मैं बनाम सिर्फ़ मैं ही.....गृहलक्ष्मी की कविता
Poem in Hindi: ना किसी से तुलना ना कोई स्पर्धा कर पाती हूंँ,
लिखती बहुत कम हूंँ पढ़ती थोड़ा ज्यादा हूंँ।
इसलिए ही शायद थोड़े से ही मन के भावों को लिख पाती हूंँ।
थोड़े को ही तुम पढ़ना एक बार,
देना अपने मन से थोड़ा सा प्यार।
आपके ही प्रेम से तो मैं समृद्ध हो पाती हूंँ।
ना किसी से तुलना ना स्पर्धा …..
कभी मेरी लफ्जों की बनावट पर तुम ना जाना,
कहना क्या चाहा मैंने बस मन से समझ जाना।
आप सभी के मार्गदर्शन का झोली भर दर्शन करना चाहती हूंँ।
ना किसी से तुलना ना स्पर्धा…..
हर एक भाव मेरा बस मां सरस्वती के आशीष से निकले,
लिखूं चाहे थोड़ा पर स्याही मेरी कलम की हर किसी के दर्द से गुजरे।
आप सभी के प्रेम की खातिर ही तो यह कलम चला पाती हूंँ।
ना किसी से तुलना ना स्पर्धा…..
चाहती तो मैं हूं जीवन का हर रंग रंगना,
हर किसी की चाहत प्रेम या कुछ सामाजिक सा लिखना।
बस इसलिए ही कुछ दूरी चेहरों पर लगे मुखौटे से बनाती हूंँ।
ना किसी से तुलना ना स्पर्धा….
यदि सोचने लगी आज छोटी-छोटी प्रतिक्रियाओं को,
तो शायद थोड़ा सा भी मन का ना लिख पाऊंगी।
इसलिए मैं बनाम सिर्फ ऋतु अपनी प्रतिद्वंदी मैं खुद को ही पाती हूंँ।
ना किसी से तुलना ना स्पर्धा….
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