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रमजान से जुड़ी कुछ खास बातें, आप भी जानें: Ramadan 2023

02:53 PM Mar 22, 2023 IST | Yasmeen Yasmeen
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Ramadan 2023: वैसे तो हर दिन और हर लम्हे की अपनी एक अहमियत है लेकिन इस्लाम के अनुसार सप्ताह के 7 दिनों में जुमे यानी कि शुक्रवार और महीने में रमजान का अपना एक अलग महत्व है। इस एक महीने में मुस्लिम समुदाय सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाते-पीते। सूर्योदय से पहले वो सहरी खाते हैं और सूर्योदय के बाद इफ्तार करते हैं।

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माना जाता है कि माहे रमजान में खुदा अपनी रहमतों के दरवाजे खोल देते हैं। बुराई की ओर उकसाने वाले शैतान को कैद कर लिया जाता है माना जाता है कि अगर आप रोजा रखते हैं और नियमों का पालन करते हैं तो आपके गुनाहों को माफ कर दिया जाता है। इस महीने आप जो भी धर्म का काम करते हैं लोगों की मदद करते हैं उसका 70 गुना सवाब यानी कि पुण्य अल्लाह अपने बंदों को देता है। इस महीने में दिन में रोजा रखना और रात को इबादत करना अल्लाह को बेहद पसंद है।

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Ramadan 2023: रोजा सिर्फ खाने पीने का नहीं

Ramadan 2023

रोजा जब आप रखते हैं तो अपने मन से रखते हैं। ऐसा नहीं है कि रोजा सिर्फ खाने-पीने की पाबंदी होता है। सिर्फ भूखा रहना रोजे का मकसद नहीं होता। जब आप रोजा रखते हैं तो आपके मन का भी रोजा होता है। यानी कि आपको न अपने हाथ से किसी के साथ बुरा करना होता है न ही जुबान से झूठ बोलना होता है। यहां तक कि मन में भी किसी किस्म के बुरे विचार या गुस्से का आना भी सही नहीं है। अगर सामने वाला रोजे से है या आपने रोजा रखा है तो कोशिश करें कि आप दोनों अपनी किसी भी बात से एक-दूसरे को दुख न पहुचाएं। गर आप किसी से नाराज हैं तो अपनी नाराजगी दूर करें। कोई आपसे नाराज है तो उससे माफी मांगकर बात खत्म करें। यही असली रोजदार होने की पहचान है।

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क्यों कहा जाता है रहमत और बरकत का महीना

हर बात के पीछे कुछ न कुछ कारण छिपा होता है। इस महीने को रहमत और बरकत वाला महीना इसलिए कहा जाता है क्योंकि मुस्लिम लोगों का पवित्र ग्रंथ कुरआन को इसी महीने में उतारा गया था। इस महीने में अपने दिल को अच्छी बातों की तरफ मोढ़ें। अपने दिल और दिमाग को बदलें, अपनी सोच को साफ करें। यह कोशिश करें कि मेरा हर अमल अल्लाह की हुक्म के अनुसार और उसकी रजा के लिए होगा। लोग इस महीने में ज्यादा से ज्यादा कुरआन पढ़ते हैं।

कौन रखता है रोजा

बहुत छोटे बच्चों को तो नहीं लेकिन 7 साल की उम्र के बाद बच्चे अगर चाहें तो वे रोजा रख सकते हैं। हां लेकिन जब आप बालिग होते हैं आप पर रोजाना रखना फर्ज होता है। लड़के के लिए यह उम्र 12 साल है और लड़कियों के लिए यह उम्र उनके पीरियड्स आने को लेकर है। पीरीयड से होने वाली लड़कियों को रोजा रखना होता है। हां अगर आप किसी गंभीर बीमाारी से ग्रसित हैं और डॉक्टर ने आपको रोजा रखने के लिए मना कर रखा है तो इस्लाम में उसकी छूट है। इसके अलावा अगर आप बहुत बुर्जुर्ग हैं तो भी आपको रोजा न रखने की छूट है। इसके लिए अलावा अगर आप ट्रैवल कर रहे हैं तो अपने रोजे को बाद में रख सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको कफ्फारा देना होता है।

क्या है कफ्फारा

अगर आप ऊपर बताई हुई किसी भी बात की वजह से रोजा नहीं रख पा रहे हैं तो आपको उस रोजे का कफ्फारा देना होगा यानी कि एक आदमी के तीन वक्त का खाना दें या फिर उस खाने की कीमत अदा करें। यह आपको पूरे तीसों दिन करना होता है।

महिलाओं के लिए ख़ास

रोजा रखना इस्लाम में फर्ज है लेकिन प्रेगनेंट और लैक्टेटिंग मदर्स को इसमें छूट है। अगर महिला दो साल तक के बच्चे को दूध पिला रही है तो वे रोजे फिलहाल न रखकर बाद में रख सकती है। इसके अलावा महिलाओं को जब पीरीयड होते हैं वो तब भी रोजे नहीं रखती। महिलाओं को इसका कफ्फारा नहीं देना होता। उनके यह रोजे कजा होते हैं यानी कि वे बाद में इन्हें रख सकती हैं।

एतकाफ

इस पूरे महीने में आखिद दस दिन और भी ज्यादा अहमियत के हैं। इसमें बहुत से लोग एतकाफ में बैठते हैं। यह एतकाफ पुरुष और महिला दोनों कर सकते हैं। पुरुष मस्जिद में और महिलाएं अपने घरों तमें एतकाफ करती हैं। इसमें जो भी एतकाफ करता है वो पूरा वक्त इबादत यानी कि प्रार्थना में गुजरता है। महिलाएं एक जगह या एक कमरे में एतकाफ करती हैं। लेकिन एतकाफ करना फर्ज नहीं है हालांकि इसका पुण्य बहुत होता है। इसके अलावा रमजान के महीने में कु रातों की भी बहुत अहमियत है। माना जाता है कि यह दुआ मांगने की रात होती है। यह रातें रमजान की 21, 23,25 27,29 शब की होती है। बहुत से लोग पूरी रात इसमें अपने लिए मांगते हैं। यह महीना इंसान को एक बेहतर इंसान बनने का एक प्रैक्टिस का है। आगे के 11 महीने के लिए उसे तैयार करने का एक तरीका

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