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नारी तू नारायणी-गृहलक्ष्मी की कविता

11:35 AM Apr 17, 2024 IST | Sapna Jha
नारी तू नारायणी गृहलक्ष्मी की कविता
Naari tu Narayani
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Hindi Poem: आज जब मैं नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर रही थी तो मन में एक विचार आया कि नारी तू नारायणी, नारी तू कल्याणी, नारी तू जगत जननी जैसे शब्द नारी  के लिए लिखे और कहे गये। इतना मान, इतना सम्मान जो एक नारी को मिला वो सिर्फ इसलिए कि नारी को ईश्वर और प्रकृति ने कुछ नैसर्गिक गुणों से नवाजा  है। इसलिए  ही नारी को देवी के समकक्ष माना गया है।

कहां भी गया है यत्र नार्यस्तु पूज्यते तत्र रमंते देवता
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता भी प्रसन्न होते हैं।

पर इसका अभिप्राय यह कतई नहीं की एक स्त्री अपने लिए मिले मान सम्मान को अपनी आजादी के नाम पर उसका दुरुपयोग  करें। आज के परिवेश में कहना चाहूंगी कि बालक की प्रथम गुरु एक माँ को माना गया है माँ ही संस्कारों की जननी है। पर आज की स्त्री की आजादी के नाम पर परिवार से विमुखता, उद्दंडता  समझ से परे है।

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शायद मेरे विचारों से कुछ लोग सहमत नहीं हो परन्तु ये मेरे अपने विचार हैं जो मैं आप सभी के समक्ष रख रही हूं।आज मेरी हर वर्ग, हर जाति, समाज की हर बहन, हर सखी से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि स्त्री के विशेष गुणों की गरिमा बनाए रखें । सुशिक्षित और संस्कारवान समाज के निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दें। समाज में सार्थक कार्य करते हुए अपनी पहचान बनाये।

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यहां प्रत्येक कला का उचित सम्मान करते हुए कहना चाहूंगी कि सिर्फ नाच गाना हमारी संस्कृति नहीं, हमारी पहचान नहीं है। एक स्त्री एक नहीं दो परिवार की पहचान  है। प्रत्येक समाज के लिए हर नारी उसे समाज का आईना है। स्त्री कोमल  अवश्य है लेकिन कमजोर कभी नहीं ।
इसलिए प्रत्येक स्त्री अपने नैसर्गिक गुणों की तलाश करें ,उन पर मंथन करें और हर बालक का अपनी संस्कृति अपने संस्कारों से परिचय करा कर सुद्र्ढ समाज का निर्माण करें।

कुछ पंक्तियां अपनी बहनों के लिए

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नारी तू नारायणी
अपनी पहचान मत खोना ।
झूठे आडंबरों की आड़ में,
अपने संस्कार मत खोना।
अपराजिता की बेल हैं हर नारी,
कहां दफन हो पाती है।
चाहे कोई भी मौसम हो
हर हाल में वह मुस्काती है।

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