिलाओं में मासिक धर्म चक्र देर से होता है जिससे उनमें गर्भधारण की संभावना कम रहती है। 
  • स्तनपान से मां को गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव, मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं से निजात मिलती है। डिलीवरी के बाद मां का मेटाबाॅलिज्म रिसेट हो जाता है। उसके शरीर की ऊर्जा का अधिकतर हिस्सा बच्चे के शरीर की ऊर्जा की पूर्ति में चला जाता है- इससे उनमें तनाव कम होता है।

आहार का रखें ध्यान

स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आहार में अतिरिक्त कैलोरी और पौष्टिक तत्व लेने जरूरी हैं। क्योंकि वो जो खाएंगी, उसका एब्सट्रेक्ट दूध में शामिल होकर बच्चे तक पहुंचता है। भोजन में सभी रंगों की मौसमी फल-सब्जियों और डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करने चाहिए। समुचित मात्रा में पानी या लिक्विड डाइट लेने से मां को डिहाइड्रेशन की शिकायत नहीं होती, साथ ही दूध बनने में भी मदद मिलती है। भोजन में पर्याप्त मात्रा में लहसुन, अदरक, जीरा, सौंफ, मेथी, कालीमिर्च, अजवाइन, जैसे मसालों का अधिक से अधिक प्रयेाग करें। डिलीवरी के बाद महिलाओं को अक्सर पिन्नियां, पंजीरी जैसी चीजें खाने को दी जाती हैं। ये न्यूट्रीशियन का अच्छा स्रोत जरूर हैं, लेकिन इनकी शुष्क प्रकृति स्तनपान में नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसलिए इनका सेवन सीमित मात्रा में ही किया जाना बेहतर है।

 (डॉ अंशु जिंदल, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जिंदल अस्पताल, मेरठ)

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